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जब भीमराव आंबेडकर ने की थी वीर सावरकर की तारीफ

नई दिल्ली (New Delhi)। आज पूरा देश संविधान निर्माता बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर (Babasaheb Bhimrao Ambedkar) की आज जयंती मना रहा है। देश के संविधान निर्माता के तौर पर पहचान रखने वाले भीमराव आंबेडकर ने इसके अलावा समाज के वंचित वर्गों के उत्थान के लिए भी अहम योगदान दिया था। महिलाओं के अधिकारों की बात हो या फिर अछूतोद्धार के लिए आंदोलन हो, वह हर पीड़ित वर्ग के लिए लड़ने वाली शख्सियत थे। भीमराव आंबेडकर (Babasaheb Bhimrao Ambedkar) के दलितों के उत्थान को लेकर कई नेताओं से मतभेद भी रहे थे, जिनमें से एक महात्मा गांधी थे।

दोनों ही नेता मानते थे कि दलित वर्ग का उत्थान होना चाहिए, लेकिन उसके तरीकों को लेकर उनमें मतभेद था, हालांकि हिंदुत्व के विचारक कहे जाने वाले वीर सावरकर की भीमराव आंबेडकर ने इसे लेकर सराहना की थी।



वीर सावरकर ने भी जाति के आधार पर भेदभाव समाप्त करने के लिए प्रयास किए थे। यहां तक कि अपने घर आने वाले लोगों से वह तभी मिलते थे, जब वह घर के बाहर दलित के हाथों से पानी पीता था। उन्होंने महाराष्ट्र के ही रत्नागिरी में एक मंदिर भी बनवाया था, जिसमें सभी जातियों के लोगों को आने की छूट थी। सावरकर के इस प्रयास की खुद भीमराव आंबेडकर ने तारीफ की थी।

सावरकर: इकोज ऑफ फॉरगॉटन पास्ट नाम से पुस्तक लिखने वाले विक्रम संपत कहते हैं कि ‘सावरकर ने 1931 में रत्नागिरी में पतितपावन मंदिर बनवाया था। इस मंदिर में किसी भी जाति और नस्ल के लोगों को आने की अनुमति थी। तब भीमराव आंबेडकर ने वीर सावरकर की तारीफ की थी और कहा था कि वही अकेले शख्स हैं, जो समझते हैं कि वर्णाश्रम भारतीय समाज के लिए किस तरह का अभिशाप है।

गौरतलब है कि भीमराव आंबेडकर के महात्मा गांधी से दलितों के उद्धार को लेकर गहरे मतभेद थे। यही नहीं पूना पैक्ट के बाद दोनों नेताओं के बीच ये मतभेद और गहरे होते चले गए थे। बाबासाहेब ने भारत विभाजन को लेकर भी पुस्तक लिखी थी, जिसमें उन्होंने वीर सावरकर को बंटवारे के खिलाफ बताया था।

उन्होंने कहा था कि हिंदू महासभा और वीर सावरकर विभाजन के विरोध में हैं। पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन पुस्तक में आंबेडकर ने लिखा था ‘यह कहना ठीक नहीं होगा कि सावरकर का सिर्फ निगेटिव ऐटिट्यूड ही था। उन्होंने मुस्लिमों की मांग के खिलाफ सकारात्मक प्रस्ताव दिए हैं। सावरकर के बारे में समझने के लिए उनके मूल सिद्धांतों के बारे में भी जानना होगा। सावरकर ने हिंदुत्व की परिभाषा पर खासा जोर दिया है।

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