• img-fluid

    जब मेनका ने गुस्से में शादी की अंगूठी संजय गांधी पर फेंकी, आवक रह गईं इंदिरा गांधी

  • November 28, 2020


    नई दिल्ली। 1974 में जब संजय गांधी की मेनका गांधी से शादी हुई, तो इंदिरा गांधी के परिवार के अंदर कोई खास बदलाव नहीं हुआ। कुछ हल्की खटास जरूर थी, लेकिन इंदिरा और सोनिया, दोनों मेनका के प्रति सहानुभूति रखती थीं। आम भारतीय परिवार की तरह बतौर बड़ी बहू सोनिया का खास मुकाम था। किचेन और खाने का मेन्यू वही तय करती थीं। मेनका की किचेन में रुचि भी नहीं थी, पर यह कोई मसला नहीं बना। वे इंदिरा गांधी को स्पीच तैयार करने में पूरी मदद करती थीं। इमरजेंसी हटने के बाद 1977 में जब इंदिरा गांधी सत्ता से बाहर थीं, और जनता सरकार के निशाने पर थीं, तो मेनका सूर्या मैगजीन संभालती थीं, और इसका इस्तेमाल उन्होंने इंदिरा के विरोधियों पर हमलावर होने में किया। मैगजीन के जरिए मेनका ने खुद को पारिवारिक हितों की सबसे प्रखर रक्षक के रूप में साबित किया और उन लोगों को भी बेनकाब किया, जो इंदिरा की छवि को नुकसान पहुंचाना चाहते थे। हालांकि जब-तब परिवार के अंदर झगड़े भी होते रहे।

    एक बार तो मेनका संजय से इतनी नाराज हुईं कि उन्होंने अपनी शादी की अंगूठी हाथ से निकाल कर संजय पर फेंक दी। इससे इंदिरा गांधी बेहद खफा हुईं, क्योंकि अंगूठी उनकी मां कमला नेहरू की दी हुई थी। तभी सोनिया गांधी ने उस अंगूठी को उठाया और इंदिरा से बोलीं कि वे इसे प्रियंका के लिए रखेंगी। इंदिरा ने मेनका को उनकी शादी के मौके पर हीरा जड़ित यह अंगूठी, दो सेट सोने के आभूषण, 21 जोड़े बेहतरीन साड़ियां, साथ ही एक अदद खादी की वह साड़ी, जो जवाहर लाल नेहरू ने जेल में बुनी थी, बतौर गिफ्ट दी थी। परिवार के अंदर एक और बड़ी लड़ाई के साक्षी बने थे बीके नेहरू। उन्होंने देखा कि अंडों के ठीक से नहीं बनने पर संजय ने सोनिया गांधी के प्रति अपनी नाराजगी का इजहार किया। नेहरू के अनुसार इस वाकये पर इंदिरा ने संजय पर कोई गुस्सा तो नहीं दिखाया, लेकिन उन्हें शर्मिंदगी जरूर हुई।

    वरिष्ठ पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह भी याद करते थे कि किस तरह राजीव और संजय में कुछ मुद्दों पर गतिरोध था। वे लिखते हैं, ‘एक बार मैं खुद वहां मौजूद था, जब राजीव और सोनिया अपने एक बच्चे का जन्मदिन मना रहे थे। मैंने देखा कि दोनों भाई और उनकी पत्नियां अलग-अलग हिस्सों में हैं और उनका आपस में संवाद बहुत ही कम है।’ राजीव और सोनिया दोनों को आपातकाल का फैसला पसंद नहीं था, लेकिन दोनों ने इस पर हमेशा चुप रहना ही मुनासिब समझा। एक बार सोनिया गांधी तब ओडिशा के सबसे कद्दावर नेता बीजू पटनायक के बेटे नवीन पटनायक से मिलीं। आपातकाल के दौरान बीजू पटनायक भी जेल भेजे गए थे। सोनिया ने पार्टी स्टैंड से इतर नवीन के प्रति सहानुभूति दिखाई। दरअसल इंदिरा परिवार की दोनों बहुओं के तमाम मसलों पर रुख बिल्कुल अलग-अलग थे। यह स्वाभाविक भी था क्योंकि दोनों अलग-अलग परिवेश की थीं।

    सोनिया के मुकाबले मेनका ज्यादा मुखर थीं। नाप-तौल कर बोलने की उनमें गुंजाइश कम ही देखी गई। इमरजेंसी के दौरान मेनका गांधी की मां इंदिरा गांधी के साथ परछाईं की तरह रहती थीं। संजय और मेनका के बीच छोटे-छोटे मसलों पर बहस हुआ करती थी, लेकिन इसका सामना पूरे परिवार को करना पड़ता था। हालांकि शुरू के सालों में आपस के रिश्ते बहुत अच्छे थे और परिवार ने बेहतरीन समय साथ में बिताया था। 1977 के आम चुनाव में हार के बाद इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री आवास खाली करना पड़ा था। वे अपने पूरे परिवार के साथ 12, विलिंगटन क्रिसेंट में रहने चली गई थीं। वह इंदिरा और उनके परिवार के लिए कठिन वक्त था। परिवार के रसोइए की मौत इलाहाबाद में सड़क दुर्घटना में हो गई थी। इंदिरा गांधी उनकी जगह दूसरा रसोइया रखने में हिचक रही थीं। उन्हें डर था कि कहीं साजिश के तहत कोई जासूस वहां न भेज दिया जाए, जो उनके परिवार को जहर दे दे।

    इस कठिन समय में सोनिया गांधी ने इंदिरा गांधी के लिए खाना बनाने का जिम्मा संभाला। वे उन दिनों दिल्ली के खान मार्केट में सब्जी और घर की दूसरी जरूरी चीजों की खरीदारी करते हुए दिखती थीं। उस घर के पीछे बने बागीचे में सोनिया ने सब्जी की खेती शुरू की। जब अपने घर के बागीचे में उगी सब्जी परोसी गई, तो पूरे परिवार ने उसकी खूब तारीफ की। संजय ने तब सोनिया को इंदिरा की आदर्श बहू की संज्ञा दी। कई मोर्चे पर चुनौतियों का सामना कर रहीं इंदिरा जब भी मौका मिलता, सोनिया गांधी की तारीफ जरूर करतीं। इंदिरा की यह तारीफ मेनका को नागवार गुजरती थी। मेनका को लगता था कि सूर्या मैगजीन के जरिए वे भी इंदिरा गांधी की मदद कर रही हैं, लेकिन उनके मुकाबले सोनिया को ज्यादा तरजीह मिल रही है। क्या सिर्फ इसलिए कि वे घर का चौका-बरतन संभालती हैं?

    मेनका और सोनिया के बीच कुछ दिनों के लिए अस्थाई मित्रता तब हुई, जब मेनका वरुण की मां बनने वाली थीं। तब जेठानी के रूप में सोनिया मेनका का ख्याल रखती थीं। खानपान और स्वास्थ्य की बुनियादी जरूरतों पर उन्हें सलाह देती थीं। यह सब मार्च 1980 तक चला, जब वरुण का जन्म हुआ। मेनका का 12, वेलिंगटन क्रेसेंट से अलग ही लगाव था। यही वह जगह थी, जहां मेनका ने संजय को नजदीक से समझा और जाना। संजय गांधी जब भारत को आधुनिक राष्ट्र में बदलने की जल्दी में थे, मेनका को लगता था कि संजय को गलत समझा जा रहा है। उन्हें लगता था कि आपातकाल के दौरान संजय का गुनाह उतना नहीं था, जितना प्रचारित कर दिया गया था। इस बारे में वे अक्सर सार्वजनिक मंच से बात भी करती थीं।

    Share:

    पश्चिम रेलवे की राजधानी और शताब्‍दी ट्रेनों के समय में एक दिसम्बर से संशोधन

    Sat Nov 28 , 2020
    मुंबई । राजधानी और शताब्दी ट्रेनों सहित पश्चिम रेलवे की कुछ विशेष ट्रेनों के परिचालन समय में संशोधन किया जाएगा। पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी सुमित ठाकुर के अनुसार पारिचालनिक कारणों से कुछ ट्रेनों के समय में 1 दिसम्‍बर, 2020 से संशोधन किया जा रहा है। इन ट्रेनों के समय में संशोधन का विवरण […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    सोमवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved