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    …जब मर्सिडीज लाई थी अपना टाइपराइटर, आज इंटरनेशनल टाइपराइटर-डे

  • June 23, 2022

    इंदौर के शख्स के पास 425 टाइपराइटर, 8 साल में किए इकट्ठा
    इंदौर।  आज भले ही टाइपराइटर (Typewriter) की उपयोगिता को कम्प्यूटर (Computer), लैपटॉप (Laptop) और मोबाइल (Mobile) ने कम कर दिया हो, लेकिन एक वो समय भी था, जब टाइपराइटर (Typewriter) की उपयोगिता और ग्लैमर से बड़े व्यावसायिक समूह (Business Group) आकर्षित होते थे। मार्केट में आज बड़ा नाम रखने वाली कंपनियां उस समय बाजार में अपने टाइपराइटर लेकर आई थीं। इनमें मर्सिडीज (Mercedes), ट्रॉयम्प और हालडा (Halda) जैसी कंपनियां शामिल हैं।


    आज इंटरनेशनल टाइपराइटर-डे  (International Typerider-Day) है और इंदौर में एक ऐसा शख्स मौजूद है, जिसने अपने अनूठे शौक के चलते 8 साल में 425 टाइपराइटर  (Typewriter) इक_ा कर लिए हैं। कई टाइपराइटर तोहफे में मिले हैं तो कुछ उन्होंने खरीदे हैं। खास बात ये है कि मर्सिडीज का 1922 में लाया गया टाइपराइटर (Typewriter) भी इस कलेक्शन में मौजूद है।


    अलग-अलग तरह की कई मशीनें
    शर्मा के कलेक्शन में दृष्टिहीन लोगों के लिए खास रूप से डिजाइन की गई ‘ब्रेल शॉर्टहैण्ड मशीन’ भी है। मशीन ब्रेल भाषा के 6 डॉट्स के स्थापित भाषा विज्ञान के आधार पर काम करती है। इस मशीन को भारत सरकार के उपक्रम आर्टिफिशियल लिम्ब मेन्यू कॉरपोरेशन, देहरादून ने 2008 में बनाया था। इसके अलावा स्वीडन राज परिवार के प्रिंस सिग्वार्ड बर्नाडोत्ते की डिजाइन की गई मशीन भी संग्रह का हिस्सा है। फेकिट टीपी1 को प्रिंस ने 1961 में बनाया था और इसे ‘प्रिंस ऑफ टाइपराइटर्स’ कहा जाता है। शर्मा को 1948 का एक तोशिबा टाइपराइटर (Typewriter) जापान से तोहफे में मिला है। ये उन्हें उनके सोशल मीडिया ( Social Media) दोस्त मसाकी इनाजुमी ने हिरोशिमा से भेजा था। मसाकी विश्व के जाने-माने टाइपराइटर संग्राहक है। यह 3 भाषाओं जेपीनिस, चाइनीस और इंग्लिश में ड्राई इंक से प्रिंट करता है। इसके अलावा भी संग्रह में कई अलग तरीके के और अनेक देशों के टाइपराइटर (Typewriter) मौजूद हैं, जो बिल्कुल चलने की अवस्था में है।


    पिता से मिली प्रेरणा
    इस अनूठे कलेक्शन को करने वाले राजेश शर्मा चित्रकारी का शौक भी रखते हैं। उनके पिता जिला कोर्ट के बाहर टाइपिंग का काम करते थे। अक्सर अपने पिता को टाइपराइटर (Typewriter) पर टाइपिंग करते देखा, तो एक दिन यह विचार आया कि इसका संग्रह किया जाना चाहिए। 8 साल में सैकड़ों टाइपराइटर इक_ा हो गए और हालात यह है कि अब घर में टाइपराइटर (Typewriter) रखने की जगह भी नहीं बची। शर्मा बताते हैं कि कई टाइपराइटर (Typewriter) तो उन्हें तोहफे में मिले, तो कई टाइपराइटर कबाड़ की दुकान से उन्होंने लिए हैं। खराब हालात में मिले टाइपराइटर को खुद ही चलने लायक भी बनाया। वे चाहते हैं कि आज का युवा जो इसे नहीं जानता, वो आगे आए और टाइपराइटर के बारे में भी जानें और सीखें। शर्मा बताते हैं कि तकनीक के इस युग में एक राहत की बात ये भी है कि व्यावहारिक चलन से बाहर होने के बावजूद दक्षिणी भारत के राज्यों में आज भी टाइपराइटर टाइपिंग की कई क्लासेस चलाई जा रही हैं। वहां सरकारी नौकरी के लिए आज भी युवाओं को टाइपिंग परीक्षा पास करनी होती है, जिसके चलते युवाओं में इसे लेकर उत्साह देखा जा रहा है। यहां भी युवा इसे जानने के लिए आगे आ रहे हैं।


    इसलिए मनाते है ये दिन
    टाइपिंग मशीनों के उपयोग को अपनाने, बढ़ावा देने और साझा करने के लिए लोगों द्वारा यह दिन दुनियाभर में आज के दिन मनाया जाता है। 23 जून 1868 को अमेरिका में पहली कमर्शियल टाइपराइटर मशीन का पेटेंट नंबर 79,265 पर रजिस्टर्ड हुआ। इससे पहले चरणबद्ध तरीके से इसके आविष्कार होते रहे। एशिया में सबसे पहले टाइपराइटर (Typewriter) का निर्माण 1955 में भारत में हुआ था। पहले मैनुअल टाइपराइटर (Typewriter) को विशेष रूप से भारतीय इंजीनियरों द्वारा अकेले डिजाइन कर पूरा किय गया और इसको बनाने का विचार नवल गोदरेज ने दिया था। 1980 के दशक के अंत तक, गोदरेज द्वारा एक साल में 50,000 टाइपराइटर बेचे जाते थे।

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