नई दिल्ली: मौसम विभाग (IMD) के मानकीकृत वर्षा सूचकांक (Standardized Precipitation Index-SPI) के मुताबिक 27 जुलाई से 23 अगस्त तक के डेटा से मालूम चला है कि भारत की करीब एक- तिहाई यानी 31 फीसदी जमीन मध्यम से लेकर अत्यधिक सूखे तक के हालात को झेल रही है. इसका मिट्टी की नमी, फसलों के उत्पादन और कृषि पर अहम असर देखने को मिलता है. SPI, विश्व मौसम विज्ञान संगठन के विशेषज्ञों की टीम द्वारा अलग अलग वक्त पर मौसम से जुड़े सूखे को बताने के लिए विकसित किया गया एक तरीका है. बताया गया है कि देश का 47 फीसदी हिस्सा इस वक्त हल्के सूखे (Drought) की चपेट में है.
आईएमडी ने खराब मॉनसून (Monsoon) को समझाने के लिए सूखा शब्द हटाकर इसकी जगह ‘कम बारिश’ शब्द को रखा है. मॉनसून अब लगभग एक महीने से कमजोर बना हुआ है और अगस्त में देश भर में अब तक की सबसे कम बारिश हुई है. आंकड़ों से पता चलता है कि 31 फीसदी जमीन में से 9 फीसदी गंभीर रूप से सूखा और इसके अलावा 4 फीसदी अत्यधिक सूखे की मार को झेल रही है. ऐसी स्थितियों से विशेष रूप से प्रभावित इलाकों में दक्षिण के बड़े हिस्से, महाराष्ट्र और गुजरात के जिले और पूर्वी भारत के कुछ क्षेत्र शामिल हैं. ये क्षेत्र मॉनसून की बारिश की कमी से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. एसपीआई डेटा से संकेत मिलता है कि वे मध्यम से अत्यधिक सूखे की हालत में हैं.
आंकड़े बताते हैं कि देश का 47 फीसदी हिस्सा हल्के सूखे की स्थिति का सामना कर रहा है. विशेषज्ञों ने कहा कि हल्के सूखे की स्थिति के कारण मिट्टी की नमी भी कम हो सकती है, जिससे फसल की वृद्धि और कृषि उत्पादकता पर असर पड़ सकता है. ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक मौसम विज्ञानी राजीब चट्टोपाध्याय का कहना है कि ‘स्थिति काफी गंभीर है और विभिन्न क्षेत्रों में जल तनाव देखने को मिल सकता है, ऐसे में अगले दो हफ्ते और अहम हो जाते हैं.’
अगर अगले दो हफ्ते तक स्थिति ऐसी ही बनी रही, तो जल संकट गहरा सकता है. 1 जून से 23 अगस्त तक मौसमी एसपीआई में भी कई जिले खतरे में दिख रहे हैं. मौजूदा मॉनसून ब्रेक कुछ हद तक 2002 के समान है, जिसमें जुलाई में मानसून में 26 दिनों का लंबा अंतराल देखा गया था. उन्होंने कहा कि इसलिए पानी की अपर्याप्त उपलब्धता की वजह से प्रभावित क्षेत्रों में फसलों पर खराब असर पड़ सकता है, जिससे उपज में कमी आएगी और किसानों को आर्थिक नुकसान होगा.
मौसम विज्ञानियों का कहना है कि अब सिंतबर की बारिश पर निर्भर करेगा कि इस कमी को कितना पूरा किया जा सकता है. इस महीने अल नीनो ने भी पर्याप्त ताकत हासिल कर ली है. इस वजह से अगस्त में मॉनसून पर इसका व्यापक असर देखने को मिला है. वैज्ञानिकों ने कहा है कि ऐसी स्थिति से निपटने के लिए हमें पहले से तैयार रहना होगा और अपेक्षित जल तनाव को कम करने के लिए भी आकस्मिक उपाय करने होंगे. मौसम वैज्ञानिक का कहना है कि ऐसी रिपोर्ट हैं कि जल्द ही एक सकारात्मक हिंद महासागर डायपोल (IOD) विकसित हो सकता है.
जिसके मॉनसून पर संभावित असर को लेकर अभी कुछ भी नहीं कहा जकता है लेकिन इससे मानसून को लेकर कुछ सकारात्मक होने की संभावना बन सकती है. दरअसल हिंद महासागर डायपोल एक प्राकृतिक जलवायु घटना है, जो हिंद महासागर में घटित होती है. इसका समुद्र के तापमान पर एक झूले की तरह असर होता है. जब हिंद महासागर का पश्चिमी भाग पूर्वी भाग की तुलना में गर्म हो जाता है, तो इसे सकारात्मक आईओडी कहा जाता है. इस चरण को आम तौर पर भारत में मॉनसूनी बारिश के लिए फायदेमंद माना जाता है.
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