नई दिल्ली। देश में जल संकट लगातार गहराता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार 2025 तक भारत में जल संकट बहुत बढ़ जाएगा। आशंका जताई गई है कि अत्यधिक भूजल दोहन, अत्यल्प जलसंरक्षण और ग्लेशियर पिघलने के कारण गंगा, ब्रह्मपुत्र व सिंधु जैसी हिमालयी नदियों का प्रवाह कम हो जाएगा।
उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और तमिलनाडु ड्राई जोन की श्रेणी में आते हैं। ड्राफ्ट अर्ली वॉर्निंग सिस्टम (DEWS) के अनुसार देश का 41.82 फीसदी हिस्सा सूखाग्रस्त है। यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले दो दशकों से वर्षा में गिरावट दर्ज की जा रही है, इसलिए खेती-किसानी के लिए भूमिगत जल का इस्तेमाल करना पड़ता है। इससे भू-जल दोहन लगातार बढ़ रहा है। जितना भी बारिश का पानी जमीन में अंदर जाता है उसका करीब 80 फीसदी सिंचाई और पीने के लिए निकाल लिया जाता है। वर्ष 2021-22 में आई कैग रिपोर्ट के अनुसार पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और काफी हद तक उत्तर प्रदेश में 100 फीसदी भूमिगत जल का दोहन हो रहा है।
2030 तक ये शहर होंगे डे जीरो की कगार पर
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सहित कुल 13 राज्यों में पानी का भारी संकट पैदा होने की आशंका है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के करीब 25 शहर 2030 तक ‘डे जीरो’की कगार पर होंगे। डे-जीरो का मतलब पानी की आपूर्ति के लिए पूरी तरह अन्य साधनों पर आश्रित होना है। ऐसे शहरों में कानपुर, गुरुग्राम, फरीदाबाद, दिल्ली, मेरठ, जयपुर, बंगलूरू, कोयंबटूर, कोच्ची, मदुरै, चेन्नई, सोलापुर, हैदराबाद, विजयवाड़ा, मुंबई, जमशेदपुर धनबाद, अमरावती, विशाखापत्तनम, आसनसोल और आगरा जैसे शहर शामिल हैं।
1600 घन मीटर रह जाएगी पानी की उपलब्धता
समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (CWMI) रिपोर्ट के अनुसार देश के 21 प्रमुख शहरों में लगभग 10 करोड़ लोग जल संकट की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। वर्ष 1994 में पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 6 हजार घन मीटर थी जो 2025 तक घटकर 1600 घन मीटर रह जाने का अनुमान है, इसके बावजूद बढ़ती आबादी जल संकट को और गहरा करेगी। हालांकि नीति आयोग ने समग्र जल प्रबंधन सूचकांक का दूसरा संस्करण तैयार किया है, जिसमें उत्तर भारत के कुछ राज्यों में जल प्रबंधन में सुधार दिख रहा है। इसके बावजूद रिपोर्ट कहती है कि बीते 50 सालों में देश में जिस तरह से पानी की मांग बढ़ी है उसके सापेक्ष जल प्रबंधन की प्रकिया में तेजी नहीं देखी गई। इसी से आपूर्ति और मांग में अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है।
कमजोर जल प्रबंधन नीति : रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्षा जल का मात्र 15 फीसदी पयोग होता है, शेष जल बरसाती नदियों के रास्ते बहकर समुद्र में चला जाता है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार 50 फीसदी से भी कम भारतीयों को स्वच्छ पेय जल मिल पाता है, क्योंकि यहां के भूमिगत जल में फ्लोराइड की मात्रा काफी ज्यादा है। सरकार के एक सर्वे में देश के 25 राज्यों के 209 विकासखंडों के भूमिगत जल में आर्सेनिक की मात्रा अधिक पाई गई है। यह ह्रदय और फेफड़ो के रोगों को बढ़ावा देता है।
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