नई दिल्ली। भारत ने स्वास्थ्य क्षेत्र(health sector) में काफी तरक्की की है, लेकिन यहां एक जैसे बदलाव नजर नहीं आ रहे हैं। पिछले दो साल से कोरोना महामारी (corona pandemic) का मुकाबला कर रहा भारत (Bharat) बीमारियों का दोहरा बोझ झेल रहा है। राज्यों में स्वास्थ्य को लेकर किए जा रहे कार्यों में काफी असमानता है।
इतना नहीं सरकारी क्षेत्र में जहां सुविधाएं काफी कम हैं, वहीं निजी क्षेत्र में इलाज काफी महंगा है। इन सबसे अधिक चिंताजनक बात यह है कि देश में लोगों को गुणवत्तापूर्ण इलाज मिलना काफी कठिन है। यह बात विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी रिपोर्ट में कही है।
दो दिन पहले जारी की गई रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने कहा कि भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में एक जैसे बदलाव दिखाई नहीं दे रहे हैं। देश में निजी स्वास्थ्य क्षेत्र का काफी तेजी से विस्तार हुआ है लेकिन यहां मरीजों का उपचार काफी महंगा है और बड़ी आबादी को देखते हुए सभी परिवारों के लिए यह काफी जटिल भी है। हालांकि यहां गुणवत्ता युक्त उपचार मिलना भी कठिन है। इसे लेकर भारत में एक मजबूत विनियमन की आवश्यकता भी है।
डेंगू, चिकनगुनिया और टीबी बीमारियां परेशानी का कारण
समीक्षा रिपोर्ट में सहभागी पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के निदेशक डॉ. शक्तिवेल सेल्वाराजी ने हालांकि स्वीकार किया है कि भारत (India) में पांच लाख रुपये का वार्षिक स्वास्थ्य बीमा देने वाली प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत सहित अन्य योजनाओं का जमीनी स्तर पर प्रभाव देखना अभी जल्दबाजी होगा। रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के इस दौर में जहां भारतीय शहरों के लिए डेंगू और चिकनगुनिया(Dengue and Chikungunya) जैसी बीमारियां परेशानी का कारण बनी हुई हैं। वहीं, पोलियो से मुक्ति पाने वाले भारत के लिए तपेदिक (टीबी) पर कामयाबी हासिल करना भी जरूरी है।
तारीफ भी…बीते वर्षों में स्वास्थ्य सेवा में सुधार
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि सरकार की स्वास्थ्य योजनाएं वर्तमान में वित्तीय संकट का भी सामना कर रहीं हैं जो राष्ट्रीय और राज्य दोनों ही स्तर पर चिंता का कारण है। एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स के महानिदेशक डॉ. गिरधर ज्ञानी का कहना है कि बीते कुछ वर्षों में स्वास्थ्य को लेकर भारत ने काफी तरक्की की है।
अगर वर्ष 2000 के बाद से अब तक की स्थिति देखें तो देश में स्वास्थ्य क्षेत्र का काफी विस्तार भी हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, सच यह भी है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए अब भी बहुत कुछ होना बाकी है, क्योंकि बीते दो वर्षों में पूरे देश ने महामारी के आगे कमजोर स्वास्थ्य तंत्र का अनुभव भी किया है।
…पर, हृदय रोग, सीओपीडी और स्ट्रोक बने सबसे ज्यादा जानलेवा
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो साल से कोरोना महामारी का मुकाबला कर रहा भारत बीमारियों का दोहरा बोझ झेल रहा है। समय के साथ देश की बढ़ती आबादी के चलते मिश्रित स्वास्थ्य सेवा प्रणाली देखने को मिल रही है, जो जमीनी स्तर पर चुनौतियों को और गंभीर बना रही है।
डब्ल्यूएचओ ने भारत में राष्ट्रीय और अलग-अलग राज्यों के स्तर पर जब स्वास्थ्य समीक्षा की तो पाया कि देश में साल 2019 के दौरान सबसे ज्यादा मौतें तीन बड़ी बीमारियों की वजह से हुईं जिनमें हृदय रोग, सीओपीडी या क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और स्ट्रोक शामिल हैं। कोरोना महामारी जैसे संक्रामक रोग के साथ भारत में काफी तेजी से गैर संचारी रोग (एनसीडी) बढ़ते जा रहे हैं जिन्हें लेकर जागरूकता, जांच, उपचार पर अभी से जोर देना बहुत जरूरी है।
जीवन प्रत्याशा में भी आया सुधार…47.7 से बढ़कर 69.6 वर्ष हुई
रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय लोगों की जीवन प्रत्याशा में बढ़ोतरी हुई है। साल 1970 में जीवन प्रत्याशा 47.7 वर्ष अपेक्षित थी जो साल 2020 में बढ़कर 69.6 वर्ष हुई। इसके अलावा साल 2003 से अब तक मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) को लेकर भी तेजी से सुधार दर्ज किया गया। प्रति एक लाख प्रसूति पर यह दर 301 से घटकर 130 रह गई। वहीं शिशु मृत्युदर भी प्रति एक हजार शिशु पर 68 से घटकर 24 रह गई है।
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