नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मुंबई के सबसे बड़े स्लम एरिया धारावी में कोरोनो वायरस ब्रेक के लिए तारीफ की है। WHO की तरफ से कहा गया है कि धारावी में कोरोना वायरस को रोकने के लिए किए गए प्रयासों की बदौलत आज ये इलाका कोरोना से फ्री होने की कगार पर है। उन्होंने कहा कि इस राष्ट्रीय एकता और वैश्विक एकजुटता के साथ मिलकर ही इस महामारी को रोका जा सकता है।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस एडहानम गेब्रेयेसेसने कहा, ‘दुनिया भर में कई उदाहरण हैं जिन्होंने दिखाया है कि भले ही प्रकोप कितना भी ज्यादा हो, फिर भी इसे नियंत्रण में लाया जा सकता है और इन उदाहरणों में से कुछ इटली, स्पेन और दक्षिण कोरिया, और यहां तक कि धारावी में भी हैं।’
संयुक्त राष्ट्र के स्वास्थ्य प्रमुख ने कहा कि मुंबई के इस स्लम एरिया में टेस्टिंग, ट्रेसिंग, सोशल डिस्टेंसिंग और संक्रमित मरीजों का तुरंत इलाज के कारण यहां के लोग कोरोना की लड़ाई में जीत की ओर हैं। डब्ल्यूएचओ महानिदेशक ने नेतृत्व, सामुदायिक भागीदारी और सामूहिक एकजुटता की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ऐसे देशों से जहां तेजी से विकास हो रहा है, जहां प्रतिबंधों को ढीला कर रहे हैं और अब मामले बढ़ने लगे हैं। हमें नेतृत्व, सामुदायिक भागीदारी और सामूहिक एकजुटता की जरूरत है।
मुंबई की सबसे बड़ी मलिन बस्ती धारावी में शुक्रवार को कोविड-19 के 12 नए मामले आने के साथ ही कोरोना वायरस संक्रमण के कुल मामलों की संख्या बढ़कर 2,359 हो गई है। यह जानकारी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के एक अधिकारी ने दी। नगर निकाय ने हालांकि पिछले कुछ दिनों से इस क्षेत्र में कोविड-19 संबंधी मौतों की जानकारी देनी बंद कर दी है। अधिकारी ने कहा कि धारावी में इस समय 166 मरीजों का उपचार चल रहा है और 1,952 मरीजों को अब तक अस्पतालों से छुट्टी मिल चुकी है। एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्ती धारावी 2.5 वर्ग किलोमीटर में फैली है जहां छोटे-छोटे घरों में लगभग 6.5 लाख लोग रहते हैं।
1 अप्रैल को धारावी में कोरोना का पहला केस सामने आने के पहले ही हमें आशंका थी कि यहां स्थिति बिगड़ सकती है। क्योंकि 80 प्रतिशत लोग सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करते हैं। 8 से 10 लाख आबादी वाले उस इलाके में एक छोटे से घर में 10 से 15 लोग रहते हैं। इसलिए सबको न तो होम आइसोलेशन किया जा सकता है और न ही लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर सकते हैं।
इसीलिए जब मामले सामने आने लगे तब हमने चेस द वायरस के तहत काम करना शुरू किया। इसके तहत कॉन्ट्रेक्ट ट्रेसिंग, फीवर कैंप, लोगों को आइसोलेट करना और टेस्ट करना शुरू किया। स्कूल, कॉलेज को क्वारंटीन सेंटर बनाया गया। वहां अच्छे डॉक्टर, नर्स और 3 टाइम अच्छा खाना दिया गया। रमजान के समय मुस्लिम लोगों को डर था, लेकिन क्वारंटीन सेंटर में बेहतर सुविधाओं को देखते हुए वे खुद सामने आए।
इससे हमारा काम आसान हो गया। 11 हजार लोगों को इंस्टिट्यूशनल क्वारंटीन किया गया। साईं हॉस्पिटल, फैमिली केयर और प्रभात नर्सिंग होम से हमें काफी मदद मिली। इन्हीं सब प्रयासों का नतीजा है कि यहां सिर्फ 23 प्रतिशत ऐक्टिव केस हैं। 77 प्रतिशत लोग ठीक होकर अपने घर जा चुके हैं।
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