– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
प. बंगाल के नंदीग्राम में ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। जो शुभेंदु कल तक ममता के सिपहसालार थे, वे आज भाजपा के महारथी हैं। ऐसा बंगाल के कई चुनाव-क्षेत्रों में हो रहा है। ममता की तृणमूल कांग्रेस से इतने नेता अपना दल बदलकर भाजपा में शामिल हो गए हैं कि यदि ममता की जगह कोई और नेता होता तो वह शायद अबतक घर बैठ जाता लेकिन ममता अपना चुनाव-अभियान चला रही हैं। देश में मुख्यमंत्री तो कई अन्य महिलाएं भी रह चुकी हैं लेकिन जयललिता और ममता-जैसी कोई शायद ही रही हो। ममता ने अकेले दम कम्युनिस्ट पार्टी के तीन दशक पुराने शासन को उखाड़ फेंका। उसकी शुरुआत 2007 में इसी नंदीग्राम के सत्याग्रह से हुई थी।
ममता ने लगभग सभी प्रमुख विरोधियों पार्टियों को एक संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए कई बार प्रेरित किया है। ममता को हराने के लिए भाजपा ने इसबार जितना जोर लगाया है, शायद अबतक किसी अहिंदीभाषी राज्य में उसने नहीं लगाया। इस चुनाव में जितना मर्यादा-भंग हुआ है, उतना किसी चुनाव में हुआ हो, ऐसा मुझे याद नहीं पड़ता। अबतक भाजपा के लगभग डेढ़-सौ कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। जातिवाद और मजहबी पाखंड का सरेआम दिखावा बड़ी बेशर्मी से बंगाल में हो रहा है। बंगाल का औद्योगीकरण और रोजगार तो कोई मुद्दे हैं ही नहीं। ममता ने चुनाव आयोग के मुंह पर कालिख पोतने में भी कोई कमी नहीं रखी है। उसपर इतने घृणित शब्दों में अबतक किसी नेता ने ऐसे आरोप नहीं लगाए हैं। चुनाव आयोग ने नंदीग्राम में धारा 144 ठोक दी है और नंदीग्राम के 355 मतदान केंद्रों पर केंद्रीय बलों की 22 कंपनियां जमा दी हैं। वहां हिंसा होने की आशंका सबसे ज्यादा है। उसके 2.75 लाख मतदाताओं में 60 हजार मुस्लिम है।
बंगाल के इस चुनाव में सांप्रदायिक और जातीय आधार पर अंधा-वोट (थोक) पड़नेवाला है। यह लोकतंत्र की विडंबना है। भाजपा के बढ़ते प्रभाव से घबराकर ममता उसे ‘बाहरी’ या ‘गैर-बंगाली’ पार्टी बता रही है, यह बहुत ही अराष्ट्रीय कृत्य है। लेकिन बंगाल का यह चुनाव इतने कांटे का है कि ऊँट किस करवट बैठेगा, यह अभी कहना मुश्किल लगता है।
(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार और स्तंभकार हैं।)
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