अब तो समझो इस देश को…देश के परिवेश को…आजाद जिंदगी… आजाद ख्यालात…आजाद सरजमीं… आजाद रहन-सहन… अपनी सरकार, अपना मताधिकार… अपनी रियासत, अपनी सियासत…अपना धर्म, अपना मजहब… और मजहब की आजादी… चाहे जैसे रहते हैं, चाहे जैसा पहनते हैं… फिर क्यों जेहाद-जेहाद करते हैं… तालिबान ने किया क्या है… शरीयत कानून ही तो लागू किया है…जो मजहबी पाबंदियों को नहीं मानेगा वो जान से जाएगा… सरेआम कोड़े खाएगा…हर पुरुष दाढ़ी रखेगा… नमाज पढ़ेगा, कोई चोरी नहीं कर सकेगा… शराब, सिगरेट से तौबा करेगा… महिलाएं ढंकी हुई रहेंगी…पढ़ाई तक नहीं करेंगी… कामकाज की बात तो दूर तक नहीं सोच सकेंगी…यदि यह शरीयत है तो विरोध क्यों और प्रतिरोध कैसा…यदि यही जेहादी चाहते हैं…दुनिया के हर मुल्क के मुसलमानों को ऐसी ही जिंदगी का तोहफा देना चाहते हैं तो पहले तालिबानियों को सजदा कीजिए… उस जिंदगी पर एहतराम कीजिए…फिर आजाद मुल्कों को पाबंद करने की कोशिश कीजिए… लेकिन हकीकत यह है कि कोई भी धर्म हो या मजहब, मन से माना जाता है… इंसानियत को सबसे बड़ा फर्ज समझा जाता है…जब दुआएं दिल से अंजाम पाती हैं तो मजहब के लिए बर्बरता कैसे अपनाई जा सकती है … कोड़े मारकर मजहब को मनवाना, जान लेकर जिंदगी की झलक दिखाना किसी इंसानियत का सबक नहीं हो सकता…हिन्दुस्तान में इस्लाम जितना महफूज और मुसलमान जितना अमनो-खैरियत से है, वो किसी दूसरे मुल्क में नहीं हो सकता…यहां मजहब का पालन भी होता है और इस्लाम का इकरार भी…यहां आजादी भी है और पाबंदियां भी… देश की सरकार मुस्लिमों को शरीयत पालने की आजादी भी देती है और काजी-मौलवियों को पाबंदी के अधिकार भी…यहां महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर अपना तारूफ कायम करती हैं…अपना वजूद बनाती हैं… यहां पुरुष अब्दुल कलाम बनकर मुल्क चलाते हैं… यहां दाढ़ी रखने या न रखने के झगड़े नहीं किए जाते… यहां इस्लाम मुस्कराता है…यहां मंदिर और मस्जिद दोनों को समान अधिकार दिया जाता है…यहां हिन्दू और मुसलमान दोनों मिलकर सरकार बनाते हैं…फिर ये जेहादी और कंगले पाकिस्तानी अपनी टांग क्यों फंसाते हैं…और यदि वो टांग फंसाते हैं तो उन्हें इस देश के मुसलमान खुद सबक क्यों नहीं सिखाते हैं… इस सवाल के आईने में ढेरों सवाल खड़े हो जाते हैं… इस हकीकत को जो समझना चाहे, वो अफगानिस्तान पर नजर डाले…मरते, गिरते लोग, भूखे मरते मासूम बच्चे…कैद में बिलखती युवतियां, आंसू बहाती महिलाएं, लुटे हुए कारोबार…देश से भागने की जद्दोजहद… विमान के टायरों में छिपकर जिंदगी बचाने की कोशिश में मरते लोग…यही अफगान है और यही जेहादियों का अरमान है…फैसला फासले पर ही खड़ा है…जो चाहिए अपनाइए… अफगान चाहिए या अपने मुल्क का एहतराम… यदि करते हैं अपने वतन से प्यार तो देश का तिरंगा उठाइए…देश का मान बढ़ाइए और जेहादियों के मंसूबों को मिटाइए…
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