नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना दिवस और विजयादशमी के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में अपने संबोधन में ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म को लेकर कहा कि इस पर जो कुछ दिखाया जाता है, उस पर कोई नियंत्रण नहीं है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि ओटीटी के लिए सामग्री नियामक ढांचा के तहत हो। सरकार को इसके लिए प्रयास करना चाहिए। उनके इस बयान के बाद इस बात पर फिर बहस छिड़ गई है कि क्या ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नियंत्रण की जरूरत है?
कोरोना महामारी के दौरान लॉकडॉउन लगने और लंबे समय तक लोगों के घरों में बंद रहने के दौरान नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, डिज़नी + हॉटस्टार, जी प्राइम, सोनी लिव और वूट समेत ओटीटी प्लेफॉर्म का क्रेज लोगों में खूब देखा गया। इस दौरान सिनेमाहॉल भी बंद रहे तो लोगों ने ओटीटी के जरिए ही अपना मनोरंजन किया। आए दिन नए-नए वेबसीरीज बनने लगे और उसे अलग-अलग ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखाया जाने लगा। ओटीटी ने सिनेमाघरों, बड़े सितारों और बड़े घरानों का वर्चस्व समाप्त किया।
ओटीटी प्लेटफॉर्म के आने से छोटे कलाकारों और नए लोगों को मौके मिलने लगे। स्क्रिप्ट पर काम शुरू हुआ। लेकिन कई वेबसीरीज में हिंसा, नग्नता और अश्लीलता की भरमार के कारण इसकी खूब आलोचना भी होने लगी। आरोप यह लगने लगे कि सिनेमाहॉलों का एकाधिकार समाप्त करने और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण हिंसा और नग्नता का सहारा लिया जाने लगा। इसके पीछे की एक बड़ी वजह यह मानी गई कि टीवी चैनलों की तुलना में, ओटीटी प्लेटफार्मों को अब अधिक रचनात्मक स्वतंत्रता प्राप्त है क्योंकि वर्तमान में इसके लिए कोई नियम नहीं है। हमने इस विषय पर अलग-अलग विशेषज्ञों की राय जानने की कोशिश की।
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