नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट बैठक में महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दे दी गई है। इसे संसद में पेश किया जाएगा। इस बिल को लेकर पिछले काफी समय से अटकलें लगाई जा रही थी। विपक्षी दलों की ओर से भी लगातार इसकी मांग की जा रही थी। यह बिल पिछले 27 साल से अटका हुआ है। कांग्रेस भी लगातार इस बिल को पास करने का मांग कर रही है। ऐसे में मोदी सरकार के लिए सदन में पास करना कोई मुश्किल नजर नहीं आ रही है। आखिर यह बिल क्या है और इसे क्यों लाया गया है, इसे विस्तार से समझते हैं।
क्या है महिला आरक्षण बिल?
महिला आरक्षण बिल की मांग पिछले 27 साल से हो रही है। इस बिल के लागू होने के बाद संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। इस बिल के मुताबिक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई सीटें एससी-एसटी समुदाय से आने वाली महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। इन आरक्षित सीटों को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अलग-अलग क्षेत्रों में रोटेशन प्रणाली से आवंटित किया जा सकता है। महिला आरक्षण बिल के अनुसार, महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण 15 साल के लिए ही होगा। इस बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए। आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के ज़रिए आवंटित की जा सकती हैं।
कितनी पुरानी है मांग?
इस विधेयक को पहली बार सितंबर 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार द्वारा 81वें संशोधन विधेयक के रूप में लोकसभा में पेश किया गया था। इस बिल को 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी पेश किया गया था। कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा। वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की. लेकिन सफल नहीं हुई। इस बिल को जब आखिरी बार 2008 में संसद में पेश किया गया था, तो उसमें रखे प्रस्ताव के मुताबिक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सभी सीटों में से 33 फीसदी आरक्षित किया जाना था। राज्यसभा में यह बिल 9 मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ। बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था।
राज्यसभा से पास होने के बाद भी इस बिल को यूपीए के कार्यकाल में लोकसभा में पेश नहीं किया गया। राष्ट्रीय जनता दल समेत समाजवादी पार्टी ने भी तब इसका विरोध किया था। उस समय यह दोनों ही दल यूपीए का हिस्सा थे। कांग्रेस को तब डर था कि अगर इस बिल को लोकसभा में लाया गया तो कही उसके समर्थक दल ही बिल का विरोध ना कर दें। इस इस बिल को एक बार फिर लोकसभा में पेश किया जाएगा। अगर लोकसभा से यह बिल पास हो जाता है तो राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही यह कानून बन जाएगा।
संसद में अभी कितनी है महिलाओं की संख्या?
मौजूदा स्थिति की बात करें तो लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या 82 और राज्यसभा में 31 है। ऐसे में अगर देखा जाए तो लोकसभा में महिलाओं की भागीदारी 15 फीसदी तो राज्यसभा में कुल 13 फीसदी है। बता दें कि कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने 2017 में प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर इस बिल पर सरकार का साथ देने का आश्वासन दिया था। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने भी 16 जुलाई 2018 को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर महिला आरक्षण बिल पर सरकार को अपनी पार्टी के समर्थन की बात दोहराई थी।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved