डेस्क: इस संसार में भांति-भांति के प्राणी वास करते हैं. ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना पंचतत्व से की है, जिसमें जीवों को अलग-अलग रूप दिया गया है, इसलिए कहते हैं कि जीवन-मृत्यु, अच्छाई-बुराई, दुख-सुख ये सब प्रकृति के नियम हैं. इस संसार में अच्छे लोग होते हैं तो बुरे लोग भी कम नहीं हैं. उसी प्रकार ईश्वर के अलावा बुरी शक्तियां भी प्रभाव में होती हैं, जिनको असुर या राक्षस कहते हैं. हिंदू धर्म की कई पौराणिक कथाओं में इन असुरों का उल्लेख मिलता है. तो ऐसे में सवाल है कि आखिर इन असुरों की उत्पत्ति कैसे और कहां से हुई? आइये जानते हैं आखिर इस संसार में असुरों का जन्म कैसे और क्यों हुआ.
पुराणों में भी असुरों के जन्म की कथा का वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार, सप्तऋषि कश्यप की 13 पत्नियां थीं, उनमें से अदिति और दीति को सुर-असुर की माता के रूप में जाना जाता है. महादेव के आशीर्वाद से ऋषि कश्यप की पत्नी अदिति ने 12 आदित्यों को जन्म दिया, जिन्हें देवता कहा गया, जबकि दिति ने 2 पुत्रों हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप को जन्म दिया. दिति के पुत्र होने के कारण इन्हें दैत्य कहा गया. अपनी शक्ति के घमंड के कारण दैत्यों ने देवताओं और प्राणियों को परेशान करना शुरू कर दिया. इस कारण ही दैत्यों के वंशज राक्षस या दानव कहलाए.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा जी ने आदिशक्ति और भगवान शिव के साथ मिलकर सृष्टि की रचना की. वेदों-पुराणों में उल्लेख मिलता है कि धरती पर 3 तरह के जीव भू, भुव और स्व पर रहते थे. इसमें भू का अर्थ है जमीन पर रहने वाले, स्व का अर्थ है आकाश में रहने वाले और भुव का अर्थ है जो जमीन और आकाश दोनों के बीच में रहने वाले जीव. ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की, तब सभी हिंसक-अहिंसक जीव-जंतुओं और मनुष्यों को जमीन पर रहने भेजा.
देवताओं को आकाश में रहने भेजा और राक्षसों को धरती के जीवों और देवताओं की रक्षा के लिए आकाश और जमीन के बीच में रहने के लिए भेजा. रक्षा करने की प्रवृत्ति के कारण ही इन्हें राक्षस कहा गया. ऋग्वेद में 105 बार राक्षस शब्द का उपयोग अच्छे अर्थ में किया गया है. बताया जाता है कि पहले राक्षस धरती और आकाश में रहने वाले प्राणियों की रक्षा करते थे, लेकिन धीरे-धीरे इन राक्षसों में अपनी शक्ति और बल का अहंकार आने लगा. जिस कारण इन्होंने देवताओं और जीवों को परेशान करना शुरू कर दिया.
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