लो अब चार दिन के मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन भी नई पार्टी बनाएंगे… सत्ता का नशा ही कुछ ऐसा है… जो वफाओं का कत्ल कर डाले… साजिशों को परवान चढ़ा डाले… अपनों को रौंद डाले… विश्वास की लाशों पर कदम रखकर मदहोश होने की मयकशी इस कदर छाती है कि वर्षों की वफा मिनटों में तबाह हो जाती है… अपनापन नजर नहीं आता है… जुबानें खंजर बन जाती हैं… सम्मान की धज्जियां उड़ाई जाती हैं… लानतें कुछ इस तरह कसीदी जाती हैं कि सभ्य समाज शरमाने लगता है… कौन किसका अपना है हर कोई भ्रम में पड़ जाता है…इसीलिए नेता भी अपनी जमात पर भरोसा नहीं करते, क्योंकि अपने ही अपनों के खिलाफ साजिश रचते हैं… चंद दिनों के लिए जेल गए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने साथी चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया… जेल से लौटने पर जब अपना पद वापस पाया तो चंपाई सोरेन को नहीं सुहाया… इतने दिनों में सत्ता का ऐसा नशा छाया कि खुद में शहंशाही ढूंढने लगे… दलबदल कर भाजपा की झोली में सवार होने की नीयत से दिल्ली पहुंचकर जब अपनी औकात समझ आई तो न घर के न घाट के बनकर अपनी ही पार्टी बनाने की खुजली छाई… ऐसा ही सिला नीतीश कुमार को मिला था… राष्ट्रीय राजनीति में जाने की चाह में जीतनराम मांझी को चंद दिनों का मुखिया क्या बनाया कुर्सी से उतरते ही अपनी नैया खुद खैवया का चस्का लगा और अपनी ही पार्टी बनाकर नीतीश की मुखालफत करने लगे… हम भले ही लालू को अपनी अंगूठाछाप बीवी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए कोसें, मगर हकीकत यह है कि उन्हें भी नेताओं की जमात की आदत सालों पहले पता थी इसलिए उन्होंने अपना पद किसी को नहीं दिया…पढ़े-लिखे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो इन्हीं हालातों के चलते नया इतिहास बना डाला और जेल से ही सरकार चलाने और इस्तीफा नहीं देकर मुख्यमंत्री बने रहने की नई परंपरा रच डाली…अब कोई कितना भी बढ़ा अपराधी हो या आरोपी, वो कुर्सी नहीं छोड़ेगा…उसे पता है कि जिन्हें वह कुर्सी थमाएंगे वो सत्ता को घर की जागीर समझने लग जाएंगे और हर उस कवायद और कोशिशों को अंजाम देने में लग जाएंगे… जहां मोल-भाव होंगे… खरीदी-बिक्री होगी… सरकार बनाने और गिराने के हर पंैतरे आजमाए जाएंगे… फिर वो उद्धव ठाकरे को चूना लगाने वाले शिंदे हों या शरद पवार पर वार करने वाले भतीजे अजीत पवार… खुद को बनाने के लिए अपनों को मिटाना और वफा की राख से महल बनाना अब न बेवफाई कहलाता है और न साजिश… इसे शक्ति समझा जाता है और यह शक्ति सत्ता के परीक्षण में काम आती है… यहां समरथ को नहीं दोष गोसाईं की कहावत चरितार्थ हो जाती है…चुनाव के समय खुद को शक्तिशाली समझने वाली जनता यहां हार जाती है…जीतने वाले की हर हरकत को दुुनिया सूर्योदय मानते हुए नतमस्तक हो जाती है…
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