नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भी CrPC के सेक्शन 125 के अंतर्गत गुजारा भत्ता लेने का हकदार ठहराया है. इस फैसले के बाद मुस्लिम संगठनों में हलचल मच गई है. जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने आज यानी 11 जुलाई को लीगल टीम की बैठक बुलाई है, जो कोर्ट के इस फैसला का अध्ययन कर आगे की रूपरेखा तैयार करेगी. इसके अलावा भी कई मुस्लिम मौलवी और संगठनों से जुड़े लोगों ने इस पर अपनी राय जाहिर की है. कुछ का कहना है कि कोर्ट का ये फैसला शरिया कानून में दखल है और मर्दों के साथ नाइंसाफी है.
उम्मीद है कि जमीयत उलेमा ए हिंद आज मीटिंग के बाद कोर्ट के इस फैसले पर रिव्यू पिटीशन डाल सकती है. ऐसा ही फैसला 1985 में शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया था. लेकिन उस वक्त बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों की वजह से तत्कालीन राजीव सरकार ने ‘मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डाइवोर्स एक्ट 1986’ लागू कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को डाइल्यूट कर दिया था. अब फिर सुप्रीम कोर्ट ने वैसा ही फैसला दोहराया है और फिर से देश में माहौल गरमा गया है.
झारखंड के शहर के काजी मौलाना मोहम्मद मसूद फरीदी ने फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हमारे मजहब में निकाह सुन्नत है. मिया बीवी ऐसा रिश्ता है जो निकाह तक महदूद रहता है, मर्द निकाह करता है तो उसी वक्त कहता है कि मैं इसका (बीवी) सब खर्च उठाऊंगा. लेकिन जब वो निकाह में नहीं रही, तब क्या जिम्मेदारी बनती है?”
उनके मुताबिक तलाक के बाद मेंटेनेंस का कोई मसला नहीं बनता है. उन्होंने कहा, “ये मुसलमानों का मसला है, शरिया में तलाक के बाद कुछ बचता ही नहीं, फिर क्या बचा? अब ऐसे पहले वाली को देता रहेगा तो दूसरी बीवी को कहां से देगा?”
वहीं कोलकाता की नाखोड़ा मस्जिद के इमाम मौलाना शफीक कासमी ने बताया, “शरिया के कानून के हिसाब से तलाक के बाद शौहर को मेहर देना होता है, कुछ लोग मेहर निकाह के वक्त दे देते हैं कुछ बाद में. गुजारा भत्ता इस्लामी शरिया के खिलाफ है.”
उन्होंने इस फैसले को मर्दों के साथ नाइंसाफी बताया और ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आगे कुछ हो नहीं सकता, लेकिन अपनी राय तो रख सकते हैं.
धर्म गुरुओं ही नहीं राजनेता भी इस बहस में कूद गए हैं. समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक एसटी हसन ने कहा, “गुजारा भत्ता उस महिला के लिए जायज है, जिसके शौहर (पति) ने दूसरी शादी के चक्कर में तलाक दी हो. लेकिन किसी की बीवी करप्ट है या किसी और के साथ चली गई, उसे कैसे भत्ता दिया जाए.”
देवबंद के मुफ्ती असद कासमी देवबंदी ने कहा यह तो हमारे इस्लाम मे शुरू से चला आ रहा है. निकाह के वक्त मेहर 5 आदमियों की मौजूदगी में तय होते हैं, कुछ लोग पहले दे देते हैं और कुछ लोग बाद में अता करते हैं. रहा तलाकशुदा का मामला तो कोर्ट के इस फैसले का हम एहतराम करते हैं. इसमें किसी को कोई एतराज नहीं होना चाहिए.
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