नई दिल्ली। भारत दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित देश है। यहां पर कोरोना संक्रमित लोगों का इलाज भी चल रहा है, लेकिन यहां की इलाज की पद्धति और दवाओं को लेकर दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने आलोचना की है। वैज्ञानिक यह सवाल कर रहे हैं कि ड्रग्स कंट्रोलर जनलर ऑफ इंडिया (DCGI) ने कैसे उन दवाओं के उपयोग की अनुमति दे दी जो बेहद आपातकालीन परिस्थिति में दी जाती हैं। अप्रमाणित दवाएं दी जा रही हैं।
अभी तक यह भी तय नहीं है कि जो दवाएं भारत के कोरोना मरीजों को दी जा रही हैं वे प्रमाणित हैं या नहीं। वैज्ञानिकों ने संदेह जताया है कि जो दवाएं भारत में कोरोना मरीजों को दी जा रही हैं, उनकी प्रमाणिकता की जांच दवा कंपनियां भी नहीं कर पा रही हैं। कोरोना मरीजों को दी जाने वाली दवाओं का प्रभाव भी संतोषजनक नहीं है।
साइंस मैगजीन नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार मैंगलोर स्थित येनेपोया यूनिवर्सिटी के पब्लिक हेल्थ रिसर्चर अनंत भान ने कहा कि महामारी के दौर में पारदर्शिता बेहद जरूरी है। कोविड-19 (Covid 19) एक नया कोरोना वायरस है, इसका इलाज अभी तक मौजूद नहीं है। आइए जानते हैं ऐसी ही दवाओं के बारे में जिसे लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक चिंतित हैं। साथ ही भारत में इन दवाओं के उपयोग को लेकर आलोचना कर रहे हैं।
वैज्ञानिकों को चिंता है कि आपातकालीन दवाओं का कोविड-19 के इलाज के लिए बिना प्रमाणिकता के उपयोग करने से अन्य देशों का हौसला बढ़ाता है। भारत में कोविड-19 के मरीजों के इलाज के लिए इटोलीजुमैब (Itolizumab) का उपयोग हो रहा है। यह दवा इम्यून सिस्टम की बीमारी सोरिएसिस (Psoriasis) के लिए उपयोग की जाती है। क्यूबा की मीडिया के अनुसार भारत को देख कर इस दवा को क्यूबा ने भी उपयोग में लाना शुरू कर दिया है।
कैलिफोर्निया के ला जोला में स्थित इक्वीलियम नामक दवा कंपनी को अमेरिका ने 29 अक्टूबर को इटोलीजुमैब (Itolizumab) के कोरोना ट्रायल की अनुमति दी थी। इक्वीलियम ने यूएस फाइनेंशियल रेगुलेटर के सामने यह बात लिखकर दी है कि वह भारत में इटोलीजुमैब (Itolizumab) से संबंधित डेटा और दवा के उपयोग से बेहद उत्साहित है।
DCGI ने कोविड-19 के इलाज के लिए तीन दवाओं के उपयोग की अनुमति दी थी। पहली दवा थी फैविपिरावीर (Favipiravir)। यह इंफ्लूएंजा की दवा है। इसकी बदौलत हल्के से मध्यम दर्जे के कोरोना मरीजों का इलाज किया जा रहा है। इसके उपयोग की अनुमति जून में दी गई थी। इसके साथ ही एंटी वायरल ड्रग रेमडेसिविर (Remdesivir) के उपयोग की अनुमति भी दी गई थी। इसके बाद जुलाई के महीने में DCGI ने इटोलीजुमैब (Itolizumab) के उपयोग की अनुमति दी।
सिर्फ भारत ही कोविड-19 के इलाज के लिए तेजी से काम कर रहा है। अमेरिकी फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन (EUA’s) के लिए तीन दवाओं की अनुमति दी थी। पहला, एंटीबॉडी से परिपूर्ण प्लाज्मा से ट्रीटमेंट, दूसरी मलेरिया के इलाज में उपयोग होने वाली दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन (Hydroxycholoroquine) और तीसरी रेमडेसिविर (Remdesivir). जब एफडीए दवाओं की अनुमति देता है तो उसके बाद लोगों के लिए एक नोटिफिकेशन जारी करता है, जिसमें वो इन दवाओं के उपयोग के पीछे की वजह, फायदे और नुकसान के बारे में बताता है. हालांकि बाद में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन वापस ले ली गई।
सेवाग्राम स्थित महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के प्रोफेसर सहज राठी ने कहा कि भारत में यह नहीं पता चलता कि ‘आपातकालीन दवाओं के प्रतिबंधित उपयोग’ (Restricted Emergency Use) के मायने क्या है। इन शब्दों का उपयोग भारत के किसी कानून, नीति या रेगुलेशन से संबंधित दस्तावेजों में नहीं है।
अनंत भान ने कहा कि DCGI ने कोविड-19 ड्रग्स और वैक्सीन को प्रमाणिकता देने के लिए एक सेफ्टी कमेटी बनाई है, लेकिन इस कमेटी के सदस्य कौन हैं, इसके बारे किसी को कोई जानकारी नहीं है। इसके बारे में कोई भी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है।
सहज राठी कहते हैं कि फैविपिरावीर (Favipiravir) के मामले में तीन अलग-अलग डोज बनाने की अनुमति दी गई थी। ये डोज हैं 200, 400 और 800 मिलिग्राम्स के. ये बात सेफ्टी कमेटी की मीटिंग्स के बाद जारी ब्रीफ से पता चला है, जबकि, यहां पर वैज्ञानिकों को इसे लेकर काफी मेहनत करने की जरूरत थी। वैज्ञानिक कहते हैं कि फैविपिरावीर (Favipiravir) और इटोलीजुमैब (Itolizumab) किसी भी कीमत में कोरोना का पूरी तरह से इलाज नहीं कर सकती। फैविपिरावीर को बनाने वाली कंपनी ग्लेनमार्क ने इस दवा को अनुमति मिलने से सिर्फ 150 मरीजों पर ट्रायल किया गया था। वह भी हल्के और मध्यम दर्जे के बीमार लोगों को ही ठीक कर सकती है।
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