ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक हर साल मार्गशीर्ष और पौष महीने के बीच खरमास पड़ता है। इस दरमियान सूर्य देव धनु राशि में प्रवेश करते हैं तो खरमास (Kharmas) आरंभ हो जाता है और एक माह बाद जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब यह समाप्त हो जाता है। इस बार खरमास 14 दिसंबर से शुरू होकर 14 जनवरी तक रहेगा। इसके साथ शादी, सगाई, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश, मुंडन आदि मांगलिक कार्यों(demanding works) पर भी रोक लग जाएगी। मान्यता है कि इस समय में नया घर या वाहन खरीदने जैसे काम भी नहीं होते है।
खरमास का महत्व
ज्योतिषशास्त्र (Astrology) कहता है कि सूर्य प्रत्येक राशि में करीब एक माह रहने के साथ राशि बदल देते हैं। उनके धनु राशि में प्रवेश करने पर खरमास लग जाता है। धनु गुरु बृहस्पति (Jupiter) की राशि है। मान्यता है कि सूर्यदेव जब भी देवगुरु की राशि पर भ्रमण करते हैं तो यह जनजीवन के लिए कुप्रभाव वाला होता है। ऐसे में सूर्य कमजोर हो जाते हैं और उन्हें मलीन माना जाता है। सूर्य के मलीन होने से यह माह मलमास भी कहा जाता है। इस दौरान गुरु के स्वभाव में उग्रता आ जाती है। सनातन धर्म में सूर्य (Sun) महत्वपूर्ण कारक ग्रह है, ऐसे में उनकी कमजोर स्थिति अशुभ मानी जाती है। इसी तरह बृहस्पति देवगुरु है, जिनके स्वभाव में उग्रता शुभ नहीं होती। इस कारण खरमास में कोई मांगलिक कार्य नहीं होता है।
पौराणिक कथा
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों के रथ पर लगातार ब्रह्मांड का चक्कर लगाते हैं। उन्हें कहीं भी रुकना नहीं होता है। मगर उनके रथ में जुड़े घोड़े विश्राम न मिलने से भूख-प्यास से थक जाते हैं। उनकी यह दयनीय दशा देखकर एक बार सूर्यदेव (Sun god) का मन द्रवित हो गया। वह उन्हें एक तालाब किनारे ले गए, लेकिन तभी आभास हुआ कि रथ रुनक रुकने पर अनर्थ घटित हो सकता है। मगर सूर्य देव घोड़ों को लेकर तालाब पर पहुंचे तो देखा कि वहां दो खर यानी गधे मौजूद हैं। सूर्यदेव ने घोड़ों को पानी और विश्राम के लिए वहां छोड़ दिया और खर को रथ में जोड़ लिया। इसके चलते उनके रथ की गति धीमी हो गई है। किसी तरह सूर्यदेव खर के सहारे एक मास चक्र पूरा करते हैं। तब तक घोड़े विश्राम कर चुके होते हैं तो सूर्य रथ फिर अपनी रफ्तार पकड़ लेता है। इस तरह हर साल ये क्रम चलता रहता है और हर साल खरमास पड़ता है।
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