मौत का मणिपुर… आप दिल में आक्रोश जगाएं या इसे अपने मन की पीड़ा बताएं, लेकिन प्रधानमंत्रीजी आप इस सच को जरूर पचाएं कि जब इंसान नफरत में बंट जाता है… इंसान ही इंसानियत का दुश्मन बन जाता है… हर सवाल का जवाब मौत में ढूंढने लग जाता है… कत्ल को समाधान मानकर हैवानियत की हिमाकत पर उतर जाता है… पिशाचों की तरह इंसानों को रौंदने लग जाता है तो उस आग को कोई नहीं बुझा पाता…चंद लाख लोगों का मणिपुर जातिवादी संग्राम का वो रण बन चुका है, जहां सरकार बेबस नजर आ रही है… कानून लाचार हो चुका है… पुलिस भी कातिल बन चुकी है…समाजों और संप्रदायों में बंट चुकी है…थाने के हथियार खून बहा रहे हैं…सब मिलकर अपने अस्तित्व की लड़ाई में इस कदर अस्तित्वहीन हुए जा रहे हैं कि एक प्रांत में दो जमीनें बंट चुकी हैं… दो इलाके हो चुके हैं… खून से सनी इन इलाकों की जमीन पर एक संप्रदाय दूसरे संप्रदाय का खून बहाकर अपनी ताकत बता रहा है…रोजी-रोजगार, व्यापार-कारोबार सब नष्ट हो चुके हैं… जमीन-जायदाद, घर-मकान सब खंडहर बन चुके हैं…भविष्य की संभावनाएं खून में डूब चुकी हैं… मणिपुर की हिंसा पर हम और आप आंसू बहा रहे हैं…महिलाओं की लुटती अस्मत और बहन-बेटियों के साथ होती हैवानियत पर आक्रोश जता रहे हैं… लेकिन सच तो यह है कि उन पर बीती स्थितियों का अंदाजा भी नहीं लगा पा रहे हैं… मौत का मणिपुर हैवानियत और जुल्म की वो धरती बनकर रह गया है, जहां इंसान रोटी नहीं, बोटियां नोंचकर खा रहा है…नफरत से नहा रहा है, फिर भी हमें हमारा विध्वंसक कल नजर नहीं आ रहा है…जिस नफरत में आज मणिपुर मिट रहा है, वही नफरत यदि देश में फैल जाएगी… एक वर्ग की दूसरे वर्ग से नफरत की आग यदि जेहन से निकलकर धरती पर उतर आएगी तो विकास की हर सूरत विध्वंस में बदल जाएगी…देश की तरक्की मिट्टी में मिल जाएगी…विदेशों में मिली ख्याति सवालों में घिर जाएगी…सभ्यता की शिक्षा और संस्कृति की दुहाई बौनी नजर आएगी…देश का कोई कानून उस बहते खून को रोक नहीं पाएगा…यह अंजाम है नफरत का…यह सबक है भविष्य का…पता नहीं कब मणिपुर शांत हो पाएगा… इंसानों के रहते यह तांडव रुक पाएगा या मणिपुर इंसानियत का श्मशान बनकर ही आंसू बहाएगा…
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