उज्जैन। शिप्रा नदी में हर साल गर्मी का मौसम शुरु होने पर छोटे पुल से लेकर चक्रतीर्थ घाट होते हुए मंगलनाथ घाट तथा सिद्धवट तक जलकुंभी फैल जाती है। परंतु इस बार काई और जलकुंभी पिछले साल के मुकाबले अधिक नजर आ रही है। जलकुंभी नदी में मौजूद पानी से आक्सीजन का लेवल कम कर रही है और इससे मछलीी तथा अन्य जलजीवों के मरने की संभावना बढ़ गई है।
शिप्रा नदी में हर साल गर्मी के दिनों में जलकुंभी का जमना शुरू हो जाती है, जो जून से सितंबर माह तक नदी में बहाव होने के कारण नजर नहीं आती। लेकिन बारिश का काल पूरा होने के बाद वर्ष के अंत तक नदी साफ रहती है। अभी गर्मी के दिनों में यह लगातार बढ़ रही है। जो छोटे पुल के आगे चक्रतीर्थ से होते हुए ऋ णमुक्तेश्वर घाट तक गंदगी और जलकुंभी नजर आ रही है। इसके आगे गंगाघाट के आगे से लेकर मंगलनाथ घाट तक नदी का तल जलकुंभी से पटा नजर आ रहा है। यह एरिया ऐसा है जो अक्टूबर से लेकर जून-जुलाई तक लगभग 9 महीने जलकुंभी से ढंका हुआ रहता है। हालात यह है कि मंगलनाथ क्षेत्र में श्रद्धालु स्नान तो दूर आचमन तक नहीं कर पा रहे हैं। मंगलनाथ से होकर आगे तक शिप्रा में जलकुंभी ही जमी हुई है। इधर रामघाट क्षेत्र से लेकर छोटे पुल तक पूरे साल शिप्रा में सफाई होती रहती है परंतु बड़े पुल से लेकर मंगलनाथ घाट तक कहीं भी पूरे साल जलकुंभी हटाने या शिप्रा में जमी गंदगी साफ करने का अभियान नगर निगम नहीं चलाता। दूसरी ओर शिप्रा में अभी भी 13 बड़े नाले लगातार मिल रहे हैं। रही सही गंदगी की कसर यह पूरी करते रहते हंै। त्रिवेणी पर कान्ह नदी का पानी मिलता रहता है। वनस्पति विज्ञान के जानकार बताते है कि शिप्रा नदी में गंदे नाले मिल रहे हैं जिसमें शहर का मलमूत्र जा रहा है और अन्य अपशिष्ट पदार्थ का गंदा पानी मिलने से जनकुंभी पनपती है। उनका यह भी कहना है कि जलकुंभी का एक पौधा प्रतिदिन 1.5 लीटर पानी सौंखता है। इतना ही नहीं यह नदी के पानी में मौजूद आक्सीजन को भी प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया पूरी करने में ले लेता है। इस कारण नदी के पानी में आक्सीजन का लेवल कम हो जाता है और इससे मछलियाँ और अन्य जलजीव के मरने का खतरा बढ़ जाता है।
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