चर्चा में एक वीडियो
उपचुनाव से पहले ग्वालियर चंबल संभाग में एक वीडियो की जबर्दस्त चर्चा है। बताते हैं कि सिंधिया समर्थक एक पूर्व महिला विधायक का यह वीडियो 2018 विधानसभा चुनाव के समय का है। कांग्रेस के टिकट मिलते ही यह महिला पार्टी के एक वरिष्ठ नेता से मदद मांगने पहुंची थीं। नेता के सामने इस महिला ने कसम खाई थी कि चुनाव जीतने के बाद वह सिंधिया के साथ नहीं रहेगी। नेताजी को भरोसा नहीं हुआ तो उन्होंने रात में ही एक मंदिर खुलवाया और वहां इस महिला ने भगवान को साक्षी मानकर कसम खाई कि वह सिंधिया के साथ नहीं रहेगी। नेताजी ने इस घटना का वीडियो भी बनाकर रख लिया। वीडियों में महिला यह कहती भी सुनी जा रही है कि सिंधिया खेमे से टिकट पाने के लिए उसने कितने रुपए खर्च किए। लेकिन अब 22 विधायकों में यह महिला भी शामिल है। इस महिला को अब भाजपा के टिकट पर चुनाव लडऩा है। इधर नेताजी चुनाव के बीच में वीडियो जारी करने की तैयारी में है।
आईएएस का इमोशनल पैंतरा
म प्र के एक आईएएस भ्रष्टाचार के तमाम मामलों में उलझते नजर आ रहे हैं। भूमि घोटाले से लेकर फर्जी भुगतान घोटाले तक इस आईएएस की तमाम फाईलें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक पहुंच रही हैं। मजेदार बात यह है कि भ्रष्टाचार से बचने के लिए आईएएस ने इमोशनल कार्ड खेलना शुरू कर दिया है। अपने गांव में पुराने घर के सामने बैठी अपनी मां की तस्वीर दिखाकर वे यह बताने का प्रयास करते हैं कि वे गरीब घर से आए हैं। उनके खिलाफ कुछ हुआ तो उनके गरीब परिवार पर क्या बीतेगी। नौकरशाही में आईएएस के इस इमोशनल कार्ड का जमकर मजाक उड़ाया जा रहा है।
संकट में संकटमोचन
म प्र में भाजपा की राजनीति में संकटमोचक के रूप में पहचान बनाने वाले एक वरिष्ठ मंत्री आजकल स्वयं संकट में हैं। सरकार में पहले की तरह उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। उनके प्रस्तावों और सुझावों को सरकार में कोई तवज्जों नहीं मिल रही है। उन्हें विभाग तो भारी-भरकम दे दिया गया है, लेकिन वे चाहकर भी अपने विभाग में ट्रांसफर पोस्टिंग भी नहीं करा सकते। उनकी लगभग 300 से अधिक नोटशीटें मुख्यमंत्री समन्वय में भेज दी गई हैं। कुछ दिन पहले तक प्रदेश का शीर्ष मीडिया उनके सामने शीर्षासन करता था, लेकिन आजकल पहले पेज पर मंत्रीजी को जमकर निपटाया जा रहा है। चर्चा है कि अमित शाह की बीमारी का सबसे बड़ा नुकसान फिलहाल मंत्रीजी को उठाना पड़ रहा है।
बयान भारी पड़ा
भा जपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा को उनका खुद का एक बयान भारी पड़ गया है। उन्होंने 2012 में प्रदेश अध्यक्ष रहते पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को घर बिठाने के अभियान के तहत बयान दिया था कि जब वे 62 साल के होंगे तो स्वयं राजनीति से सन्यास लेकर एकांतवास में रहेंगे, जहां 5 गाय और 2 भैंस पालेंगे। समाजसेवा के कार्य करेंगे। झा पिछले साल 62 साल के हुए तो पार्टी ने स्वयं ही उन्हें सन्यास की ओर भेजने की कवायद शुरू कर दी। उन्हें तीसरी बार राज्यसभा जाने का मौका नहीं मिला। शनिवार को उन्हें भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद से भी हटना पड़ा। फिलहाल भाजपा ने उन्हें ग्वालियर में उपचुनाव की रणनीति बनाने की जिम्मेदारी सौंप दी है। लंबे समय बाद प्रभात झा के पास सत्ता या संगठन की कोई जिम्मेदारी नहीं है। लगता है कि प्रभात जी के बयान को भाजपा ने गंभीरता से ले लिया है।
पुलिसिंग सिखाती महिलाएं
म प्र के इतिहास में पहली बार हुआ है कि पुलिस मुख्यालय की प्रशिक्षण शाखा में दोनों महत्वपूर्ण पदों पर वरिष्ठ महिला आईपीएस की तैनाती की गई है। प्रदेश की वरिष्ठतम दोनों आईपीएस को एक ही शाखा में पदस्थ करने को लेकर अटकलें चल रही हैं कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं बेहतर प्रशिक्षण दे सकती हैं। वरिष्ठ आईपीएस अरुणा मोहन राव और अनुराधा शंकर दोनों की जोड़ी कोरोना काल में प्रशिक्षण की नई विधा को तैयार करने में भी लगी है। बाकी सब काम ऑनलाईन हो सकता है, लेकिन पुलिस प्रशिक्षण ऑनलाईन होना बेहद कठिन काम है, जिसे यह दोनों महिलाएं बखूबी अंजाम दे रही हैं।
‘गद्दार’ बना स्लोगन
म प्र में कांग्रेस के बाद अब भाजपा ने भी गद्दार शब्द को अपना स्लोगन बनाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस पिछले 5 माह से ‘गद्दार’ कहकर सिंधिया को घेरने की कोशिश करती रही है, लेकिन अब सिंधिया ने जवाबी हमले के लिए गद्दार शब्द का ही उपयोग किया है। सिंधिया का कहना है कि असली गद्दार कमलनाथ और दिग्विजय सिंह हैं, जिन्होंने कांग्रेस के वचनपत्र पर कालिख पोत दी। सिंधिया का दावा है कि प्रदेश से गद्दारी करने वालों को सिंधिया परिवार मजा चखाता है। सिंधिया के इस बयान के बाद अब ‘गद्दार’ शब्द मप्र विधानसभा उपचुनाव का सबसे बड़ा स्लोगन बन गया है। अब चुनाव परिणाम ही बताएंगे कि मप्र का असली ‘गद्दार’ कौन है?
भाजपा का कमजोर प्रचारतंत्र
म प्र विधानसभा उपचुनाव में फिलहाल भाजपा का प्रचार तंत्र कांग्रेस की अपेक्षा कमजोर नजर आ रहा है। अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भारी हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर कांग्रेस ने शिवराज और भाजपा दोनों को पीछे छोड़ दिया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया को तो उनके कद के अनुसार कवरेज नहीं मिल रहा है। भाजपा में प्रचार तंत्र को मजबूत करने के लिए कवायद शुरू हो गई है।
और अंत में…
म प्र की शिवराज सरकार ने 2 पूर्व मुख्य सचिवों को घर बिठा दिया है। इनका पुनर्वास भी शिवराज सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में किया था, लेकिन प्रदेश में कमलनाथ सरकार आते ही इनकी निष्ठाएं डगमगाने से शिवराज खासे नाराज थे। पहले अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन संस्थान में महानिदेशक की कुर्सी से चिपके परशुराम को घर भेजा गया और अब रेरा में बैठकर सुविधाएं भोगने वाले एंटोनी डीसा की असम्मानित विदाई हो गई है। तीसरे मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह की धड़कने भी ऊपर-नीचे हो रही हैं। इस घटनाक्रम पर मंत्रालय में एक ही नारा गूंज रहा है, ‘सरकार का इकबाल बुलंद है।Ó
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