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    एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा…

  • September 27, 2024

    उस लड़की को देखा तो ऐसा लगा, जैसे उजड़ती संस्कृति, बिखरते संस्कार, बिगड़ती नस्ल और लुटता भविष्य…यही तो कारण है बच्चियों के साथ होती वहशियत का…युवतियों के लाज लुटाकर मरने का…माता-पिता के जिंदगीभर का सदमा सहने का और हमारी बेटियों का सुरक्षा को लेकर डरने का…बित्तीभर का कपड़ा लपेटे शहर के व्यस्ततम 56 दुकान जैसे इलाके में अपने अंगों का ही नहीं, बल्कि फूहड़ता का प्रदर्शन करती उस अर्द्धनग्न और अर्द्धनग्न क्या कहें लगभग नग्न युवती जिस तरह से अपने आपको परोस रही थी, उसे देखकर सभ्य लोग शरमा रहे थे…असंख्य चटकारे लेकर निहार रहे थे…और इस शहर से प्यार करने वाले लोग उसे मन ही मन लताड़ रहे थे…लेकिन कोई उसे हाथ पकड़कर हकाल नहीं पा रहा था…उसे ढांकने के लिए कपड़े उछाल नहीं रहा था…उसे समझाने की जहमत तक नहीं उठा रहा था…कुछ लोग वीडियो बना रहे थे…उसकी बेशर्मी जमाने को दिखाने के लिए सोशल मीडिया पर डाल रहे थे…यही तो चाह रही थी…जो था उसके पास वही दिखा रही थी और उस दिखावट को सजाकर शोहरत हासिल करने के मंसूबे बना रही थी…पहली प्रतिक्रिया में उस निर्लज्ज ने कबूला कि मैं जैसी हूं वैसी हूं…जैसी रहना चाहूं वैसी ही रहूंगी…उसके शब्दों से अचरज इस बात का हो रहा था कि उसमें इस निर्लज्जता की हिम्मत आई कहां से और इसकी कीमत चुकाएगा कौन…हम देश में बढ़ते नारी अत्याचार, उसके होते शोषण और गैंगरेप जैसी घटनाओं से दहशतजदा होने के साथ ही आक्रोशित और बेकाबू होते जा रहे हैं, लेकिन इन सब घटनाओं के जिम्मेदार उसे चटकारे लेकर निहार रहे हैं…उस नुमाइश को बर्दाश्त किए जा रहे हैं, जो सभ्य समाज को असभ्य बनाती है…उनमें उत्तेजना फैलाती है और उन्हें नापाक हिमाकतों तक पहुंचाती है…ऐसी नुमाइशें देखकर ही तो लोग हैवान बन जाते हैं और बच्चियों तक के साथ वहशियत पर उतर आते हैं…नग्नता को पहचान बनाने के ऐसे निर्लज्ज मंसूबे हमारे समाज की मर्यादा पर कहर ढाते हैं…युवतियों, नाबालिग बच्चे तक हर युवती को ऐसे ही मंसूबे का मुंतजिर मानते हैं और उनकी लाज लूटने पर आमादा हो जाते हैं और जान तक लेने से नहीं घबराते हैं…वो या तो मारी जाती है या जिंदा रहकर मुर्दों की तरह जिंदगी बिताती है…ऐसी निर्लज्ज युवतियों के कांधों पर वहशियत समाज में आती है…पूरे शहर को इस घटना पर विचारों की आग बरसानी थी…मर्यादा और संस्कृति की हत्या की सजा उसे सींखचों के पीछे डालकर दी जानी चाहिए…यह शहर अहिल्या की नगरी कहना ही नहीं, बल्कि दिखना भी चाहिए…न्याय की वह देवी आज होतीं तो न वो निर्लज्ज बचती और न ही कहीं निर्लज्जता दिखती…

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