सोच से आगे और आगे की सोच…
घर को सशक्त बनाना… पिछड़ों को सामर्थ्य का अहसास कराना और उन्हें समाज में समकक्ष बनाना… यह कल्पना हो सकती है, लेकिन इस कल्पना को तभी साकार किया जा सकता है जब घर मजबूत हो और उससे ज्यादा मजबूत घर का मुखिया हो… जो सोच से आगे और आगे की सोचे… आसान नहीं था शिव से राज छुड़वाना और आसान नहीं था दिग्गजों को पीछे बिठाना और एक अनजान चेहरे को मुखिया बनाना… नई पीढ़ी को बागडोर का अहसास कराना… कार्यकर्ताओं में उम्मीद जगाना और उन्हें भविष्य का आइना दिखाना… यह मोदी है तो मुमकिन है और शाह है तो संभव है… यह संदेश भी है देश को विरासत समझने वाली कांग्रेस के लिए… जो थकाऊ नेताओं का बोझ ढोते-ढोते खुद बूढ़ी हो चली है… जिसने कभी नेताओं की नई पौध को बगीचा सौंपने की हिम्मत नहीं दिखाई… जिसने सिंधिया पर सितम ढाए… पायलट पर पैर धरा… नयों को नीचा दिखाया… घिसे-पिटों पर दांव लगाया… और देश ही नहीं तीनों राज्यों को गंवाया… आज मोदी के लिए कोई चुनौती नहीं है… वो जिंदगी भर देश पर राज कर सकते हैं, लेकिन उनकी सोच में खुद को जिंदा रखने से ज्यादा पार्टी को भविष्य के सौ साल देना है और उसके लिए जरूरी है कि कोई दिग्गज होने का अहंकार न पाले और कोई जेहन में छोटा होने का मलाल न रखे… सबके अच्छे दिन आ सकते हैं और सब शिखर पा सकते हैं… मेहनत से मुकाम हांसिल होता है… और मुकाम मंजिल बन सकता है… मध्यप्रदेश में शिव के राज का प्रस्थान और मोहन यादव का राज्याभिषेक इसी संदेश और संकल्प का हिस्सा बने… मोहन यादव आज सर्वोच्च पद की बधाई ले सकते हैं, लेकिन उनके लिए भी यह वह कठिन परीक्षा है जिसमें ताज तो है पर चुनौतियां भी है… जिसमें वादों का बोझ तो है, लेकिन खजाना खाली है… जिसमें कमान तो है, लेकिन दिग्गजों का मान रखने की चुनौती भी है… जिसमें अधिकार तो है, लेकिन कुटिल, चालाक और चतुर अफसरशाही से भिड़ने, निपटने और जूझने जीतने की जद्दोजहद भी है… वैसे वक्त पाठशाला होता है… सब सब कुछ सिखाता है… लेकिन हकीकत यह भी है कि वक्त कम है और उम्मीदें ज्यादा… हमारी ओर से प्रदेश के नए मुखिया का वंदन… अभिनंदन और शुभकामनाएं… वे चैतन्यता दिखाएं… हर चुनौती को हराएं और नेतृत्व के विश्वास को सार्थक कर दिखाएं…
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