कौन सोच सकता था आग बुझाने जाएंगे और ऐसी आग लगाकर जाएंगे कि पूरी न्यायप्रणाली झुलसने लग जाएगी…कइयों की बोलती बंद हो जाएगी… सच्चाई जुबान पर नहीं आ पाएगी… हकीकत खुद अपने आप पर शरमाएगी… पहली बार ऐसा नजर आया कि न्यायप्रणाली खुद न्याय का निर्धारण नहीं कर पा रही है…देश में पहली बार हुई इस घटना से हतप्रभ चीफ जस्टिस जज साहब का तत्काल तबादला करा देते हैं तो वकील गुर्राने लगते हैं…ताबड़तोड़ जांच कमेटी बनाई जाती है…सच्चाई सामने लाई जाती है…घर में जले नोट दिखाए जाते हैं, लेकिन जले नोट गायब हो जाते हैं…आरोपी जज खुद को बेकसूर बताते हैं…जज पर कार्रवाई के लिए संविधान आड़े आ जाता है… बिना महाभियोग उच्च न्यायालय के जज को हटाया नहीं जा सकता है…लिहाजा न्यायिक कार्यों से पृथक किया जाता है…लेकिन नजरें गड़ाई बैठी जनता को सवाल का जवाब नहीं मिल पाता है…मामला न्यायप्रणाली के अस्तित्व का बन जाता है…इस देश में सर्वाधिक विश्वास जजों पर किया जाता है…उनकी वाणी को देवतुल्य समझा जाता है…उन्हें न्याय का विधाता कहा जाता है…जो स्थान नवग्रहों में न्याय के देवता शनिदेव का माना जाता है, उस स्थान पर इस देश में जजों को बिठाया जाता है…उन पर उंगली उठाना अपराध माना जाता है…उनके फैसलों तक पर सवाल उठाना तौहीन समझा जाता है…सर्वोच्च पद पर बैठे इन जजों का इतना आदर किया जाता है कि देश का प्रधानमंत्री हो या राष्ट्रपति उनके फैसलों के आगे सर झुकाता है…उनके फैसलों तक पर टिप्पणी करने की कोई हिम्मत नहीं जुटाता है… देश के जज भी अपने पद की मर्यादा का पालन करते हैं…नाते-रिश्ते, यारी-दोस्ती तक त्याग कर पद की गरिमा का ध्यान रखते हैं…किसी भी सार्वजनिक समारोह तक में जाने से केवल इसीलिए कतराते हैं, ताकि कोई उन पर उंगली न उठाए…उनके संबंधों का दुरुपयोग न कर पाए…अपना पूरा जीवन मर्यादा में रहकर बिताने वाले न्याय की मूर्तियां यदि सवालों के घेरे में खड़ी हो जाएं तो उन्हें खुद इंसाफ के लिए… अपने सम्मान के लिए न्यायोचित रास्ता खोजना चाहिए…इस देश ने मर्यादा की बड़ी-बड़ी कीमतें चुकाई हैं…भगवान श्रीराम ने केवल एक धोबी के आक्षेप पर अपनी पत्नी का त्याग कर दिया और माता सीता ने अग्नि परीक्षा देकर स्वयं को पवित्र साबित किया… उस देश में यदि जिस जज पर आक्षेप लगे, पूरी बिरादरी की साख दांव पर लगे तो अग्नि और परीक्षा दोनों जरूरी हो जाती है…यदि ऐसा नहीं हुआ तो न्याय के लिए चलने वाली कलम हिचकिचाएगी… इंसाफ के पन्ने लिखते जजों को फैसला लिखते हुए शब्दों की कमी पडऩे लग जाएगी…एक आवाज तो लोगों के जेहन से निकलकर आएगी कि अदालतें खुद इंसाफ कैसे कर पाएंगी…
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