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    क्या है सेंगोल, जिसे नए संसद भवन में स्थापित करेगी मोदी सरकार, जानें भारत के ‘राजदंड’ का कितना महत्व

  • May 24, 2023

    नई दिल्ली। 28 मई को भारत के बहुप्रतीक्षित नए संसद भवन का उद्घाटन किया जाएगा। इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार सुबह प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा कि नया संसद भवन हमारे इतिहास, सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का सुंदर प्रयास है। इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित हो रही है। उन्होंने एलान किया है कि नए संसद भवन में सेंगोल स्थापित किया जाएगा।

    सेंगोल चर्चा में क्यों आया? 

    केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने स्वतंत्रता के एक ‘महत्वपूर्ण ऐतिहासिक’ प्रतीक ‘सेंगोल’ (राजदंड) की प्रथा को फिर से शुरू करने की भी घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था। शाह ने कहा कि पीएम मोदी नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले तमिलनाडु से सेंगोल प्राप्त करेंगे और वह इसे नए संसद भवन के अंदर रखेंगे। सेंगोल स्पीकर की सीट के पास रखा जाएगा।

    गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, ‘इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है। सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त, पवित्र और उचित स्थान कोई हो ही नहीं सकता। इसलिए जब संसद भवन देश को समर्पण होगा, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी बड़ी विनम्रता के साथ तमिलनाडु से आए अधीनम (तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित धार्मिक मठ) से सेंगोल को स्वीकार करेंगे।’

    उन्होंने बताया कि इस सेंगोल का बहुत बड़ा महत्व है। पीएम मोदी को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने इस बारे में और जानकारी हासिल करने को कहा।

    सेंगोल का इतिहास क्या है?

    सेंगोल तमिल भाषा के शब्द ‘सेम्मई’ से निकला हुआ शब्द है। इसका अर्थ होता है धर्म, सच्चाई और निष्ठा। सेंगोल राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक हुआ करता था।

    सेंगोल के इतिहास की जानकारी देते हुए शाह ने बताया कि 14 अगस्त 1947 को 10:45 बजे के करीब जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु की जनता से इस सेंगोल को स्वीकार किया था। यह अंग्रेजों से इस देश के लोगों के लिए सत्ता के हस्तांतरण का संकेत था। उन्होंने बताया कि इसे इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था और इसे नए संसद भवन में ले जाया जाएगा।

    अमित शाह ने बताया कि सेंगोल जिसे दिया जाता है उससे न्यायसंगत और निष्पक्ष शासन प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है। भारत की स्वतंत्रता के समय इस पवित्र सेंगोल को प्राप्त करने की घटना को दुनियाभर के मीडिया ने व्यापक रूप से कवर किया था।

    जानकारी के मुताबिक, भारत को स्वर्ण राजदंड मिलने के बाद कलाकृति को एक जुलूस के रूप में संविधान सभा हॉल में भी ले जाया गया था।


    माउंटबेटन को ‘राजाजी’ ने समझाया था सेंगोल का महत्व 

    अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण के समारोह पर चर्चा के दौरान, वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू से एक प्रश्न किया। माउंटबेटन ने प्रतीकात्मक समारोह के बारे में जानकारी ली। इसके लिए नेहरू ने सी. राजगोपालाचारी (राजाजी) से सलाह मांगी। राजाजी ने चोल वंश के सत्ता हस्तांतरण के मॉडल से प्रेरणा लेने का सुझाव दिया। दरअसल, चोल वंश में एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता सौंपते वक्त शीर्ष पुजारियों का आशीर्वाद दिया जाता था। राजाजी के अनुसार, चोल काल में एक राजा से उसके उत्तराधिकारी को सेंगोल का प्रतीकात्मक हस्तांतरण शामिल था। सेंगोल को अधिकार और शक्ति के प्रतीक माना गया।

    राजाजी ने तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित एक धार्मिक मठ, थिरुववदुथुराई अधीनम से संपर्क किया। अधीनम मठ से जुड़े संस्थान हैं जो भगवान शिव की शिक्षाओं और परंपराओं का पालन करते हैं। 500 से अधिक वर्षों से लगातार काम कर रहे थिरुववदुथुरै अधीनम का अधीमों के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी विशेषज्ञता और न्याय और धार्मिकता के सिद्धांतों के गहरे जुड़ाव को स्वीकार करते हुए, राजाजी ने सेंगोल की तैयारी में उनकी सहायता मांगी।

    इस प्रकार तिरुवदुथुराई अधीनम के शीर्ष पुजारी द्वारा एक सेंगोल को बनाया गया जिसकी लंबाई लगभग पांच फीट थी। विशेष रूप से, इसके शीर्ष पर स्थित नंदी प्रतीक था जो न्याय और निष्पक्षता को दर्शाता है। सेंगोल को तैयार करने का काम चेन्नई के जाने-माने जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को सौंपा गया था, जिनको इस क्षेत्र में महारत हासिल थी। सेंगोल के निर्माण में शामिल और वुम्मिदी परिवार के दो सदस्य वुम्मिदी एथिराजुलु (96 वर्ष) और वुम्मिदी सुधाकर (88 वर्ष) आज भी जीवित हैं।

    इसका तमिल चोल साम्राज्य से क्या वास्ता है?

    चोल काल के दौरान, राजाओं के राज्याभिषेक समारोहों में सेंगोल का अत्यधिक महत्व था। यह एक भाले या ध्वजदंड के रूप में कार्य करता था जिसमें बेहतरीन नक्काशी और जटिल सजावट होती थी। सेंगोल को अधिकार का एक पवित्र प्रतीक माना जाता था, जो एक शासक से दूसरे शासक को सत्ता के हस्तांतरण के रूप में सौंपा जाता था।

    चोल राजवंश वास्तुकला, कला और साहित्य और संस्कृति के संरक्षण में अपने असाधारण योगदान के लिए प्रसिद्ध था। सेंगोल चोल राजाओं की शक्ति, सच्चाई और संप्रभुता के प्रतीक चोल शासनकाल के एक प्रतिष्ठित प्रतीक के रूप में उभरा।

    वहीं समकालीन समय में, सेंगोल को अत्यधिक सम्मानित किया जाता है और गहरा सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह विरासत और परंपरा के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित है, जो विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, त्योहारों और महत्वपूर्ण समारोहों के अभिन्न अंग के रूप में कार्य करता है।

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