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    हम बताते हैं भाजपा इतनी बड़ी जीत कैसे हासिल कर पाई…

  • December 05, 2023

    जब कांग्रेस लड़ी ही नहीं तो हारी कैसे… न नेता थे न रणनीति…न कार्यकर्ता थे और न ही कोई प्रचारक… ओपिनियन पोल में खुद की बढ़त से फूले नहीं समाई कांग्रेस ने टिकट बांटकर उम्मीदवारों को लडऩे-मरने के लिए छोड़ दिया… जबकि उसी ओपिनियन पोल में अपनी हार देखकर भाजपा ने ऐसी कमर कसी कि प्रदेश में दिल्ली की फौज उतर आई… जीत की रणनीति बनाई… योजनाओं के भंडार खोले… प्रचारकों को हर क्षेत्र में छोड़ दिया… अपने विकास का हवाला दिया… जनता को रिझाया… अपना बनाया… उम्मीदवारों को मजबूत बनाया… बागियों को समझाया… मुख्यमंत्री का चेहरा छुपाया और सबको अवसर का आईना दिखाया… हर कोई जीत की जंग में उतर आया और परिणाम ऐसा आया कि भाजपा खुद चकित रह गई… कोई इसे लाड़ली बहना का वरदान बता रहा है… कोई विकास का भविष्य मान रहा है… कोई मोदी का जादू और शाह की रणनीति मान रहा है… लेकिन हकीकत यह है कि यह परिणाम किसी एक कारण से नहीं, बल्कि सामूहिक शक्ति, समझ और रणनीति का परिणाम है… मोदीजी का चेहरा था तो कार्यकर्ताओं के प्राण थे… शाह की रणनीति थी तो कार्यकर्ता हथियार थे… शिवराजजी की योजना थी तो प्रचारकों की आवाज थी… प्रत्याशियों की मेहनत थी… हर किसी के मन में हार का डर था तो जीतने की जिद भी थी और परिणाम इसका प्रमाण है… इसके विपरीत कांग्रेस जनता और कल्पना के भरोसे मैदान में नजर आ रही थी… न कार्यकर्ता थे न प्रचारक…न मुद्दे थे न रणनीति…न आकर्षण था न समर्पण था… चुनाव के पहले ही कमलनाथ दिग्विजयसिंह से भिड़ लिए…कपड़े फाडऩे-फड़वाने तक की भाषा पर उतर आए… प्रचार के लिए न दिग्गी नजर आए और न कमलनाथ निकल पाए… बढ़ती उम्र की दहलीज पर खड़े इन दोनों नेताओं का संघर्ष केवल टिकट बांटने तक सीमित रहा… चुनाव से पहले प्रदेश में भ्रष्टाचार के लिए चीखने-चिल्लाने वाले कमलनाथ और कांग्रेसी इस मुद्दे को तो निगल गए, किसी और मुद्दे को भी उठा नहीं पाए… इधर शिवराज खजाना खोले खड़े थे तो उधर कमलनाथ जेब सिलकर चुनाव लड़वा रहे थे… कांग्रेस के वादों की पुडिय़ाओं के बजाय जनता को भाजपा का हाथोहाथ लेन-देन पसंद आया… लाड़ली बहनाओं को अपना भविष्य सुरक्षित करना था… कन्याओं को विवाह की गारंटी चाहिए थी… युवाओं को सीखो-कमाओ योजना चाहिए थी तो बेरोजगारों को रोजगार…फिर शिवराज ने बच्चों को ऐसा रिझाया कि माता-पिता का वोट अपने आप चला आया… पढ़ाकू बच्चों को स्कूटी बांटी गई तो साढ़े चार लाख बच्चों की फीस सरकार ने चुका दी…किसानों को सम्मान निधि से लेकर कर्जमाफी तक की योजनाएं सहारा बनीं और यह सब हुआ मात्र तीन महीने में… सरकार तो सरकार अधिकारी और कर्मचारी भी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने में जुटे थे… तीन महीने तक सरकारी कार्यालयों में काम यदि हुआ तो वह केवल जरूरतमंदों तक योजना पहुंचाने का…जब इतनी बड़ी तादाद में इतनी बड़ी फौज इतनी योजनाएं लेकर जनता तक पहुंचेगी तो 18 साल की एंटीइंकम्बेंसी क्या 18 जन्म की नाराजगी भी दूर हो जाएगी और परिणाम ने बता दिया कि जीतोगे हर बाजी, जब खेलोगे जी-जान से…

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