उज्जैन। मातृ शिशु चरक अस्पताल में लंबे समय से गर्भवती महिलाओं के डिलेवरी के लिए यहाँ से निजी अस्पतालों में रैफर करने का खेल चल रहा है। यह खेल अब यहाँ से होते हुए जिला अस्पताल और माधवनगर सरकारी अस्पताल के कई वार्डों तक पहुँच गया है। गर्भवती महिला को चरक अस्पताल से रैफर करने की शिकायत मिलने पर एक दिन पहले कलेक्टर ने जब अस्पताल का दौरा किया तो ओपीडी से लेकर वार्डों तक में अनियमितताएँ पाई और उन्होंने चरक अस्पताल की प्रभारी महिला डॉक्टर सहित अन्य डॉक्टर और कर्मचारियों पर कार्रवाई की थी इसके बाद आज सुबह सिविल सर्जन ने बैठक बुलाई।
सिंहस्थ के दौरान 100 करोड़ की लागत से बनाए गए 7 मंजिला मातृ-शिशु चरक अस्पताल में कई सालों से प्रसूताओं को यहाँ पदस्थ डॉक्टर और स्टाफकर्मी निजी अस्पतालों से मिलीभगत कर कभी डॉक्टरों की कमी तो कभी उपचार सुविधाओं का अभाव बताकर निजी अस्पतालों में रैफर करते रहे हैं। इतना ही नहीं शाम ढलते ही चरक अस्पताल परिसर में निजी मेटरनिटी अस्पतालों की एम्बुलेंस मरीजों को यहाँ से ले जाते हुए कई बार मीडिया के कैमरों में कैद हुई। इसी तरह की सूचना मिलने पर गुरुवार को कलेक्टर आशीष सिंह कल दोपहर में चरक अस्पताल पहुँचे। यहाँ गर्भवती महिला को अनावश्यक निजी चिकित्सालय में रैफर करने के कारण महिला चिकित्सक डॉ. रेखा गोमे को कलेक्टर ने तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया, साथ ही अस्पताल में पाई गई अनियमितताओं के कारण सिविल सर्जन डॉ. पीएन वर्मा एवं आरएमओ डॉ. जितेंद्र शर्मा का 7-7 दिन का वेतन काटने के निर्देश दिए। इसके साथ ही कलेक्टर ने आर्थोपेडिक ओपीडी में किसी भी डॉक्टर के उपस्थिति नहीं पाए जाने पर आर्थोपेडिक सेक्शन के इंचार्ज डॉ. महेश मरमट का एक माह का वेतन काटने के निर्देश दिए, साथ ही उन्होंने इस दिन की ड्यूटी वाले डॉ. अजय दंडोतिया के ओपीडी में अनुपस्थित पाए जाने पर उनकी विभागीय जाँच करने के निर्देश देते हुए एक माह का वेतन काटने के लिए आदेश दिए।
इन डॉक्टरों पर गिरी गाज, बोखला गए डॉक्टर
कलेक्टर ने इस लापरवाही पर तत्काल प्रभाव से फार्मेसी, स्टोर, परचेज सेक्शन देखने वाले शाखा प्रभारी रजत गांधी, विजय शर्मा एवं राघवेंद्र का साथ 7-7 दिन का वेतन काटने के निर्देश दिए हैं। साथ ही सिविल सर्जन को निर्देश दिया कि संबंधित महिला को रेडक्रास से तुरंत दवा खरीद कर दी जाए। कलेक्टर ने आरएमओ को निर्देश दिए हैं कि सभी डॉक्टर व कर्मचारियों की उपस्थिति बायोमेट्रिक मशीन के द्वारा ली जाए। उन्होंने कहा कि सॉफ्टवेयर में अलग-अलग टाइम में अलग-अलग शिफ्ट में काम करने वाले कर्मचारियों की बायोमेट्रिक से उपस्थिति ली जाए।
कलेक्टर के आदेश के बाद बैठक, कार्रवाई को लेकर असंतोष जता रहे हैं कुछ डॉक्टर
इधर कलेक्टर की एक दिन पहले बड़ी कार्रवाई के बाद आज सुबह सिविल सर्जन पी.एन. वर्मा ने अपने कक्ष में जिला अस्पताल के चिकित्सकों की बैठक बुलाई। हालांकि इस बैठक से मीडिया को दूर रखा गया। अस्पताल सूत्रों ने बताया कि सिविल सर्जन डॉ. वर्मा ने यह बैठक कल कलेक्टर द्वारा डॉ. रेखा गोमे और अन्य डॉक्टरों सहित स्टाफ कर्मियों पर की गई कार्रवाई के विरोध में बुलाई है। बैठक में सभी चिकित्सकों ने कार्रवाई पर नाराजगी जताई और निरीक्षण के दौरान कलेक्टर ने जो गड़बडिय़ाँ पकड़ी और जवाब माँगे हैं उनसे किस तरह पार पाया जा सकता है इस पर चर्चा हुई। कुल मिलाकर कलेक्टर के दौरे के बाद जिला अस्पताल में अब खामियों पर पर्दा डालने की तैयारियाँ शुरु हो गई है।
ऐसे खुली फार्मेसी सेक्शन की पोल
कलेक्टर जब सिविल अस्पताल का भ्रमण कर रहे थे उसी दौरान शांति नगर निवासी महिला कांताबाई ने पर्चा दिखाते हुए कहा कि 3 माह से दवाई के लिए भटक रही है और उन्हें दवाई नहीं मिल रही है। बाजार से लाकर दवा खाना पड़ रही है। पर्चा देखने पर कलेक्टर को पता चला कि साइकेट्रिस्ट डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवा फार्मेसी सेक्शन से नहीं दी जा रही। कलेक्टर तत्काल फार्मेसी कक्ष में पहुँचे तथा कंप्यूटर में इन्वेंटरी की जाँच की तथा साइकेट्रिस्ट डॉ. विनीत से इस मामले में बातचीत की तो पचा कि तीन माह से उक्त दवा स्टोर में नहीं है और इसकी कमी को पूरा करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि लंबे समय से धांधली की शिकायतें आ रही थी लेकिन मामला दब जाता था।
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