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    उल्फा और केंद्र के बीच शांति समझौते से क्या-क्या बदल जाएगा? समझें पूरी कहानी 

  • December 30, 2023

    नई दिल्ली: चार दशक से अधिक समय से उग्रवादी हिंसा के शिकार पूर्वोत्तर से साल के खत्म होते-होते एक अच्छी खबर सामने आई है. असम में अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट ने हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा से जुड़ने का फैसला कर लिया है. केंद्र सरकार के साथ इस गुट ने ऐतिहासिक समझौता किया है. इस समझौते के बाद असम के साथ ही देश के पूर्वोत्तर हिस्से में नए युग का दौर शुरू होगा. उल्फा के साथ शांति समझौते के बाद असम में 45 साल से पुराने उग्रवाद पर अब लगाम लगने की उम्मीद जगी है.

    यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के वार्ता समर्थक गुट ने 29 दिसंबर को केंद्र और असम सरकारों के साथ एक त्रिपक्षीय समझौता साइन किया. इस शांति समझौते में हिंसा छोड़ने और समाज की मुख्यधारा में शामिल होने की बातें शामिल हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की मौजूदगी में यह समझौता हुआ. शांति समझौते के साथ उल्फा के 700 कैडरों ने भी समर्पण किया है.

    ULFA के एक गुट के 20 नेता पिछले एक हफ्ते से देश की राजधानी दिल्ली में थे और इस समझौते को लेकर सरकार और इस गुट के बीच बातचीत का दौर जारी था. ULFA के जिस गुट ने शांति समझौते पर साइन किए हैं, उसका नेतृत्व अनूप चेतिया करते हैं. इस गुट ने साल 2011 के बाद से हथियार नहीं उठाए हैं. अनूप चेतिया ने कहा कि, “हमने 2011 से हथियार नहीं उठाए हैं. अपने विरोध के चलते मैंऔर हमारे (उल्फा) बहुत सारे नेता जेल में सालों रहे. असम और पूर्वोत्तर राज्य की भलाई, खुशहाली और तरक्की के लिए हमने इस समझौते पर साइन किया है.”


    असम राज्य लगभग 45 साल से अधिक समय से उल्फा हिंसा से पीड़ित रहा है. 1979 से शुरू हुई इस हिंसा में अब तक 10,000 लोगों की जान जा चुकी है. मरने वालों में 4500 आम नागरिकों के साथ करीब 700 सुरक्षा बल और उग्रवादी कैडर के लोग शामिल हैं. बाकी उल्फा सदस्य थे जो केंद्रीय और राज्य बलों द्वारा आतंकवाद विरोधी अभियानों में मारे गए थे. उस दौरान उल्फा ने 2,000 से अधिक लोगों का अपहरण भी किया था. उनमें से कई बंधकों को मार डाला, जिनमें कम से कम एक प्रवासी भी शामिल था.

    1979 के बाद से उल्फा से जुड़ी हिंसा को लेकर यह पहला आधिकारिक डेटा है. अब जब असम का सबसे पुराना उग्रवादी समूह उल्फा हिंसा छोड़ने, संगठन को खत्म करने पर सहमत हो गया है तो शांति के मजबूत होने की उम्मीद है. हालांकि, परेश बरुआ की अध्यक्षता वाला उल्फा का कट्टरपंथी गुट इस समझौते का हिस्सा नहीं है.

    असम में 2009 के बाद से उल्फा गतिविधियां काफी कम हो गईं थी. पिछले कुछ समय में असम में हिंसा में 87%, मौतों में 90% और अपहरण में 84% की कमी आई है. हालांकि, नए समझौते में राजखोवा गुट ने हथियार आत्मसमर्पण करने, हिंसा छोड़ने, संगठन को भंग करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने पर सहमति व्यक्त की. समझौते के तहत असम के विकास के लिए केंद्र सरकार की तरफ से राज्य को बड़ी राशि दी जाएगी.

    वार्ता समर्थक गुट ने असम के मूल निवासियों की भूमि के अधिकार सहित उनकी पहचान और संसाधनों की सुरक्षा के लिए संवैधानिक और राजनीतिक सुधारों की मांग की थी. अब केंद्र सरकार के मसौदे पर अंतिम सहमति के बाद हस्ताक्षर हो चुके हैं. ऐसे में मूल निवासियों के भूमि अधिकार से लेकर राजनैतिक सुधारों की राह खुली है.

    समझौते पर पीएम मोदी ने कहा, “मैं इस ऐतिहासिक उपलब्धि में शामिल सभी लोगों के प्रयासों की सराहना करता हूं. साथ मिलकर, हम सब एकता, विकास और समृद्धि के भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं.” गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “मैं उल्फा प्रतिनिधियों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि, आपके कहे बिना, सब कुछ पूरा करने के लिए समयबद्ध तरीके से एक कार्यक्रम बनाया जाएगा. गृह मंत्रालय के तहत, एक समिति बनाई जाएगी, जो असम सरकार के साथ मिलकर काम करेगी.”

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