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    वीर शिवाजी की जगदंबा तलवार कब आएगी लंदन से

  • September 26, 2023

    – कौशिक कृष्ण मेहता

    राष्ट्रीय अस्मिता की आन-बान-शान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध भाजपा नीत केंद्र सरकार की कोशिश से छत्रपति शिवाजी महाराज के वाघ नख के लंदन से आने का मार्ग प्रशस्त होने के साथ बड़ा सवाल यह पूछा जा रहा है कि क्या जगदंबा तलवार को लाने की कोशिश भी की जाएगी। लोगों का सवाल पूछना जायज है। वह इसलिए कि मोदी है तो सब मुमकिन है। इसलिए देश की उम्मीदें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बढ़ जाती हैं। वाघ नख भारत के गौरव का प्रतीक है। शिवाजी महाराज ने 1659 में इसी से ही बीजापुर सल्तनत के सेनापति अफजल खान को मौत के घाट उतारा था। यह वाघ नख राष्ट्र की अमूल्य धरोहर है। वह छत्रपति शिवाजी के शौर्य, साहस और पराक्रम की प्रतीक है। महाराष्ट्र के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री सुधीर मुनगंटीवार कह चुके हैं कि ब्रिटेन के अधिकारियों ने अपने एक पत्र में वाघ नख वापस देने पर रजामंदी जता दी है।

    बाघ के पंजों से प्रेरणा लेकर बना ‘वाघ नख’ हथेली में छुपाकर अंगुलियों के जोड़ों पर पहना जाने वाले लोहे का हथियार है। इसमें चार नुकीले कांटे होते हैं। इन कांटों से दुश्मन के सीने को निशाना बनाया जाता है। इसके वार से दुश्मन की मौत होना तय मानी जाती है। मजबूत कद काठी के अफजल खान ने शिवाजी महाराज को मिलने के लिए बुलाया था। कहते हैं कि उसकी योजना छोटे कद लेकिन फौलादी इरादों वाले शिवाजी से गले मिलने के बहाने उन्हें बांहों में भरकर जान लेने की थी। मराठा छत्रप ने उसका इरादा भांप लिया। जैसे ही अफजल ने बांहों में भरकर दबाने की कोशिश की, शिवाजी महाराज ने वाघ नख से उसके सीने को चीर दिया।


    केंद्र की भाजपा नीत राजग सरकार ने इसी वर्ष मई में जानकारी दी थी कि पिछले नौ साल में विभिन्न देशों से करीब 251 प्राचीन कलाकृतियां भारत वापस लाई जा चुकी हैं। 72 और ऐसी कलाकृतियां भारत वापस लाए जाने की प्रकिया में हैं। इनमें शिवाजी महाराज की जगदंबा तलवार भी है। इस जानकारी में कहा गया था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार देश की प्राचीन वस्तुओं और कलाकृतियों को दुनियाभर से वापस लाने के लिए प्रतिबद्ध है। 24 अप्रैल तक भारतीय मूल की 251 कीमती वस्तुएं विभिन्न देशों से वापस लाई गईं। इनमें से 238 वस्तुएं 2014 के बाद से वापस लाईं गई हैं। इन कलाकृतियों में करीब 1100 वर्ष पुरानी नटराज मूर्ति और नालंदा संग्रहालय से करीब छह दशक पहले गायब बुद्ध की 12वीं सदी की कांस्य प्रतिमा है।

    यह ऐतिहासिक तथ्य है कि शिवाजी महाराज के पास तीन तलवारें थीं। इनके नाम थे भवानी, जगदंबा और तुलजा। इनमें से भवानी और तुलजा कहां हैं, इसके बारे में किसी को कोई भी जानकारी नहीं है। दोनों तलवारें करीब 200 साल से गायब हैं। जगदंबा तलवार जरूर लंदन में विक्टोरिया-अल्बर्ट संग्रहालय में है। इस तलवार के वापसी के लिए भी भारत प्रयास कर रहा है। कोशिश यह है कि शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगांठ (वर्ष 2024) के पहले इसे देश लाया जाए।

    नरेन्द्र मोदी सरकार की कोशिश यह है कि कोहिनूर हीरा, टीपू सुल्तान के बाघ (खिलौना), महाराजा रणजीत सिंह के सिंहासन, भगवान बुद्ध की प्रतिमा और संगमरमर की सरस्वती प्रतिमा को भी जल्द भारत लाया जाए। दुनिया में मशहूर बेशकीमती कोहिनूर हीरा इस समय ब्रिटिश राजपरिवार के पास है। कोहिनूर हीरा 105.6 कैरेट का है। इस हीरे के बारे में कहा जाता है कि इसे न तो कभी खरीदा गया और न ही किसी ने बेचा। इसे या तो युद्ध में जीता गया या फिर किसी शासक ने दूसरे को तोहफे के रूप में दिया। यह हीरा भारत की गोलकुंडा खान से निकला था। ईस्ट इंडिया कंपनी के पास जाने से पहले यह महाराणा रणजीत सिंह के खजाने में था। 1849 में यह ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ लगा। इसके बाद उसे ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के पास पहुंचा दिया गया। केंद्र सरकार इसे वापस लाने के कूटनीतिक प्रयास कर रही है। टीपू सुल्तान का बाघ 18वीं शताब्दी का आटोमैटिक खिलौना है। इस खिलौने में एक बाघ को आदमकद यूरोपीय व्यक्ति का शिकार करते हुए दर्शाया गया था। यह कलाकृति भी इस समय लंदन के म्यूजियम हैं।

    अंग्रेज अपने साथ सिखों के पहले महाराजा रणजीत सिंह का सिंहासन भी ले गए थे। इसका निर्माण 1820-1830 के बीच हाफिज मुहम्मद मुल्तानी ने किया था। यह लकड़ी और रेजिन से बना है। इस पर सोने की परत चढ़ाई गई थी। सिंहासन लंदन के विक्टोरिया ऐंड अल्बर्ट म्यूजियम में है। ज्ञान की देवी मां सरस्वती की नक्काशीदार संगमरमर की मूर्ति भी ब्रिटिश संग्रहालय में है। वर्ष 1034 ईस्वी में उत्कीर्ण यह मूर्ति मध्य प्रदेश के भोजशाला मंदिर का हिस्सा रही है। खड़ी मुद्रा में भगवान बुद्ध की मूर्ति करीब दो मीटर ऊंची है। इसका वजन 500 किलोग्राम है। 1862 में रेलवे निर्माण के दौरान ब्रिटिश इंजीनियर ईबी हैरिस को यह मूर्ति मिली थी। यह इस समय बर्मिंघम संग्रहालय में है।

    (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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