– आर.के. सिन्हा
मणिपुर से लेकर मेवात तक से हिंसा और अशांति की खबरों के बीच एक उम्मीद अवश्य जागती है कि हमारे यहां किसी कारण से कष्ट में आ गए लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाने वाले फरिश्तों की भी कोई कमी नहीं है। बाढ़, भूकंप या किसी महामारी के समय कुछ फरिश्ते उम्मीद बनकर सामने आ ही जाते हैं। मेवात में दंगा भड़काने वालों के खिलाफ तो कड़ी कार्रवाई करनी ही होगी, पर दंगों की चपेट में आए लोगों के इलाज और भोजन की व्यवस्था करने में राजधानी के शहीद भगत सिंह सेवा दल, दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी समेत कई सामाजिक संस्थानों के वालंटियर सामने आए। उन्होंने दंगा प्रभावित लोगों को भोजन से लेकर दवाइयां तक उपलब्ध करवाईं। याद रखिए, यह जो समाज सेवा का जज्बा है, ये सब में तो नहीं होता। समाज सेवा में कोई धन तो नहीं मिलता। बल्कि, घर से ही जाता है पर इंसान अपने को भीड़ से अलग तो कर ही लेता है।
देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत फिल्में बनाने निर्माता, निर्देशक और एक्टर मनोज कुमार कभी-कभी सुनाते हैं कि किस तरह जब उनका परिवार देश विभाजन के बाद बुरी स्थिति में दिल्ली आया तो सेंट स्टीफंस अस्पताल के डाक्टरों ने उनके परिवार के बुजुर्ग सदस्यों का पूरे मन से इलाज किया और उन्हें सेहतमंद किया। सेंट स्टीफंस अस्पताल को उसी दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी ने स्थापित किया था जिससे गांधीजी के परम सहयोगी दीनबंधु सीएफ एंड्यूज जुड़े हुए थे। प्रोटेस्टेंट ईसाइयों की संस्था दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी का लक्ष्य धर्मांतरण कभी नहीं रहा। धर्मांतरण ज्यादातर कैथोलिक मिशनरी करवाते हैं।
बहरहाल, देश के 1947 में विभाजन के बाद बड़ी संख्या में शरणार्थी दिल्ली आए तो उन्हें हर तरह की मदद दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी ने दी। अपने परिसर में शरणार्थी हिंदुओं और सिखों को छत दी। हाल ही में दिल्ली में बाढ़ आई तब भी इसके वालंटियर बाढ़ प्रभावित परिवारों को भोजन और दवा बांटते रहे।
मैं पिछले दिनों आगरा में गया था। वहां पर रोटरी क्लब के कुछ सदस्यों से मिला। जानकार बहुत संतोष हुआ कि वे आगरा और आसपास के नौजवानों को वोकेशनल ट्रेनिंग दिलवाने के साथ-साथ लड़कियों को साइकिलें भी दे रहे हैं ताकि वे आराम से अपने स्कूलों में आ-जा सकें। इसके अलावा वे रक्तदान शिविर आयोजित करते है। यकीन मानिए कि मुझे रोटरी क्लब के मेंबर्स के बीच में जाकर गर्व होता है। सारे संसार में रोटरी क्लब के सदस्य सोशल सर्विस में बढ़-चढ़कर एक्टिव हैं। ये सिलसिला बीते कई दशकों से चल रहा है। रोटरी क्लब में बिजनेस की दुनिया से संबंध रखने वालों की भरमार है। ये मुख्य रूप से दो तरह के काम कर रहे हैं। पहला, ये नौकरी के अवसर पैदा कर रहे हैं। दूसरा, यह किसी दुखी इंसान के चेहरे में मुस्कान लाने की कोशिश करते हैं। सच में, मैं तो इन्हें ईश्वर का दूत ही मानता हूं। वर्ना आज के दिन कौन किसके आंसू पोंछता है।
मैं बिजनेस और इंडस्ट्री की गतिविधियों को भी फॉलो करता हूं। इसलिए मैं कह सकता हूं कि बिजनेस करना कोई बच्चों का खेल नहीं है। तमाम तरह की अड़चनों को पार करके आप बिजनेस करते हैं और फिर टैक्स देते हैं। यह सब करने के बाद समाज सेवा के प्रति प्रतिबद्धता का होना बहुत बड़ी बात है। मैं दिल्ली में पृथ्वीराज रोड से गुजरते हुए दो शख्सियतों के घरों को देखकर कुछ पलों के लिए ठहर जाता हूं या मेरी नजरें झुक जाती हैं। मैं बात कर रहा हूं बाबा साहेब आंबेडकर और जेआरडी टाटा के घरों की। ये दोनों महान विभूतियां पृथ्वीराज रोड पर अलग-अलग समय में रहीं। दोनों ने हमारे देश को बेहतर बनाने में अपना ठोस रोल निभाया। जेआरडी टाटा ने टाटा समूह को खड़ा किया। उन्होंने देश में शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र को भरपूर सहयोग किया। जहां तक बाबा साहेब की बात है तो उन्होंने देश को एक शानदार संविधान देने में अहम भूमिका निभाई।
सरकार और समाज का दायित्व है कि वो समाज सेवा में लगी संस्थाओं और व्यक्तियों की हर मुमकिन मदद करें। दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी से जुड़े ब्रदर जॉर्ज सोलोमन बता रहे थे कि वे आजकल वालंटियर तलाश कर रहे हैं। उन्हें तलाश इस तरह के नौजवानों की है जिनका जीवन का लक्ष्य समाज सेवा ही हो। जो उनके साथ जुड़ेगा, उसे मासिक पगार के अलावा रहने-खाने की सुविधा दी जाएगी। दरअसल समाज सेवा में लगी संस्थाओं को मदद करने वाले तो हमारे यहां बहुत लोग सामने आ जाते हैं। पर अपना जीवन समाज सेवा को देने वाले कम ही होते हैं। दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी के सभी सक्रिय सदस्य अविवाहित हैं। इनका जीवन का लक्ष्य समाज सेवा ही है।
दरअसल देश को इस तरह की संस्थाओं की जरूरत है जो समाज के कमजोर तबकों से जुड़े सैकड़ों नौजवानों के लिए एयरकंडीशनिंग, मोटर मैक्निक, ब्यूटिशियन, कारपेंटर, टेलरिंग वगैरह के कोर्स भी चलाए। हमने कोविड की भयानक दूसरी लहर के समय देखा था जब लोग अपने कोविड से पीड़ित भाई-बहन, पति-पत्नी तक से दूर हो गए थे। तब अनेक समाज सेवी सड़कों पर आकर कोविड से प्रभावित लोगों की मदद कर रहे थे। उनमें राजधानी के मशहूर सोशल वर्कर अरुणेश शर्मा भी थे। उन्होंने समाज सेवा कभी पद या धन के लालच में नहीं की। वे संत पुरुष थे। अपने जीवन में शायद ही उन्होंने कभी किसी को कटु शब्द बोला हो। वे शालीनता की प्रतिमूर्ति थे।
अरुणेश शर्मा का कोविड की दूसरी लहर के दौरान 25 अप्रैल 2021 को निधन हो गया। वे कोविड मरीजों के लिए बेड से लेकर प्लाज्मा वगैरह की व्यवस्था कर रहे थे। तब ही वे भी कोविड की चपेट में आ गए। वक्त रहते उन्हें एक प्रमुख अस्पताल में भर्ती भी करवा दिया गया था। पर उनकी स्थिति बिगड़ती रही और एक हमेशा मुस्कुराने वाला शख्स संसार से विदा हो गया। बेशक, वे खुशनसीब हैं जो दीन-दुखियों के संकट का सहारा बनते हैं। वर्ना अपने लिए तो सभी जीते हैं।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)
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