लखनऊ। समाजवादी पार्टी के संस्थापक (Samajwadi Party Founder) और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) के निधन के बाद मैनपुरी संसदीय सीट (Mainpuri parliamentary seat) तो खाली हुई ही है लोकसभा में यादव परिवार का प्रतिनिधित्व भी खत्म हो गया है। निकट भविष्य में इस सीट पर उपचुनाव होगा लिहाजा राजनीति के गलियारों में मैनपुरी में मुलायम के उत्तराधिकारी (Mulayam’s successor) को लेकर भी चर्चाएं तेज हो गई हैं।
उधर, मैनपुरी की आम जनता अपने सांसद के तौर पर नेताजी को खोकर दुखी है। इस सीट पर यादव परिवार से अगला दावेदार कौन होगा? इस सवाल का जवाब इतना आसान नहीं है। मैनपुरी सीट पर मुलायम का उत्तराधिकारी कौन? यह आने वाले कुछ दिनों में एक ऐसा प्रश्न बनने वाला है जिससे अखिलेश और शिवपाल दोनों की परिपक्वता की परीक्षा हो जाएगी। उत्तराधिकारी का चयन यह तय कर देगा कि मुलायम के बाद उनकी विरासत एक होगी या फिर हमेशा-हमेशा के लिए बंट जाएगी।
राजनीति के जानकार और यादव परिवार की सियासत पर नज़र रखने वाले लोगों का मानना है कि परिवार में एका की सम्भावनाएं अभी पूरी तरह खत्म नहीं हैं। अब भी यदि अखिलेश और शिवपाल चाहें तो साझेदारी और समझदारी से भविष्य का रास्ता तय हो सकता है। अखिलेश यदि चाचा को मना लें, साथ कर लें, भले उसके लिए मैनपुरी की सीट उप-चुनाव में शिवपाल को देनी पड़े तो आगे का रास्ता निकल सकता है। दिल्ली की राजनीति चाचा संभाल सकते हैं और अखिलेश चैन से यूपी की सियासत करते हुए विधानसभा में सपा की आवाज बुलंद करते रह सकते हैं।
वैसे भी मुलायम के जाने के बाद दिल्ली में यादव परिवार से सिर्फ रामगोपाल यादव बचे हैं। रामगोपाल यादव का राजनीतिक संपर्क दूसरे दलों में शिवपाल के जैसा नहीं है। रामगोपाल हमेशा से लो प्रोफाइल रहते हैं। शिवपाल मुलायम के लंबे राजनीतिक जीवन में सबसे लंबे समय तक नंबर दो रहे हैं इसलिए सभी दलों में उनके संबंध मुलायम की तरह हैं। जानकारों का कहना है कि यदि अखिलेश ऐसा कर पाएं (जिसकी संभावना बहुत कम है) तो वह न सिर्फ यादव परिवार को मुलायम के बाद एकजुट रख पाएंगे बल्कि यह उनकी राजनीतिक परिपक्वता का बहुत बड़ा सबूत भी होगा।
उधर, ऐसी ही परिपक्वता शिवपाल भी दिखा सकते हैं। बड़े भाई के जाने के बाद शिवपाल यदि आगे बढ़कर परिवार को संभालें, परिवार को एकजुट रखें तो यह न सिर्फ परिवार और पार्टी के लिए अच्छा होगा बल्कि उनके खुद के राजनीतिक भविष्य को भी मुलायम की विरासत का बड़ा आधार मिला रहेगा। इसके साथ ही दूसरी पार्टी यादव परिवार की फूट का फायदा नहीं उठा पाएगी। शिवपाल यदि ऐसा कर पाएं भले ही उसकी राजनीतिक कीमत कुछ बलिदान देकर चुकानी पड़े तो बड़ी बात होगी।
जानकार कहते हैं कि मुलायम के निधन के बाद उनके अंतिम संस्कार में शिवपाल जिस तरह अखिलेश के कंधे पर हाथ रखे नज़र आए उससे समाज में एक संदेश तो गया। लेकिन अब देखना है कि यह संदेश ही था कि उससे आगे बढ़कर हकीकत में भी यही भावना दिखेगी। शिवपाल के सामने भी यह बड़ा प्रश्न है कि यदि अखिलेश उन्हें मैनपुरी न लड़ाएं तो भी क्या वह जैसे नेताजी के अंतिम संस्कार में कंधे पर हाथ रखे थे वैसे ही रखे रह सकते हैं और खुद पीठ पर खड़े रहकर भतीजे को राजनीति को आगे बढ़ा सकते हैं, या नहीं?
वैसे ऐसा लगता नहीं कि शिवपाल मानेंगे। वह पार्टी में सम्मान की बात कर चुके हैं। सम्मान का मतलब स्पष्टत: पद है। अब यदि शिवपाल नहीं माने या अखिलेश नहीं मना पाए तो चर्चा है कि मैनपुरी से शिवपाल निर्दलीय भी लड़ सकते हैं और बीजेपी कोई कैंडिडेट ना देकर खुले या छुपे रूप से उनको समर्थन कर दे ताकि रामपुर, आजमगढ़ के बाद सपा का ये तीसरा किला भी सपा से छीना जा सके। यदि यह सच हुआ तो मैनपुरी में मुलायम की राजनीतिक विरासत बंट जाएगी।
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