नई दिल्ली (New Delhi)। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि क्या कोई समूह ‘अल्पसंख्यक’ (minority) है, इसका निर्णय वर्तमान मानकों (current standards) के आधार पर किया जाना चाहिए न कि उस स्थिति के आधार पर जो भारत के संविधान के लागू होने से पहले मौजूद थी। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) (Aligarh Muslim University (AMU)) के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़े मामले (matters related to minority status) की सुनवाई के दौरान सात सदस्यीय संविधान पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि ब्रिटिश शासन के दौरान 1920 में एएमयू की स्थापना के समय मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं थे।
द्विवेदी उन याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हो रहे थे, जिन्होंने एएमयू की अल्पसंख्यक स्थिति को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया था। द्विवेदी ने कहा, मुसलमान होना एक बात है और अल्पसंख्यक होना दूसरी बात है। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश शासन के दौरान ‘अल्पसंख्यक’ की कोई अवधारणा नहीं थी। ब्रिटिश शासन में हिंदू और मुसलमान समान रूप से पीड़ित थे। इसके अलावा एएमयू के संस्थापक ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति वफादार थे और इसलिए शासक वर्ग के इस समूह को ‘अल्पसंख्यक’ नहीं कहा जा सकता। हालांकि सीजेआई की पीठ ने संविधान के तहत अल्पसंख्यक स्थिति का आकलन करने के लिए पूर्व-सांविधानिक परिस्थितियों का इस्तेमाल करने के दृष्टिकोण पर संशय व्यक्त किया।
पीठ ने कहा, जो सवाल उठाया गया है, वह यह है कि क्या एएमयू अल्पसंख्यकों की ओर से स्थापित और प्रशासित है। प्रासंगिक यह है कि क्या वे आज अल्पसंख्यक हैं।
राजनीतिक हस्तियों पर टिप्पणी न करें : सीजेआई
सुनवाई के दौरान पूर्व पीएम इंदिरा गांधी का जिक्र करने पर पीठ ने कहा कि राजनीतिक हस्तियों पर टिप्पणी न करें। वकील ने अपनी दलील में कहा था कि अल्पसंख्यक के रूप में मुसलमान चुनावों को प्रभावित करते हैं। अगर भिंडरावाले इंदिरा गांधी की देन है तो ओवैसी भाजपा की। वे मुस्लिम वोटों को विभाजित करना चाहते हैं। इस पर सीजेआई ने कहा, हम सांविधानिक कानून के दायरे से हटेंगे नहीं। राजनीतिक हस्तियों पर टिप्पणी न करें।
संविधान से पहले स्थापित संस्था अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकती
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर इस तर्क को स्वीकार कर लिया जाए तो संविधान से पहले स्थापित कोई भी संस्था अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकती। इस पर एएमयू के लिए अल्पसंख्यक दर्जे का समर्थन करने वाले वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केरल शिक्षा विधेयक के फैसले में कहा है कि अनुच्छेद 30 का संरक्षण उन संस्थानों के लिए भी उपलब्ध है जो संविधान से पहले स्थापित किए गए थे। सीजेआई ने कहा कि पहली बार अल्पसंख्यक की अवधारणा 1950 में नहीं बनाई गई थी, जब संविधान अपनाया गया था। जब अनुच्छेद 30 कहता है ‘सभी अल्पसंख्यक’, तो यह संविधान के जन्म से पहले की सामाजिक व ऐतिहासिक स्थिति को देखता है।
संविधान से पहले के प्रतिष्ठान के लिए स्थापना के समय पर जाना होगा: जस्टिस खन्ना
पीठ के सदस्य जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, जब हम संविधान से पहले किसी प्रतिष्ठान का उल्लेख करते हैं तो हमें उस समय पर वापस जाना होगा जब संस्था की स्थापना की गई थी। न कि उस समय वह समुदाय बहुसंख्यक था या अल्पसंख्यक… बल्कि किसने इसे स्थापित किया। कौन अल्पसंख्यक है या बहुसंख्यक- इसका फैसला संविधान को अपनाने की तारीख पर किया जाएगा।
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