गरीब हो, गरीब रहो…गरीबी में जियो, गरीबी में मरो… 70-80 के दशक में इंंदिराजी ने गरीबी मिटाओ, गरीबी हटाओ का नारा दिया था… गरीबी तो मिटी नहीं, वो खुद चुनाव हार गईं… अब नेताओं ने नया नारा दिया और देश अपने नाम कर लिया…गरीबी से मत डरो, गरीबी में भी मौज करो… और सारे देश के लोगों ने इस नारे पर उत्सव मनाया.. मुफ्त बिजली… मुफ्त पानी… मुफ्त शिक्षा… मुफ्त अनाज और इन सबसे ऊपर नकद पैसों का इंतजाम…लाड़ली बहना.. लाडक़ी बहना… लाडक़ा भैया… दो-ढाई हजार हर माह लो… बेटी को भी कमाऊ बनाओ… बेटे को भी मुफ्त का स्वाद चखाओ… एक घर में तीन-चार बच्चे हो जाएंगे तो घर की गाड़ी मुफ्त में दौड़ती नजर आएगी… लाडक़ा भैया क्यों कमाने जाएगा… जेब खर्च भी सरकार से मिल जाएगा… इसलिए कौन ऐसी दयावान सरकार को वोट देने से पीछे हट पाएगा… कौन उसके दयालुपन पर नहीं रिझाएगा…जिसके बेटे-बेटी नहीं होंगे वह भी दीनदयाल रसोईघरों जैसे सरकारी ठिकानों में केवल पांच रुपए में मुफ्त का खाना खाएगा और रैन बसेरे में सोकर जिंदगी बिताएगा…फिर विकास की गारंटी तो है ही…विकास नहीं होगा तो नेताओं का विकास कैसे हो पाएगा…कैसे ठेकेदारों से परसेंटेज मिल पाएगा…इसके लिए राज्यों के पास पैसा कम होगा तो कर्ज से पैसा जुटाया जाएगा…और कर्ज देने में यदि किसी को हर्ज हुआ तो सरकार का डबल इंजन काम आएगा…राज्य का गड्ढा केन्द्र से भरा जाएगा… और राज्य भी क्यों हाथ फैलाएगा…खैरात जुटाने के लिए पैसे वालों का दम निकाला जाएगा… हर गली से टैक्स निकलकर बाहर आएगा…कोई झुके या टूटे…बिखरे या सिमटे… जो सह पाएगा वो चल पाएगा…हकीकत यह है कि इस देश मेें गरीब मजे में हैं… अमीरों का पैसा बढ़ता जा रहा है… लेकिन मध्यमवर्गीय पिसता जा रहा है… अमीर अपने टैक्स का बोझ मध्यमवर्गीयों पर डालता है… फिर भी यदि मुनाफा हुआ तो अपना खाता, अपनी बही…जो लिखा वो सही की नीति अपनाकर टैक्स का गोलमाल कर जाता है… उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता है…वो जब डूबने और लोगों को लूटने की जुगत भिड़ाता है तो देश का नया दिवालिया कानून उसका हाथ पकडक़र वैतरणी पार कराता है…खुद को दिवालिया घोषित कर लोगों का पैसा खा जाता है…लेकिन बेचारा मध्यमवर्गीय जितनी चादर उतने पैर फैलाने की कोशिश में सिमटता जाता है…और उसे पता ही नहीं चलता कि उसकी चादर कब रुमाल बन जाती है…उसकी कमाई कब लुट जाती है…महिलाएं घटती कमाई से घरों के खर्च जुटाने में नाकाम होने लग जाती है तो खुद कमाने के लिए घर से निकल आती है… बच्चे बेसहारा हो जाते हैं…जो मिला खाते हैं… और न मिले तो भूखे सो जाते हैं, क्योंकि मां-बाप दोनों काम पर जाते हैं…सरकार की नीति और लोगों की नीयत से देश गर्त में जा रहा है… खैरात में जिंदगी बिताने वाला काम नहीं करना चाहता…दस-बीस हजार की नौकरी उसे चाकरी लगती है…सरकारी नौकरी के सौ पदों के लिए लाखों लोगों की भीड़ उमड़ती है, लेकिन निजी कंपनियों में लाखों लोगों की जरूरत हो तो सैकड़ों भी नहीं मिल पाते…क्योंकि सरकारी नौकरी में लोग मुफ्त का वेतन और उस पर रिश्वत का तडक़ा लगाने जाते हैं…सरकार भी नौकरी की जगह भत्ते की योजना बनाती है… बिना काम के वेतन की घोषणाएं युवाओं की सोच को भी ठिकाने लगाती हैं…आने वाले समय में देश में मक्कारों की फौज नजर आएगी… और सरकार इस फौज को खैरात बांटकर मौज बनाएगी… गरीबी बढ़ाएगी… क्योंकि जब तक गरीब रहेंगे, तब तक खैरात असर दिखाएगी और सरकारें बनती जाएंगी…
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