उज्जैन। कान्ह डायवर्शन योजना फ्लाप हो चुकी है और बारिश शुरु हो गई है। ऐसे में अब बरसात के 4 महीने इंदौर की कान्ह नदी का दूषित पानी शिप्रा में मिलता रहेगा, वहीं शहर के 13 बड़े नाले भी शिप्रा को आम दिनों से अधिक गंदगी उड़ेलकर दूषित करेंगे। उज्जैन की आबादी लगभग 6.5 लाख हो गई है। पूरे शहर की नालियों से होकर 13 बड़े नाले घरों और कॉलोनियों से निकलने वाले करीब 70 लाख लीटर गंदे पानी को रोज शिप्रा में मिला रहे है। यह समस्या सालों पुरानी है। शिप्रा को शुद्ध करने की अनेक योजनाओं सहित क्षिप्रा शुद्धिकरण न्यास भी इस समस्या का हल नहीं कर पाया है। अब अमृत मिशन की सीवरेज लाईन योजना तथा इसके तहत बन रहे ट्रीटमेंट प्लांट से ही निकट भविष्य में प्रदूषण से शिप्रा को मुक्ति मिलने की उम्मीद है। क्योंकि शिप्रा के किनारे प्रत्येक 12 वर्ष में सिंहस्थ मेला लगता है। इसमें क्षिप्रा स्नान करने के लिए देश तथा दुनिया भर के साधु संतों से लेकर श्रद्धालु तक पहुंचते है। लंबे समय से क्षिप्रा शुद्धिकरण की मांग साधु संत करते आए है। क्षिप्रा के धार्मिक स्वरुप को जहां एक ओर इंदौर से आने वाली कान्ह नदी का दूषित पानी सालों से खराब करता रहा है। वहीं शहर के 13 बड़े नाले भी रोजाना लाखों लीटर गंदा पानी शिप्रा में उड़ेल रहे है। सिंहस्थ 2016 में इन नालों को रोकने के लिए अस्थायी रूप से प्रयास किए गए थे। सभी नालों को शिप्रा किनारे से करीब डेढ़ या दो किमी दूर मिट्टी के बांध बनाकर रोका गया था। इस पर भी लाखों रूपए खर्च किए गए थे। बावजूद इसके सिंहस्थ के दूसरे और तीसरे स्नान के वक्त कई नाले असमय हुई बारिश के कारण शिप्रा में जा मिले थे और लोगों ने इसी में स्नान किया था। आज भी यही स्थिति बनी हुई है। 13 बड़े गंदे नालों के जरिये शहर का लगभग 70 लाख लीटर गंदा पानी रोज सीधे शिप्रा में मिलता है। अब दो दिन से बरसात हो गई है और यही नाले दो गुना गंदा पानी पूरे 4 महीने शिप्रा में पहुँचाएँगे। वर्षाकाल में पूरे समय कान्ह नदी भी ओव्हर फ्लो होकर शिप्रा में मिलती रहेगी।
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