उज्जैन। सोमवार से शासन ने कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों के स्कूल खोलने के आदेश तो जारी कर दिए लेकिन यह आदेश न केवल जानलेवा है बल्कि बच्चों को माता-पिता को नाराज करने वाला भी है। सोमवार से छोटे बच्चों के स्कूल भले ही चालू हो रहे हैं लेकिन 90 प्रतिशत से अधिक पैरेंट्स ने स्पष्ट मना कर दिया है कि वो बच्चों को खतरनाक स्थिति में स्कूल नहीं भेजेंगे। इसके बाद शासन प्रशासन के प्राथमिक स्कूल चालू करने के निर्णय पर प्रश्न चिह्न लग गए हैं। उल्लेखनीय है कि राज्य शासन ने सोमवार 20 सितंबर से पूरे प्रदेश में पहली से पांचवी तक के बच्चों के स्कूल खोलने के आदेश जारी कर दिए है। संभवत: यह निर्णय निजी स्कूल संचालकों के दबाव में लिया गया है। आदेश में हालांकि कक्षाओं में बच्चों को 50 फीसदी क्षमता के साथ कोरोना गाइडलाइन का पूरा पालन करते हुए पढ़ाने के निर्देश है। इधर उज्जैन शहर में छोटे बच्चों के पालक इसे लेकर सोशल मीडिया पर लगातार अपनी चिंता जाहिर कर रहे हैं।
पालकों का कहना है कि स्कूल प्रबंधन भले ही कोरोना गाइडलाइन का पूरा पालन कराने, 50 फीसदी की क्षमता से बच्चों को बैठाने की व्यवस्था करने तथा स्कूल के शिक्षक तथा स्टॉफ का वैक्सीनेशन कराने की अनिवार्यता के साथ पढ़ाने के दावे कर रहे हो, लेकिन यह बात सब जानते है कि पहली से पांचवी तक की कक्षा में पढऩे वाले बच्चों से इन शर्तों का पालन आसानी से नहीं कराया जा सकता। इनमें से अगर एक भी बच्चा बीमार या कोरोना पॉजिटिव हुआ तो पूरी कक्षा के बच्चे संक्रमित हो सकते हैं। यही कारण है कि 90 फीसदी से ज्यादा पालक अपने बच्चों को ऑफलाइन पढ़ाई के लिए यह जोखिम उठाकर विद्यालय नहीं भेजना चाहते। उनका कहना है कि ऑनलाइन पढ़ाई कोरोना की तीसरी लहर की संभावना के बीच सबसे बेहतर तरीका है।
स्कूलों के वाट्सएप ग्रुप पर अधिकांश की मनाही
सोमवार से छोटे बच्चों के स्कूल खुलने से पहले शहर के कई निजी स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के पेरेन्ट्स वाट्सएप पर एक दूसरे से जुड़े हुए है। शिक्षक भी इन्हीं के जरिए दिशा निर्देश देते रहते हैं। अलग अलग स्कूलों के वाट्सएप ग्रुप पर इन दिनों स्कूल प्रबंधन द्वारा सोमवार से बच्चों के स्कूल भेजने के लिए पालकों की राय मांगी जा रही है। इसमें 90 से 95 फीसदी पालक इसके लिए सॉरी या क्षमा कहते हुए बच्चों को स्कूल भेजने से सोशल मीडिया में स्पष्ट इंकार कर रहे हैं। अन्य पालक भी इसे लेकर एक दूसरे का समर्थन ह्यह्यकर रहे हैं।
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