प्रभुनाथ शुक्ल
राजस्थान में पानी की किल्लत का फिलहाल दीर्घकालीन समाधान नहीं निकल रहा है। पिछले दिनों जालोर जिले में प्यास लगने और पानी न मिलने की वजह से मासूम बच्ची ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। मीडिया रिपोर्ट में जो बताया गया है उसके अनुसार बुर्जुग महिला सुखी देवी अपनी पोती के साथ पैदल रेतीले रास्ते से खुद के मायके जा रही थी। रास्ते में जब पोती और दादी को प्यास लगी तो 12 किमी की पैदल यात्रा में उन्हें कहीं पानी नहीं दिखा। जिसकी वजह से पोती की प्यास से तड़प कर मौत हो गयी। दादी की जान किसी तरह मौसम नम होने और चरवाहे की सूचना पर बच गयी। राजस्थान की तस्वीर सामने आते ही दिमाग में पानी को लेकर एक अजीब कल्पना उभरती है जो बेहद भयावह और डरावनी होती है। उस भयावहता को इस घटना ने सच साबित कर दिया है।
जालोर की यह घटना बेहद चिंतनीय और संवेदनशील है। यह राजनीति का विषय नहीं है, हमारे लिए चुनौती है। हमने कैसा भारत बना रखा है कि 12 किमी रेतीले यात्रा में हम दादी और पोती को चुल्लू भर पानी नहीं उपलब्ध करा पाए। हम किस विकास और किस सोच की बात करते हैं। राजनीति के लिए यह बहस का मसला हो सकता है, लेकिन हमारे लिए यह संवेदना और शर्म की बात है। हम देश की जनता को चुल्लू भर पानी उपलब्ध नहीं करा सकते। जिस चुल्लू भर पानी के लिए तड़प कर बच्ची की मौत हो गयी, उसी चुल्लू भर पानी में व्यवस्था को डूब मरना चाहिए।
राजस्थान के शहरी और ग्रामीण इलाकों में आज भी पानी की समस्या का हल नहीं हो सका है। भीषण गर्मी में पानी की किल्लत को लेकर लोग जूझते हैं। हालांकि यह प्राकृतिक भू-भाग की बनावट से भी जुड़ा है। लेकिन अगर हमारे पास इच्छाशक्ति होती तो हमें ऐसी शर्मनाक घटनाओं का सामना नहीं करना पड़ता। हम यह नहीं कहते हैं कि सरकारों ने अब तक पानी के लिए कुछ काम नहीं किया। हो सकता है बहुत कुछ हुआ हो, लेकिन हमें लगता है कि अभी हमें शून्य से आगे बढ़ना होगा। तभी पानी की समस्या का समाधान निकल सकता है। हम ग्लोबल लीडरशिप की बात करते हैं और देश में मासूम चुल्लू भर पानी के लिए तड़प कर दम तोड़ते हैं। केंद्र और राज्य सरकारों को इस समस्या को गंभीरता से लेना चाहिए। विकास की आड़ में लंबे-चौड़े बजट और नीतियां बनती हैं। चुनावों में सब्जबाग दिखाए जाते हैं, लेकिन सरकारें अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लेती हैं और वादों की जमीन राजस्थान की तरह रेतीली और सूखी रहती है। जिसकी वजह से सूखी देवी जैसे लोगों को मरना पड़ता है।
राजस्थान में जल जीवन मिशन के तहत 30 लाख नल लगाए जाएंगे। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार ने 2022 का लक्ष्य रखा है। 2024 तक हर घर तक स्वच्छ पानी पहुंचाने का लक्ष्य है। मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि राजस्थान में 1.01 करोड़ ग्रामीण घर हैं जिसमें तकरीबन 20 फीसदी घरों में नल का पानी उपलब्ध है। योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में साढ़े छह लाख और नल उपलब्ध कराए जाएंगे। केंद्र की मोदी सरकार ने राज्य को 2020-21 के लिए 2,522 करोड़ की राशि उपलब्ध करायी थी। जबकि चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में 5,500 करोड़ रुपये मिलने की संभावना है।
इस मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सरकार ने 38,823 ग्राम जल स्वच्छता समितियों का गठन किया है। हजारों की संख्या में इस योजना को सफल बनाने के लिए लोगों को तकनीकी प्रशिक्षण भी दिया गया है। इस मिशन को कामयाब बनाने के लिए सरकार ने 50,011 बजट का आवंटन किया है। कहा गया है कि 15 वें वित्त आयोग से 26,940 करोड़ की निधि भी उपलब्ध कराई गयी है। केंद्र सरकार इस योजना के तहत पूरे देश में एक लाख करोड़ रुपये निवेश कर लोगों को साफ और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराएगी। अब जल जीवन मिशन कितना कायाब होगा यह वक्त बताएगा अभी इसके लिए कम से दो सालों तक इंतजार करना पड़ेगा।
राजस्थान में पानी की समस्या एक अंतहीन सिलसिला है जिसका कोई फिलहाल समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। लेकिन हाल के सालों में केंद्रीय जलशक्ति और पेट्रोलियम मंत्रालय के साथ मिलकर काम करने की घोषणा की थी जिसमें कहा गया था कि राजस्थान में 100 सालों तक पानी की समस्या नहीं होगी। लेकिन अभी उस योजना में लंबा वक्त लगेगा। इस योजना का सबसे अधिक लाभ पश्चिमी राजस्थान के इलाकों होगा। जिसमें बाड़मेर और जैसलमेर के साथ दूसरे जिले शामिल हैं। राजस्थान का उच्च न्यायालय भी लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने को लेकर कड़ी फटकार भी लगा चुका है।
उच्च न्यायालय में कुछ साल पूर्व लोकसंपत्ति संरक्षण समिति ने परिवाद दाखिल कर आरोप भी लगाया था कि जयपुर में कुल 31 बांध हैं जिसमें 28 सूखे पड़े हैं। इसकी मूल वजह बांधों के बहाव वाले इलाकों में अतिक्रमण की बात कहीं गयी थी। राजस्थान में फ्लोराइड, नमक, और लोहायुक्त पानी पीने के लिए लोग बाध्य हैं। एक रिपोर्ट के मुताबित बाड़मेर, नागौर, भरतपुर, जालोर, सिरोही, जोधपुर, जयपुर, बीकानेर और चुरु जिलों में लोग दूषित पेयजल पीते हैं जिसकी वजह से बीमार पड़ते हैं। इस पर केंद्र की मोदी सरकार भी राज्य के गहलोत सरकार को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की बात कहीं थी। अब उस पर कितना काम हुआ है यह दोनों सरकारों की जिम्मेदारी बनती है।
दो साल पूर्व आयी एक रिपार्ट के अनुसार राज्य का हर पांचवां व्यक्ति रसायनयुक्त पानी पीता है। अधिकांश आबादी परंपरागत साधानों का उपयोग कर अपनी प्यास बुझाती है। ग्रामीण इलाकों में दूषित पानी पीने से लोग अपंगता का शिकार होते हैं। उस आंकड़े के अनुसार बाड़मेर में तकरीबन 15 लाख और नागौर में 12 लाख दूषित पानी पीते हैं। रिपोर्ट में राजस्थान को सबसे अधिक प्रदूषित जल पीने का वाला राज्य बताया गया था। उसके मुताबित 19,575 बस्तियों में लोग प्रदूषित जल का सेवन करते थे। फिलहाल उस बच्ची की मौत के बाद ही हमें सबक लेना चाहिए। राज्य में पानी की समस्या एक गंभीर विषय है। इस पर केंद्र और राज्य सरकारों को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)