नई दिल्ली। भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna) का जन्मोत्सव हर साल भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. ऐसी मान्यताएं हैं कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह (Bhadrapada month) के कृष्ण की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र (Rohini Nakshatra) में हुआ था. लेकिन क्या आप जानते हैं श्रीकृष्ण की मौत कब और कैसे हुई थी. आइए जानते हैं इसे लेकर हिंदू धर्म की पौराणिक कथाएं क्या कहती हैं.
मानव जाति और मानवता को नष्ट करने वाला कुरुक्षेत्र (Kurukshetra) का युद्ध शांत हो चुका था. अपनी जीत से पांडव बहुत खुश नहीं थे. इस तबाही से उनका मन भी कहीं न कहीं विचलित था. इसलिए पांडव श्रीकृष्ण के साथ दुर्योधन की मौत पर शोक जताने उनके अंधे मां-बाप गांधारी और धृतराष्ट्र के पास पहुंचे. दुर्योधन का शव खून में लथपथ पड़ा था. गांधारी ने तब श्रीकृष्ण को दुर्योधन की मौत का असली जिम्मेवार ठहराया था.
गांधारी ने चीखते हुए श्रीकृष्ण से कहा, ‘हे द्वारकाधीश! मैंने हमेशा आपकी पूजा विष्णु अवतार मानकर की. लेकिन क्या आज आप अपने किए पर जरा भी शर्मिंदा हैं? अपनी दिव्य शक्तियों से आप ये युद्ध रोक भी सकते थे. जाओ जाकर देवकी से पूछो कि बेटे की मौत पर आंसू बहाने वाली मां का दर्द क्या होता है, जिसने अपनी सात संतानों को मरते देखा है.’
गांधारी का श्राप
गांधारी यहीं शांत नहीं हुई. उन्होंने श्रीकृष्ण को श्राप देते हुए कहा, ‘यदि भगवान विष्णु के प्रति मेरी श्रद्धा और भक्ति सच्ची है तो आज से ठीक 36 साल बाद धरती पर तुम्हारा भी अंत हो जाएगा. द्वारका नगरी तबाह हो जाएगी और यदुवंश का नामोनिशान मिट जाएगा. इस कुल के लोग एक दूसरे के ही खून के प्यासे हो जाएंगे.’
कहते हैं कि गांधारी का यही श्राप आगे चलकर यदुवंश के सर्वनाश और श्रीकृष्ण की मृत्यु का कारण बना. कई साल बीतने के बाद श्रीकृष्ण के पुत्र सांबा गर्भवती स्त्री का वेष धारण कर ऋषि-मुनियों के पास गए. ये देखकर ऋषि भड़क गए और उन्होंने सांबा को श्राप दिया कि वो एक ऐसे लोहे के तीर को जन्म देगा जिससे उसका कुल-साम्राज्य खत्म हो जाएगा. सांबा घबरा गया और उसने इस घटना के बारे में उग्रसेन को बताया.
इस श्राप से सांबा को बचाने के लिए उग्रसेन ने कहा कि वो एक तीर का चूर्ण बनाकर उसे प्रभास नदी में प्रवाहित कर दे. ऐसा करने से वो श्रापमुक्त हो जाएगा. ऐसा कहते हैं कि जिस तट पर इस चूर्ण को जमा किया गया था वहां एक खास तरह की घास उग आई. ये कोई साधारण घास नहीं थी, बल्कि एक नशीली घास थी. इसके बाद द्वारका में कुछ अशुभ संकेत दिखने लगे. श्रीकृष्ण का शंख, रथ, सुदर्शन चक्र और बलराम का हल अदृश्य हो गया.
कैसे पाप नगरी बन गई द्वारका?
द्वारका अपराध की नगरी में तब्दील होने लगी. धरती पर पाप बढ़ने लगा. ये सब श्रीकृष्ण से देखा नहीं गया और उन्होंने द्वारका वासियों से प्रभास नदी के तट पर अपने पापों का प्रायश्चित करने को कहा. लेकिन द्वारकावासी वहां जाकर उस नशीली घास का सेवन करने लगे. नशे में चूर एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए. गांधारी का श्राप सच हुआ. यदुवंशी आपस में ही लड़कर खत्म हो गए.
इस घटना कुछ समय बाद श्रीकृष्ण जब एक पेड़ के नीचे योग समाधि ले रहे थे, तब वहां जरा नाम का एक शिकारी हिरण की तलाश में आगया. जरा ने झाड़ियों में श्रीकृष्ण के हिलते पैरों को हिरण समझकर तीर चला दिया. वो तीर श्रीकृष्ण को लग लग गया. इस पर जरा को बहुत पछतावा हुआ और उसने श्रीकृष्ण से क्षमा भी मांगी. तब श्रीकृष्ण ने उसे बताया कि उनकी मृत्यु निश्चित थी.
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