नई दिल्ली (New Delhi)। इस बार देश में फरवरी से ही हीटवेव का असर (Heatwave effect) दिखाई देने लगा था। हालांकि बीच में फिर से राहत मिली। मौसम विभाग (weather department) की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ ही सालों में हीटवेव का समय 12 से 18 दिन और बढ़ जाएगा। इसका लोगों के जीवन पर बहुत असर (Great impact on people’s lives) होने वाला है। इस चीज को लेकर अभी से स्ट्रैटजी बनाने की जरूरत है।
मौसम विभाग की रिपोर्ट ‘हीट ऐंड कोल्ड वेव्स इन इंडिया प्रॉसेसेज ऐंडप्रेडिक्टेबिलिटी’ (‘Heat and Cold Waves in India Processes and Predictability’) में कहा गया है कि नई बनने वाली इमारतों में वेंटिलेशन और इंस्युलेशन की अच्छी सुविधा, हीट स्ट्रेस के बारे में जागरूकता, वर्क शेड्यूल में बदलाव, कूल शेल्टर बनाना और जल्दी चेतावनी जारी करना। ये सारे वो घटक हैं जिनपर जोर देने की जरूरत है। मौसम विभाग का कहना है कि हर साल गरमी बढ़ रही है। हीटवेव का प्रकोप भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में अभी से इन सारी जीचो पर ध्यान देने की जरूरत है।
मौसम विभाग ने कहा है कि 2060 तक हीटवेव में 12 से 18 दिन बढ़ जाएंगे। इसके लिए 1961 से 2020 तक के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। बता दें कि भारत में दूसरी किसी भी प्राकृतिक आपदा से ज्यादा हीटवेव लोगों की जान लेती है। इस मामले में ट्रोपिकल साइक्लोन अपवाद हैं।
कब होती है हीटवेव
हीटवेव तब घोषित की जाती है जबकि अधिकतम तापमान 40 डिग्री से ज्यादा हो और यह सामान्य से 4.5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो। जब तापमान 40 डिग्री से अधिक और सामान्य से 6.5 डिग्री ज्यादा हो तो बहुत ही गंभीर श्रेणी की हीटवेव बताई जाती है। मार्च से जून के बीच में मध्य, उत्तर-पश्चिम भारत और आंध्र प्रदेश, ओडिशा के तट पर हीटवेव पड़ती है। उत्तर भारत में हीटवेव में थोड़ी कमी रहती है।
सामान्य तौर पर उत्तर भारत और आंध्र, ओडिशा के तट पर दो बार हीटवेव का असर होता है। कई जगहों पर साल में चार बार भी हीटवेव का प्रकोप देखने को मिलता है। ज्यादातर जगहों पर देखा गया है कि पिछले 60 साल में हीटवेव की फ्रेक्वेंसी और गंभीरता दोनों ही बढ़ी है। मौसम विभाग का कहना है कि पिछले 30 साल में हीटवेव के दिनों में 3 दिन बढ़ गए हैं। भविष्य में यह 12 से 18 दिन बढ़ने वाली है। भविष्य में पेनिनसुलर इंडिया और तटीय इलाकों में भी हीटवेव का प्रकोप देखने को मिलेगा।
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