नई दिल्ली । काबुल पर कब्जा करने के बाद तालिबान (Taliban) के नेताओं ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें कही गई बातों से ये साफ होता है कि तालिबान अपने देश को इस्लामिक कानूनों के मुताबिक ही चलाएगा. जैसे ही तालिबान ने अफगान राष्ट्रपति भवन (Afghan Rashtrapati Bhavan) पर कब्जा किया अटकलें तेज हो गईं कि अफगानिस्तान का नेतृत्व कौन करेगा. इस समय अफगानिस्तान की सत्ता के लिए तालिबान की तरफ से दो प्रमुख दावेदार हैं.
कौन हैं अफगानिस्तान के सत्ता के प्रमुख दावेदार
अफगानिस्तान की सत्ता संभालने के दावेदार पहले नेता का नाम है- मुल्ला अब्दुल गनी बरादर (Mullah Abdul Ghani Baradar), जो तालिबान का सबसे बड़ा पब्लिक फेस है. वह मुल्ला उमर का दामाद है, जिसकी 2013 में मौत हो गई थी. मुल्ला उमर ही तालिबान की पहली सरकार का सबसे बड़ा नेता था.
2001 में उप विदेश मंत्री था अब्दुल गनी बरादर
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर (Mullah Abdul Ghani Baradar) उन चार लोगों में से एक है, जिन्होंने वर्ष 1994 में तालिबान बनाया था. वर्ष 1996 से 2001 के बीच जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था, उस समय वो उप विदेश मंत्री था और वर्ष 2001 में जब अमेरिका ने तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता से बाहर कर दिया था तो उस समय यही मुल्ला बरादर NATO यानी North Atlantic Treaty Organization के खिलाफ विद्रोह का प्रमुख चेहरा था.
अमेरिका ने मुल्ला बरादर को कराया रिहा
साल 2010 में अमेरिका ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI पर दबाव बनाया कि वो मुल्ला बरादर को गिरफ्तार करे. उस समय मुल्ला बरादर कराची में छिपा था, इसलिए ISI ने उसे गिरफ्तार किया और वो 8 साल तक पाकिस्तान की जेल में बंद रहा. ये सब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा (Barack Obama) के कायर्काल में हुआ. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका ने अपनी रणनीति बदल ली और मुल्ला बरादर को अमेरिका ने तालिबान का सबसे बड़ा पॉलिटिकल लीडर बना दिया. साल 2018 में अमेरिका ने उसे पाकिस्तान से रिहा कराने के लिए दबाव बनाया और फिर उसे कतर भेजकर उससे 2020 में हुए दोहा शांति समझौते पर हस्ताक्षर कराए.
मुल्ला बरादर को सत्ता मिलने पर होंगे ये नुकसान
साल 2019 में जब तालिबान के 11 सदस्यों का एक प्रतिनिधंमंडल इमरान खान से मिला तो उनमें मुल्ला बरादर प्रमुख था यानी अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के लिए ये सारी कोशिशें पिछले तीन चार साल से चल रही थी और अब खबरें हैं कि मुल्ला बरादर को अफगानिस्तान की सत्ता मिल सकती है. अगर मुल्ला बरादर अफगानिस्तान का नया राष्ट्रपति बन गया तो आतंकवाद को दुनिया में अंतरराष्ट्रीय मंच मिल जाएगा, जहां से मुल्ला बरादर जैसे लोग आतंकवाद को सही ठहराने की कोशिश करेंगे और इससे ऐसे आतंकवादियों के भी सारे पाप आसानी से धुल जाएंगे.
हिब्तुल्लाह अखुंदजादा है अफगानिस्तान की गद्दी का दूसरा दावेदार
अफगानिस्तान की गद्दी हिब्तुल्लाह अखुंदजादा (Hibatullah Akhundzada) को भी मिल सकती है, जो तालिबान का सुप्रीम लीडर है. हिब्तुल्लाह को तालिबान का खतरनाक कमांडर होने के साथ इस्लाम धर्म का विद्वान भी माना जाता है. अवैध संबंध रखने वालों को मौत की सजा देनी हो या चोरी करने वाले लोगों के हाथ काटने का फतवा जारी करना हो, ये सभी आदेश हिब्तुल्लाह अखुंदजादा ने ही जारी किए थे.
अल-कायदा चीफ का करीबी माना जाता है हिब्तुल्लाह
हिब्तुल्लाह को अल-कायदा के चीफ का भी करीबी माना जाता है. साल 2016 में जब अमेरिका ने तालिबान के पूर्व प्रमुख अख्तर मोहम्मद मंसूर को एक ड्रोन हमले में मार दिया था तो उसके बाद ही ये जिम्मेदारी हिब्तुल्लाह को मिली थी. अख्तर मोहम्मद मंसूर वही तालिबानी नेता है, जिसने कंधार हाईजैक की आतंकवादी घटना में मसूद अजहर के रिहा होने पर उसे गले लगाया था और उस समय भी हिब्तुल्लाह उसका करीबी था.
अगर हिब्तुल्लाह को अफगानिस्तान की सत्ता मिल गई तो उसके भी सारे पाप धुल जाएंगे और लोग ये भूल जाएंगे कि 22 साल पहले रिहा होने के बाद जब मसूद अजहर तालिबान की मदद से पाकिस्तान पहंचा था तो पाकिस्तान लौटने पर उसका भव्य स्वागत हुआ था. उस समय की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक तब पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का एक बड़ा अधिकारी खुद गाड़ी चलाकर उसे रिसीव करने पहुंचे थे.
सत्ता की रेस में दो और आतंकवादी शामिल
अफगानिस्तान की सत्ता संभालने के लिए इस रेस में दो और आतंकवादी शामिल हैं. इनमें एक नाम है- सिराजुद्दीन हक्कानी, जो हक्कानी नेटवर्क का सुप्रीम लीडर है और आतंकवादी संगठन ISIS का करीबी है. दूसरा है- मुल्ला याकूब, जो तालिबान के मुख्य संस्थापक मुल्ला उमर का बेटा है.
सबसे ज्यादा महिलाओं में डर
काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद सबसे ज्यादा डर वहां की महिलाओं में हैं. अफगानिस्तान की कुल आबादी 3 करोड़ 80 लाख है, जिनमें महिलाओं की संख्या लगभग 1 करोड़ 85 लाख है. इनमें से सिर्फ 30 प्रतिशत महिलाएं ही लिखना पढ़ना जानती हैं. पिछली बार ने शरिया कानूनों को सख्ती से लागू करते हुए लड़कियों के स्कूल जाकर पढ़ने पर पाबंदी लगा दी थी और इस बार भी ऐसा हो सकता है. इसके अलावा महिलाओं को अकेले घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी. बुर्का नहीं पहनने पर महिलाओं को कोड़े मारे जाते थे और महिलाओं को गाड़ी चलाने की इजाजत नहीं थी. इसके अलावा महिलाओं को ऑफिस जाकर काम करने की भी इजाजत नहीं थी.
अफगानिस्तान की एक करोड़ 85 लाख महिलाओं के डर का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब वहां के ज्यादातर प्रांतों में बाजार बंद हैं, तब भी बुर्के की दुकानें खुली हुई हैं. इन दुकानों पर बड़ी संख्या में महिलाएं बुर्का खरीदने के लिए पहुंच रही हैं और बुर्के की मांग अचानक बढ़ने से इनकी कीमते भी बढ़ गई हैं.
दुनियाभर में ऐसी कई बड़ी संस्थाए हैं और सेलिब्रिटीज हैं, जो महिलाओं के उत्थान और उन्हें पुरुषों के बराबर अधिकार दिलाने की वकालत करते हैं. फेमिनिज्म यानी महिला सशक्तिकरण के नाम पर इन संस्थाओं और NGOs को करोड़ों रुपये का चंदा मिलता है, लेकिन आज जब अफगानिस्तान में महिलाओं का भविष्य अंधकार की तरफ जाता दिख रहा है, तब ये संस्थाएं गायब हैं.
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