मुर्शिदाबाद. पिछले दिनों पश्चिम बंगाल (West Bengal) के मुर्शिदाबाद (Murshidabad) में हिंसा की घटनाएं सामने आईं. इसके पीछे एसडीपीआई (SDPI) का हाथ बताया जा रहा है. इसके अलावा बांग्लादेश (Bangladesh) से जुड़े चरमपंथी संगठनों की भूमिका भी जांच के दायरे में है. मामले की जांच कर रही बंगाल पुलिस को कुछ ऐसे इनपुट्स मिले हैं. जिससे मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा के पीछे एसडीपीआई का हाथ होने के पुख्ता सबूत सामने आ रहे हैं.
पुलिस की जांच में पता चल रहा है कि SDPI सदस्यों ने पिछले कई दिनों से इलाके में मुस्लिम समाज के युवाओं को वक़्फ़ के नाम पर भड़काना शुरू कर दिया था.
पुलिस ने क्या बताया?
इलाके में घर-घर जाकर जाकर एसडीपीआई के सदस्य वक़्फ़ संशोधन के ख़िलाफ़ आंदोलन के लिए युवाओं और बच्चों को भड़का रहे थे. मुस्लिम समाज के इन युवाओं और बच्चों को कहा जा रहा था कि सरकार वक़्फ़ के नाम पर मुसलमानों का सब कुछ छीन लेगी, इसके लिए आंदोलन करना होगा. इस दौरान तरह-तरह की भड़काऊ और उकसाने वाली बातें कही जा रही थीं. पुलिस के साथ झड़प में गोली लगने के बाद घायल इज़ाज़ अहमद की शनिवार को मुर्शिदाबाद के अस्पताल में मौत के बाद उनके परिजनों ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि एसडीपीएआई की तरफ से मुर्शिदाबाद में मुहिम चलाई जा रही थी.
पुलिस के मुताबिक, एक वक्त बंगाल में सिमी की सक्रियता सबसे ज़्यादा मुर्शिदाबाद में थी. बाद में सिमी के ही लोग पीएफआई से जुड़ गए और मुर्शिदाबाद पीएफआई का गढ़ बन गया और यही सिमी और पीएफआई के लोग ही एसडीपीआई से भी जुड़े हुए हैं और मुर्शिदाबाद में एसडीपीआई का संगठन काफ़ी मज़बूत भी है.
पुलिस के मुताबिक, हिंसा में स्थानीय लोगों के अलावा बड़ी संख्या में बाहर से भी लोग आए थे. हिंसा पूर्व नियोजित भी लग रही है क्योंकि बीते शुक्रवार को जब घटना हुई तो सबसे पहले मुर्शिदाबाद के सूती में विरोध प्रदर्शन के दौरान नेशनल हाईवे जाम किया गया और यहीं पर पुलिस के साथ प्रदर्शनकारियों की झड़प शुरू हो गई. इसी के ठीक बाद श्मशेरगंज में भीड़ ने हिंसा और आगज़नी शुरू की. पुलिस सूती में प्रदर्शनकारियों के साथ उलझी रही और यहां से महज़ दस किलोमीटर दूर शमशेरगंज में भीड़ ने तांडव मचाना शुरू किया.
सरकारी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाया गया और चुन चुन कर हिंदू दुकानों और घरों को निशाना बनाया गया. जंगीपुर से निकली बड़ी फोर्स सूती में अटक कर रह गई और शमशेरगंज में तांडव चलता रहा. वहीं, छानबीन में हिंसा के पीछे बेहद युवा और बहुत सारे नाबालिग लड़कों की उन्मादी भीड़ की हिस्सेदारी सामने आ रही है. हिंसा करनेवालों की उम्र 10 साल से 20 साल के बीच थी और ये हिंसक भीड़ काफ़ी ज़्यादा थी. हिंसा की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, उनसे बिल्कुल साफ़ है कि छोटी उम्र के बच्चों और युवाओं ने हिंसा को अंजाम दिया.
वायरल हुए वीडियोज में साफ़ देखा जा सकता है कि जिन लोगों ने पिछले दो दिनों से हिंसा को अंजाम दिया है उनकी उम्र 10 साल से 20 साल के बीच की है. प्राथमिक छानबीन में यह भी सामने आया है कि इस हिंसक भीड़ में ज्यादातर माइग्रेंट अन्य राज्यों में लेबर का काम करते हैं. ईद की छुट्टी में फिलहाल मुर्शिदाबाद अपने घर आए हुए हैं. इनमें ज्यादात कम पढ़े-लिखे बच्चे और युवा थे.
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