नई दिल्ली: वाराणसी की विवादित ज्ञानवापी मस्जिद चर्चा में है. चर्चा की वजह अदालत का फैसला, जिसमें आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) को इसकी जांच करने की अनुमति दी गई है. मुस्लिम पक्ष खुदाई की वजह से मस्जिद के ढांचे को नुकसान पहुंचने की आशंका लेकर कोर्ट गया था, लेकिन ASI ने न केवल किसी भी तरह की खुदाई से इनकार किया बल्कि यह भी कहा कि अगर खुदाई की जरूरत पड़ी तो वे अदालत से अनुमति लेने के बाद ही ऐसा करेंगे.
अब सवाल उठना लाजिमी है कि बिना खुदाई एएसआई टीम जांच कैसे करेगी? यूं तो इस मामले में कई तकनीक है, जो बिना जमीन की खुदाई किए, अंदर का सच बताने में सक्षम है, पर सबसे सटीक परिणाम देने वाले उपकरण का नाम है ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (Ground Penetrating Radar).
क्या है ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार?
ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार यानी जमीन भेदने वाला रडार. यह बड़े काम की तकनीक है और पूरी दुनिया में इसका बखूबी इस्तेमाल भी हो रहा है. भारत में भी इसका इस्तेमाल एएसआई और सेना रेगुलर करती है. देश की बाकी एजेंसियां जरूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल करती आ रही हैं. इसके परिणाम बहुत सटीक पाए गए हैं. ज्ञानवापी में भी एएसआई इसी तकनीक का इस्तेमाल करने वाली है, जो पूरा सच सामने लाकर रख देगी.
इसे भू-मर्मज्ञ रडार भी कहा जाता है. इसके इस्तेमाल का मतलब यह हुआ कि बिना खुदाई किए लैपटॉप और अन्य तकनीकी उपकरणों के सहारे विशेषज्ञ जान सकेंगे कि जमीन के अंदर क्या छिपा है. यह सब कुछ इमेज के जरिए उनके सामने आता है. और साधारण शब्दों में कहें तो यह एक तरह का स्कैनर है जो जमीन के अंदर छिपी सच्चाई को सामने लाता है. जिस तरीके से मेडिकल साइंस में सीटी स्कैन के जरिए डॉक्टर बीमारी का आंकलन करते हैं, अल्ट्रासाउंड के जरिए पेट में मौजूद पथरी या भ्रूण की स्थिति पता की जाती ही, लगभग वैसे ही यह रडार जमीन के अंदर का सच विशेषज्ञों के सामने लाता है.
आरोप है कि मुगल शासक औरंगजेब ने विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवा दी थी. बीते साल यानी 2022 में हुए एक सर्वे में मस्जिद के वजू खाने में एक शिवलिंग मिला. कहा जाता है आक्रमण के समय पुजारी ने इस शिवलिंग को परिसर स्थित कुएं में छिपा दिया था. कालांतर में इसे वजूखाने के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा.
कैसे जमीन के अंदर का सच लाएगा बाहर?
यह एक पोर्टेबल छोटा सा उपकरण है. जमीन के अंदर जांच के लिए यह विद्युत चुंबकीय किरणें भेजता है. यही किरणें वैज्ञानिकों को इमेज फॉर्म में जमीन के अंदर का सच वापस करती हैं. 15 मीटर गहराई तक का परिणाम यह आसानी से दे देता है. एंटीना जमीन के अंदर के संकेतों के आधार पर परिणाम देता है.
जमीन के अंदर दीवार है या पत्थर, कोई धातु है या कुछ और. सारी जानकारी इसके माध्यम से सामने आती है. इस रिपोर्ट का विश्लेषण करने के बाद भू-विज्ञानी किसी नतीजे पर पहुंचते हैं. उसी हिसाब से आगे की प्रक्रिया तय की जाती है. ज्ञानवापी के केस में भी एएसआई ने अदालत में इसी रडार के भरोसे खुदाई न करने का शपथ पत्र दिया है.
इस रिपोर्ट के आने के बाद एएसआई को अगर जरूरत महसूस होगी तो खुदाई के लिए अलग से अनुमति लेगा. सटीक परिणाम की सूरत में खुदाई की जरूरत नहीं पड़ेगी. ASI अब किसी भी जगह खुदाई से पहले इस रडार का उपयोग करती है. इससे समय भी बचता है और श्रम और पैसा भी. इस रडार के कई रूप अब तक सामने आ चुके हैं.
दुनिया के सामने कब आई यह तकनीक?
इसका इतिहास जानने पर पता चलता है कि साल 1910 में वैज्ञानिक गोथेल्फ लीमबैक और हेनरिक लोबी ने पहला पेटेंट पेश किया था. साल 1926 में हुलसेनबेक ने एक और पेटेंट पेश किया. बेक ने इस तकनीक को और प्रभावशाली बनाया. साल 1929 में वैज्ञानिक डब्ल्यू स्टर्न ने इसी रडार या तकनीक से ग्लेशियर की गहराई को नापा था.
बाद में इस तकनीक पर कई शोध हुए लेकिन 1970 के आसपास इस तकनीक पर जो काम शुरू हुआ वह बेहद महत्वपूर्ण मुकाम पर है. साल 1972 में इस तकनीक का इस्तेमाल अपोलो मिशन में भी किया गया. आज इसका इस्तेमाल हीरा, सोना, भूजल, मिट्टी, बजरी यानी जमीन के अंदर छिपी किसी भी चीज के लिए किया जा रहा है. सेना जमीन के अंदर विस्फोटकों का पता लगाने में भी इसी तकनीक का इस्तेमाल कर रही है.
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