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    कैबिनेट और राज्य मंत्रियों को क्या-क्या सुविधाएं मिलती हैं? इतना मिलता है वेतन

  • June 10, 2024

    नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के बाद केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की अगुवाई में सरकार का गठन हो गया है और प्रधानमंत्री समेत केंद्रीय मंत्रिमंडल में 72 मंत्री (72 ministers in the Union Cabinet, including Prime Minister) बनाए गए हैं. लोकसभा के लिए चुनकर आए 543 सांसदों में से कई मंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब रहे हैं. इनमें ज्यादातर भाजपा के हैं तो कुछ एनडीए में शामिल उसके सहयोगी दलों के. केंद्रीय मंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही वेतन-भत्तों के साथ ही साथ इनको कई तरह की सुविधाएं मिल गई हैं.

    भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल में तीन तरह के मंत्री बनाए जाते हैं. इनमें कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और राज्यमंत्री शामिल होते हैं. ये सभी मंत्रिमंडल का वह हिस्सा होते हैं, जिन पर अपने-अपने मंत्रालय का नेतृत्व करने का जिम्मा होता है. किसी भी मंत्रालय में पहले स्थान पर कैबिनेट मंत्री होते हैं, जो अपने मंत्रालय के कामकाज की अगुवाई करते हैं और सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं. ये केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में भी शामिल होते हैं.

    कैबिनेट मंत्री की मदद के लिए हर मंत्रालय में राज्य मंत्री तैनात किए जाते हैं. राज्य मंत्री सीधे कैबिनेट मंत्री को रिपोर्ट करते हैं. किसी एक मंत्रालय में कई राज्यमंत्री भी नियुक्त किए जा सकते हैं. दरअसल, कई मंत्रालयों के अधीन एक से अधिक विभाग होते हैं, जिनका कामकाज राज्य मंत्रियों में बांट दिया जाता है. इन्हीं राज्य मंत्रियों की मदद से कैबिनेट मंत्री इन विभागों का कामकाज संभालता है. वहीं, स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री के पास किसी मंत्रालय का स्वंतत्र कार्यभार होता है. उसके कंधों पर ही आवंटित मंत्रालय और विभाग की जिम्मेदारी होती है और ये सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करते हैं. हालांकि, आमतौर पर ये मंत्री कैबिनेट की बैठक में नहीं शामिल हो सकते.


    मंत्री बनने के साथ ही इन सभी मंत्रियों को दिल्ली में बंगला और सहायक से लेकर अन्य सुविधाएं और वेतन-भत्ते मिलने लगेंगे. मंत्रियों के निजी सहायक दिए जाते हैं, जो जरूरी नहीं कि सरकारी अधिकारी या कर्मचारी ही हो. मंत्री अपनी इच्छा से निजी सहायक नियुक्त कर सकते हैं. इसके अलावा सरकारी अधिकारी और कर्मचारी तो इनकी मदद के लिए होते ही हैं. इनकी कोठियों की देखभाल का जिम्मा भी सरकारी खर्च पर उठाया जाता है. वेतन की बात करें तो कैबिनेट मंत्री को हर महीने एक लाख रुपए मूल वेतन के रूप में मिलते हैं. इसके साथ ही सांसदों की तरह निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 70000 रुपए मिलता है. कार्यालय के लिए भी हर महीने 60,000 रुपए मिलते हैं. इसके अलावा सत्कार भत्ता के रूप में 2,000 रुपए दिए जाते हैं. राज्य मंत्रियों को भी ये सब मिलता है. बस सत्कार भत्ता के रूप में इनको 1,000 रुपए प्रतिदिन मिलते हैं. अगर कोई डिप्टी मंत्री बनाया जाता है तो उसको सत्कार भत्ता के रूप में 600 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से दिया जाता है.

    इसके अलावा मंत्रियों को भी संसद सदस्यों की तरह ही यात्रा भत्ता/यात्रा सुविधाएं, ट्रेन यात्रा की सुविधाएं, स्टीमर पास, टेलीफोन की सुविधाएं और वाहन खरीदने के लिए अग्रिम राशि मिलती है. मान लीजिए कि कोई लोकसभा अपने कार्यकाल से पहले ही भंग हो जाती है तो भी इसके सदस्य नई लोकसभा के गठन तक टेलीफोन कॉल, बिजली और पानी की यूनिट का इस्तेमाल कर सकते हैं. कोई सदस्य अगली लोकसभा में फिर से चुनाव जाता है तो पिछले साल के कोटे से अधिक उपयोग की गई टेलीफोन कॉल और बिजली-पानी की यूनिटों का समायोजन कर सकता है.

    साथ ही साथ मंत्रियों को भी किसी पूर्व सांसद की तरह ही मासिक पेंशन मिलती है. हर बार पांच साल पूरे होने पर 1500 रुपये की अतिरिक्त वृद्धि पेंशन में की जाती है. मृत्यु होने की स्थिति में इनके पति या पत्नी को ताउम्र आधी पेंशन दी जाती है. हालांकि, मृत्यु के बाद आश्रित को पेंशन की 50 प्रतिशत राशि ही मिलती है. मंत्रियों को सांसदों की ही तरह ट्रेन के एसी फर्स्ट क्लास में चाहे जितनी यात्राओं की छूट होती है. हालांकि, साथ में कोई सहायक या पत्नी हो तो सेकंड एसी में यात्रा की छूट मिलती है. पूर्व केंद्रीय मंत्रियों को पेंशन और फ्री रेल यात्रा के अलावा चिकित्सा की सुविधाएं भी निशुल्क मिलती हैं. कैबिनेट मंत्री की ही तरह ये सारी सुविधाएं राज्यमंत्री और राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार को भी दी जाती हैं. साल 2018 तक तो संसद के सदस्य खुद ही अपने वेतन में संसोधन के लिए कानून बनाते थे. इसको लेकर खूब विवाद होता था. इसको देखते हुए फाइनेंस एक्ट-2018 के जरिए कानून में बदलाव किया गया. अब इस एक्ट के अनुसार सांसदों के वेतन, दैनिक भत्ते और पेंशन में हर पांच साल में वृद्धि का प्रावधान किया गया है. इसके लिए इनकम टैक्स एक्ट-1961 में बताया गया लागत मुद्रास्फीति सूचकांक आधार बनाया जाता है.

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