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    जो भारत के लिए अच्छा, वही टाटा की राह… JRD की यही सोच Tata की कामयाबी

  • July 29, 2022


    नई दिल्ली: टाटा समूह (Tata Group) की सबसे लंबे समय तक अगुवाई करने वाले दिग्गज उद्योगपति जेआरडी टाटा की आज 118वीं बर्थ एनिवर्सरी (118th Birth Anniversary Of JRD Tata) है. जेआरडी टाटा का जन्म (JRD Tata Birthday) आज ही के दिन साल 1904 में पेरिस में हुआ था. उनके पिता RD Tata टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा (Jamsetji Tata) के बिजनेस पार्टनर और रिश्तेदार थे. जेआरडी टाटा की मां सूनी (Sooni) फ्रांस की नागरिक थीं. वह अपने माता-पिता की चार संतानों में दूसरे नंबर पर थे. उनकी पढ़ाई फ्रांस (France) के अलावा जापान (Japan) और इंग्लैंड (England) में हुई थी.

    जेआरडी टाटा ने अपने जीवन में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की, जिनके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा. उनका योगदान भारत को अपनी पहली एयरलाइन (First Indian Airline) देने तक सीमित नहीं है, बल्कि स्टील सेक्टर में भारत को ग्लोबल पावर बनाने से लेकर जमशेदजी के अधूरे सपनों को पूरा करनार भी उनके खाते में दर्ज है. आज उनकी बर्थ एनिवर्सरी पर हम आपको इनमें से कुछ उपलब्धियों से अवगत कराने जा रहे हैं.

    भारत के पहले लाइसेंसधारी पायलट
    सबसे पहले भारत की पहली विमानन कंपनी की ही बात कर लेते हैं. उड़ान भरने के प्रति टाटाओं (TATAs) का प्रेम जगजाहिर है. यह जुड़ाव सिर्फ जेआरडी टाटा (JRD Tata) को ही नहीं था, जिन्होंने भारत को पहली एयरलाइन (First Indian Airline) बनाकर दी, उनके बाद टाटा संस (Tata Sons) की बागडोर संभालने वाले रतन टाटा (Ratan Tata) भी विमान उड़ाने का शौक रखते हैं. विमान और उड़ान से टाटाओं का संबंध जेआरडी टाटा के समय से शुरू हुआ. जेआरडी बचपन से ही उड़ान भरने को लेकर रोमांचित रहते थे. जब वह 15 साल के थे, तभी उन्होंने फ्रांस में एक विमान में उड़ान भरने का आनंद लिया था. इस अनुभव ने जेआरडी के मन उड़ान के प्रति लगाव पैदा कर दिया, जो अंतत: एअर इंडिया (Air India) की शुरुआत का कारण बना. साल 1929 में जेआरडी टाटा को कॉमर्शियल पायलट का लाइसेंस (JRD Commercial Pilot License) मिला और इस तरह वह ऐसा लाइसेंस पाने वाले पहले भारतीय बन गए.


    जेआरडी ने खुद ही उड़ाई पहली फ्लाइट
    साल 1930 में टाटा के मुख्यालय (Bombay House) में एक एयरमेल सर्विस शुरू करने का प्रस्ताव आया, जो बॉम्बे, अहमदाबाद और कराची को कनेक्ट करने वाला था. टाटा समूह के तत्कालीन चेयरमैन दोराबजी टाटा (Dorabji Tata) को जेआरडी के मित्र व टाटा में सहयोगी जॉन पीटरसन (John Peterson) ने इस सर्विस को शुरू करने के मना लिया. दोराबजी ने इस नए बिजनेस का जिम्मा जेआरडी को सौंपा. जेआरडी टाटा ने एयरफोर्स के पायलट नेविल विंसेंट के साथ मिलकर कंपनी शुरू की. इसमें उन्होंने तब दो लाख रुपये लगाए थे. इस कंपनी की शुरुआत यात्री उड़ानों के लिए नहीं बल्कि डाक ढोने के लिए की गई थी. इसकी पहली डाक सेवा की उड़ान कराची से मद्रास के लिए थी और इसमें जेआरडी टाटा खुद पायलट बने थे.

    एअर इंडिया से बच्चे की तरह करते थे प्रेम
    साल 1932 में जेआरडी की अगुवाई में टाटा एविएशन सर्विस (Tata Aviation Service) की शुरुआत हुई. कुछ समय बाद कंपनी का नाम बदलकर टाटा एयरलाइंस (Tata Airlines) किया गया. हालांकि यह नाम बहुत दिनों तक नहीं चल पाया और अंतत: इस कंपनी को एअर इंडिया का नाम मिला, जो अभी भी कायम है. भारत की आजादी के बाद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) की अगुवाई वाली सरकार ने साल 1953 में एअर इंडिया को नेशनलाइज (Air India Nationalisation) कर दिया. आपको शायद मालूम नहीं हो, एअर इंडिया का प्रसिद्ध महाराजा लोगो भी जेआरडी टाटा की देन है. इसे जेआरडी टाटा ने एयर इंडिया की अंतरराष्ट्रीय सर्विस के लिए डिजायन करवाया था. एअर इंडिया के साथ जेआरडी टाटा के लगाव की कई कहानियां हैं. वह एयर होस्टेस तक को चुनने में भी भागीदारी लेते थे और इस काम में उन्हें अपनी पत्नी से मदद मिलती थी. एअर इंडिया के मेन्यू में मांस से लेकर टमाटर और अंडे तक उन्होंने खुद शामिल किया था. उनकी नजर फ्लाइट में यात्रियों को परोसी जाने वाली चाय से लेकर कॉफी तक पर रहती थी.

    टाटा को ऐसे मिला जेआरडी जैसा लीडर
    टाटा समूह को जेआरडी जैसा लीडर मिला, इसमें उनके पिता आरडी टाटा का बड़ा हाथ है. जेआरडी पहले फ्रांस की सेना में शामिल हो गए थे और सर्विस में बने रहना चाहते थे. पिता ने मना कर दिया तो उन्हें अपनी इच्छा दबानी पड़ी. बाद में जेआरडी कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन पिता ने इससे भी मना कर दिया और भारत आकर टाटा समूह के कामकाज से जुड़ने का आदेश सुना दिया. उन्होंने टाटा समूह में करियर की शुरुआत एक एप्रेंटिस (Apprentice) के रूप में दिसंबर 1925 में की और इसके लिए उन्हें एक रुपये भी नहीं मिलते थे. जब जेआरडी महज 22 साल के थे, उनके पिता का निधन हो गया. इसके बाद जेआरडी को टाटा संस (Tata Sons) के बोर्ड में जगह मिली. साल 1929 में जेआरडी ने फ्रांस की नागरिकता (JRD French Citizenship) छोड़ दी और भारत में बिजनेस पर पूरा ध्यान लगाने लग गए.


    जमशेदजी से जेआरडी को मिली ये विरासत
    जमशेदजी ने महज 17 साल तक ही टाटा समूह की अगुवाई की थी. पहले कंपनी का नाम टाटा एंड संस था, जिसे बाद में साल 1917 में प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाए जाने के बाद टाटा संस नाम मिला. जमशेदजी के बाद टाटा की कमान जेआरडी टाटा के हाथों में आई. जेआरडी ने ही सबसे लंबे समय तक टाटा समूह को लीड किया है. जेआरडी टाटा को सफल बनाने में जमशेदजी के सिद्धांतों का बड़ा योगदान है. आरएम लाला जेआरडी की बायोग्राफी ‘Beyond the Last Blue Mountain’ में इसकी झलक दिखाते हैं. वह लिखते हैं, ‘जमशेदजी बोर्ड की बैठकों में बार-बार एक सवाल पूछते थे…देश को किस चीज की जरूरत है? अब इसका उत्तर स्टील हो, हाइड्रो-इलेक्ट्रिक एनर्जी हो या यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस हो, जमशेदजी उस दिशा में पूरे जतन से जुट जाते थे.’

    जो भारत के लिए ठीक, वही टाटा के लिए ठीक
    जेआरडी ने जमशेदजी की इस बात की गांठ बांध ली थी और पूरे जीवन के लिए इस सिद्धांत को उन्होंने आत्मसात कर लिया था. आरएम लाला किताब में लिखते हैं, ‘सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट की बैठकों में मैंने कई बार जेआरडी को यह सवाल करते देखा है…देश को किस चीज की जरूरत है? मुझे पूरा यकीन है कि कंपनी की बोर्ड मीटिंग्स में उनके साथ के निदेशकों ने भी बार-बार जेआरडी को यह सवाल करते देखा होगा.’ आरएम लाला अमेरिका की उस समय की दिग्गज ऑटो कंपनी जनरल मोटर्स के अल्फ्रेड स्लोन से जेआरडी की तुलना करते हुए कहते हैं, ‘अल्फ्रेड स्लोन हमेशा कहते थे कि जो भी चीज जनरल मोटर्स के लिए ठीक है, वह अमेरिका के लिए ठीक है. जेआरडी ठीक इसके उलट सोचते थे. जेआरडी की सोच थी…जो भारत के लिए अच्छा है, वह टाटा के लिए भी अच्छा है.’ जेआरडी की यही बात उन्हें तमाम महान उद्योगपतियों की फेहरिस्त में अलग मुकाम दिला देती है.

    इस अमेरिकी बिजनेसमैन से भी हुए प्रभावित
    जेआरडी टाटा स्कॉटिश मूल के Andrew Carnegie से भी काफी प्रभावित थे. Carnegie की कहानी का सार ये है कि जब वह स्कॉटलैंड से अमेरिका के लिए निकले तो वे खाली हाथ थे. कालांतर में वह अमेरिका की स्टील इंडस्ट्री के बेताज बादशाह बन गए. इससे भी मजेदार बात कि जीवन के अंतिम सालों में उन्होंने मेहनत से कमाई दौलत को परोपकार के काम के लिए बांट दिया. जेआरडी भी यही मानते थे कि वह या उनकी कंपनी जो कुछ कमा रही है, वह कमाई अंतत: जरूरतमंद लोगों तक जानी चाहिए. जमशेदजी ने भी टाटा समूह की जड़ में इसी विचार का प्रतिरोपण किया था, जिसे जेआरडी ने सींच-सींच कर विशाल बरगद बना दिया.

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