इस शहर मेें मासूमियत इतनी बर्बर कैसे हो गई… जिन बच्चों के हाथों में किताब और कलम होना चाहिए, वो चाकू चला रहे हैं… इतने बर्बर और आक्रामक हो गए हैं कि लोगों की जान लेने से नहीं कतरा रहे हैं… छोटी-छोटी बातों पर खंजर निकाल रहे हैं… पिछले दिनों केवल दो दिन के अंतराल मेें पांच बच्चों ने दो लोगों की हत्या कर डाली… हत्या का न तो मकसद था न कारण… जिन लोगों ने जान गंवाई, उन लोगों की गलती यह थी कि उन्होंने उन्हें बच्चा समझ लिया और डांटने-डपटने की परिपाटी का इस्तेमाल कर लिया… लेकिन दिमाग से शैतान बच्चों ने उनका जीवन ही हर लिया… हम इस घटना को केवल खबर मानकर अखबारों के पन्ने पलटे जा रहे हैं… लेकिन यह एक संदेश है… एक चुनौती है और एक चेतावनी भी है… किसी बच्चे को अब बच्चा मत समझना… अपने आपको बड़ा-बूढ़ा समझने की गलती न करना और बेवजह उलझने की तो कोशिश भी मत करना… सच कहें तो अब डर-डरकर ही जीवन जीना है… क्योंकि यह शहर अपनी चैतन्यता खो चुका है… इस शहर पर मूर्छा और उत्तेजना भडक़ाने वाले नशे के सौदागरों ने कब्जा कर लिया है… वो नौजवानों की जिंदगी मिटा रहे हैं… बच्चों को बर्बादी की राह पर ले जा रहे हैं… बेटियों और बच्चियों को बहका रहे हैं और सच कहें तो हमारी नस्ल को मिटाने के लिए हर हथकंडे आजमा रहे हैं… उधर आलम यह है कि थानों में बैठी पुलिस अपनी जेब गर्म कर जमीर बेचने में लगी है… अफसरों में हिस्सेदारी बंटने लगी है… नेताओं की जुबान और कोशिशें बौनी लगने लगी हैं… शहर में आतंक पैर पसार रहा है… नशेड़ी बने युवा सडक़ों पर कोहराम मचाते हैं… चलते लोगों को शिकार बनाते हैं… बच्चे हथियार उठाते हैं और सभ्य लोगों की मौत की खबरें अखबार सजाते हैं… सरकार हजार-बारह सौ लाड़ली बहनाओं को बांटकर निश्चिंत हो जाती है… युवाओं को रोजगार की कहानी सुनाती है… मुफ्त की बिजली से घरों में रोशनी तो आती है, लेकिन घर के चिरागों की रोशनी नशे में डूबकर गुल हो जाती है… यह बहुत विकराल… विशाल और विहंगम समस्या है… मौत घर नहीं, बच्चों को देख रही है… मचलती जिंदगी कब तड़पती बन जाए, कहा नहीं जा सकता… इस शहर में पटाखों की आवाज करने वाले साइलेंसर को रौंदने की नौटंकी के बजाय नशे के सौदागरों को दबोचने और रौंदने की आक्रामक मुहिम जरूरी है… नए पुलिस कप्तान को पांच बच्चों ने दो मौतों की सलामी दी है… अब देखना यह है कि इस सलामी का जवाब कप्तान किस पराक्रम से देते हैं या शहर को बर्बाद या पीढ़ी को दुर्दांत होने के लिए छोड़ देते हैं…
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