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    जब आरोप ही अपराध बन जाए, निरपराध भी सजा पाए…तो कोई क्यों न मौत को गले लगाए…

  • December 14, 2024

    एक उंगली भी उठ जाए तो चैन लुट जाता है… घर में मायूसी छा जाती है… परिवार मातम में डूब जाता है…. इस सदमे से घिरे व्यक्ति को अपना जीवन मौत से बदतर नजर आता है… और फिर यदि यही आरोप बिना किसी अपील-दलील या सबूत के अपराध और सजा में बदल जाए तो कोई क्यों न मौत को गले लगाए… जिंदा रहकर कानून से लडक़र, परिवार से बिछडक़र कब तक लड़ता नजर आए… उसकी विपदा कौन समझ पाए… परिवार की महिलाओं लज्जित होकर जब कानून की दहलीज पर माथा रगड़ती हंै… बदहवास बच्चे अपने पिता की खातिर जगह-जगह लज्जित होते हैं… घर की पूंजी लुट जाती है… परिवार कर्ज में डूब जाता है… उस पर भी कानून अकड़ दिखाए तो कौन मौत को गले न लगाए… यही हुआ आष्टा के परमार दम्पति के साथ… यही हुआ ग्वालियर में कांग्रेस नेता माहौर के साथ… परमार के घर ईडी ने छापा मारा था और माहौर पर तो केवल प्रकरण दर्ज किया था… माहौर को तो मौका था खुद को बेगुनाह साबित करने का, लेकिन परमार को डर था केवल आरोप पर ही जेल जाने का… केंद्र ने ईडी कानून को इतना सख्त बनाया है कि केवल आरोप मढऩे पर ही आरोपी को जेल जाना पड़ता है… महीनों ही नहीं सालों तक जमानत के लिए तरसना पड़ता है… अदालतों के चक्कर और कानून के खर्चों से ही परिवार तबाह हो जाता है… अपने परिजन की हालत देखकर जेल में बंद आरोपी और जेल के बाहर उसे छुड़ाने के लिए संघर्ष करते परिवार की हालत देखकर दिल दहल जाता है… फिर हमारी जेलों में बिना रिश्वत के रोटी भी नहीं मिलती… सुविधा तो दूर संघर्ष की स्थिति में जीवन गुजारने की कल्पना से लोग सिहर जाते हैं… यहां कानून की वह अवधारणा दम तोड़ देती है कि सौ गुनहगार छूट जाएं, पर एक बेगुनाह सजा न पाए… हो उलटा रहा है… यहां हजारों बेगुनाह सजा पाते हैं और बरी होने के बाद भी उनकी यातनाओं के दिन लौटकर नहीं आते हैं… माना कि काले धन की हवालागीरी एक संगीन अपराध है… इसी अपराध के चलते देशद्रोह और आतंक जैसी घटनाएं होती हैं… उस पर सख्ती और कानून सख्त होना चाहिए…. लेकिन अदालतों को यह भी तय करना चाहिए कि जांच एजेंसियां 90 दिन की तय अवधि में चालान पेश करें… न कर सकें तो दोगुना-तिगुना समय ले लें, लेकिन सालों बिना कारण बताए… बिना सबूत जुटाए किसी को जेल में ठूंसे रखना… यातनाएं देना जहां किसी अंग्रेजी हुकूमत की तरह ज्यादती की इंतहा है, वहीं कालेपानी की सजा से कम नहीं है… इन्हीं जुल्मों से आजादी के लिए हमने सालों गंवाए और हमारे अपने यदि ऐसे ही जुल्म ढाएं तो अदालतें उन पर रोक लगाएं… लोग अपराध की सजा पाएं, न कि आरोपों पर मौत को गले लगाएं… राम नाम की कसमें खाने वाली सरकार एक धोबी के आरोप के कारण पत्नी और बच्चों से जुदा होने वाले भगवान का दर्द यदि समझ पाए तो शायद परिवार अग्नि परीक्षा से बच जाए…

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