नई दिल्ली। दुनिया के महानतम फुटबॉल खिलाड़ियों में शुमार 1986 वर्ल्ड कप में अर्जेंटीना की जीत के नायक डिएगो माराडोना का बुधवार को ब्यूनस आयर्स में निधन हो गया। अर्जेंटीना में तीन दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा कर दी गई है। दुनियाभर के फुटबॉलप्रेमियों में इस खबर से शोक की लहर दौड़ गई है और सोशल मीडिया पर इस महान फुटबॉलर को श्रद्धांजलि दी जा रही है।
पेले की ही तरह 10 नंबर की जर्सी पहनने वाले दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलरों में गिने जाने वाले माराडोना 60 साल के थे। पिछले लंबे समय से वह कोकीन की लत और मोटापे से जुड़ी कई परेशानियों से जूझ रहे थे।
Soccer World Cup winner and one of the sport's biggest icons Diego Maradona died at 60 after suffering a heart attack at his home in Buenos Aires https://t.co/PGycEiasup pic.twitter.com/Y3K6ObIEk5
— Reuters (@Reuters) November 25, 2020
फीफा ने उन्हें 2001 में ब्राजील के पेले के साथ खेल के इतिहास के दो महानतम खिलाड़ियों में शामिल किया था। दो सप्ताह पहले ही दिमाग के ऑपरेशन के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दी गई थी। वर्ल्ड कप 1986 में इंग्लैंड के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में ‘हैंड ऑफ गॉड’ वाले गोल के कारण फुटबॉल की किंवदंतियों में अपना नाम शुमार कराने वाले माराडोना दो दशक से लंबे अपने करियर में फुटबालप्रेमियों के नूरे नजर रहे।
माराडोना ने वर्षों बाद स्वीकार किया था कि उन्होंने जान बूझकर गेंद को हाथ लगाया था, उसी मैच में चार मिनट बाद हालांकि उन्होंने ऐसा शानदार गोल दागा था, जिसे फीफा ने विश्व कप के इतिहास का महानतम गोल करार दिया। अर्जेंटीना ने उस जीत को 1982 के युद्ध में ब्रिटेन के हाथों मिली हार का बदला करार दिया था। माराडोना ने 2000 में आई अपनी आत्मकथा ‘आई एम द डिएगो’ में लिखा था, ‘वह मैच जीतने की कोशिश से बढ़कर कुछ था, हमने कहा था कि इस मैच का जंग से कोई सरोकार नहीं है, लेकिन हमें पता था कि वहां अर्जेंटीनाइयों ने अपनी जानें गंवाई थीं। यह हमारा बदला था। हम अपने देश के लिए खेल रहे थे और यह हमसे बड़ा कुछ था।’
नशे की लत और राष्ट्रीय टीम के साथ नाकामी ने बाद में माराडोना की साख को ठेस पहुंचाई, लेकिन फुटबॉल के दीवानों के लिए वह ‘गोल्डन ब्वॉय ’ बने रहे। साहसी, तेज तर्रार और हमेशा अनुमान से परे कुछ करने वाले माराडोना के पैरों का जादू पूरी दुनिया ने फुटबॉल के मैदान पर देखा।
विरोधी डिफेंस में सेंध लगाकर बाएं पैर से गोल करना उनकी खासियत थी। उनके साथ इतालवी क्लब नेपोली के लिए खेल चुके सल्वाटोर बागनी ने कहा, ‘वह सब कुछ दिमाग में सोच लेते थे और अपने पैरों से उसे मैदान पर सच कर दिखाते थे।’
बढते मोटापे से करियर के आखिर में उनकी वह रफ्तार नहीं रह गई थी। वहीं, 1991 में उन्होंने कोकीन का आदी होने की बात स्वीकारी और 1997 में फुटबॉल को अलविदा कहने तक इस लत ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। वह दिल की बीमारी के कारण 2000 और 2004 में अस्पताल में भर्ती हुए। नशे की लत के कारण उनकी सेहत गिरती रही। वह 2007 में हेपेटाइटिस के कारण अस्पताल में भर्ती हुए। अर्जेंटीना के कोच के रूप में उन्होंने 2008 में फुटबॉल में वापसी की, लेकिन दक्षिण अफ्रीका में 2010 विश्व कप के क्वार्टर फाइनल से टीम के बाहर होने की गाज उन पर गिरी। इसके बाद वह संयुक्त अरब अमीरात के क्लब अल वस्ल के भी कोच रहे।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved