नई दिल्ली। दुनिया भर में जारी कोरोना वायरस (corona virus) के अलग-अलग वेरिएंट के कहर के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (world health organization) ने एंटीबॉडी दवा (Antibody medicine) की सिफारिश पर नया अपडेट दिया है। डब्ल्यूएचओ (WHO) यानी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने कोरोना के मरीजों के लिए जिन दो मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवाओं को असरदार माना था, अब उसके यूज को लेकर नई सलाह दी है। संशोधित ट्रीटमेंट गाइडलाइन्स में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना मरीजों के लिए दो एंटीबॉडी दवाओं–सोट्रोविमैब (sotrovimab) और कासिरिविमैब-इमडिविमैब (casirivimab-imdevimab) के इस्तेमाल न करने की सलाह देते हुए कहा कि ये दोनों दवाएं वर्तमान में ओमिक्रोन जैसे वेरिएंट के खिलाफ अप्रभावी हो सकती हैं।
एक खबर के मुताबिक, दरअसल कोरोना के इलाज के लिए सोट्रोविमैब और कासिरिविमैब-इमडिविमैब नामक दो एंटीबॉडी दवाओं को मंजूरी मिली थी. खुद डब्ल्यूएचओ ने पिछले साल कोरोना के कुछ मरीजों के लिए दो एंटीबॉडी वाले इन दोनों दवाओं की सिफारिश की थी. मगर डबल्ल्यूएचओ गाइडलाइन डेवलपमेंट ग्रूप ऑफ इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स द्वारा किए गए रिव्यू ने दो एंटीबॉडी दवा के इस्तेमाल की सिफारिश को रिप्लेस कर दिया. इस रिव्यू को पीयर-रिव्यू जर्नल द बीएमजे में शुक्रवार को प्रकाशित किया गया।
बता दें कि ये दवाएं सार्स-कोव-2 स्पाइक प्रोटीन से जुड़कर काम करती हैं, जिससे कोशिकाओं को संक्रमित करने की वायरस की क्षमता बेअसर हो जाती है. दोनों दवाओं को कोरोना के गंभीर मरीजों के उपचार के लिए अमेरिकी एफडीए द्वारा इमरजेंसी यूज की मंजूरी मिली थी क्योंकि पहले के परीक्षणों में इन दोनों दवाओं ने कोरोना वायरस के डेल्टा संस्करण के खिलाफ कुछ प्रभाव दिखाया था. मगर अब लेटेस्ट शोध में इन दोनों दवाओं को उतना असरदार नहीं माना गया है. एक्सपर्ट्स के नोट्स् के मुताबिक, सभी टेस्ट और सबूतों को परखने के बाद पैनल ने फैसला किया कि लगभग सभी रोगियों को सोट्रोविमैब या कासिरिविमैब-इमडिविमैब दवा नहीं लेनी चाहिए।
कोविड के रोगियों के लिए मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवा कासिरिविमैब-इमडिविमैब के उपयोग के खिलाफ एक मजबूत सिफारिश करते हुए एक्सपर्ट्स ने इन विट्रो (लैब-आधारित) न्यूट्रलाइजेशन डेटा पर विचार किया. विशेषज्ञों ने कहा कि क्लिनिकल ट्रायल्स में यह पाया गया कि एंटीबॉडी दवा सोट्रोविमैब और कासिरिविमैब-इमडिविमैब ने सार्स-कोव-2 और उसके अलग-अलग वेरिएंट की न्यूट्रलाइजेशन गतिविधि को सार्थक रूप से कम कर दिया है. यानी कोरोना के वेरिएंट को मारने में ये दोनों दवाएं उतनी कारगर साबित नहीं हो पा रही हैं और पैनल के बीच इस बात पर सहमति थी इन मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवाओं की क्लिनिकल प्रभावशीलता कम है।
वहीं, भारत में विशेषज्ञों का कहना है कि यह अच्छा है कि डब्ल्यूएचओ ने औपचारिक रूप से अपनी सिफारिशों वाले दिशानिर्देशों को अपडेट कर दिया है क्योंकि इसके लिए पर्याप्त सबूत थे कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी अब काम नहीं करेंगे. गुरुग्राम में इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिटिकल केयर एंड एनेस्थिसियोलॉजी, मेदांता-द मेडिसिटी के चेयरमैन डॉ. यतिन मेहता ने कहा कि कुछ प्रमुख भारतीय शहरों में केवल चुनिंदा रोगियों पर ही इस एंटीबॉडी दवा का उपयोग किया गया है।
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