बेगूसरा। पानी फल कहे जाने वाले सिंघाड़ा की खेती यूं तो पूरे मिथिला में जोर-शोर से होती है। लेकिन बेगूसराय के बखरी में सिंघाड़ा की खेती प्रमुखता से होती है। व्रत-उपवास में और फल के रूप में खाया जाने वाला यहां का सिंघाड़ा मशहूर है और बेगूसराय के विभिन्न क्षेत्र ही नहीं बल्कि खगड़िया, समस्तीपुर अन्य मंडियों तक बिकता है। सहनी जाति के परिवारों की मुख्य आमदनी का जरिया मछली के साथ सिंघाड़ा की खेती भी है। बखरी के डरहा स्थित चंद्रभागा नदी सहित कई चौर और तालाब के पानी से सिंघाड़े की खेती प्रमुखता से होती है। घर की महिलाएं भी पुरुष के साथ मिलकर सिंघाड़ा की खेती करते हैं। पानी से निकालने के बाद पुरुष और महिला दोनों मिलकर बाहरी व्यापारियों के हाथ बेचने के साथ-साथ परिहारा, बगरस, बखरी बाजारों आदि जगहों पर खुद ठेला या टोकरी में रखकर बेचते हैं। इनके खुद मार्केटिंग करने पर प्रतिकिलो 80 रुपए तक के भाव मिल जाते हैं। वहीं, अच्छी उपज के समय सिंघाड़ों को पकने के बाद सुखा देते हैं। सूखने के बाद सिंघाड़े एक सौ रुपए प्रतिकिलो के भाव तक बिकते हैं।
जोखिम की खेती है सिंघाड़ा-
उक्त फल का व्यवसाय करने वाले किसान गोढ़ियारी निवासी कैलाश सहनी ने बताया कि बखरी में बारिश से पहले अंकुरित पौधे रोपे जाते हैं। पानी भरने तक सिंघाड़े की बेल ऊपरी सतह पर फैल जाती है। बेल पर निपजे सिंघाड़ों को तोड़ने के लिए छोटी नाव पर बैठकर जाना पड़ता है। वह भी नाव में एक ही व्यक्ति सवार होता है। तोड़ते समय काफी सतर्कता बरतनी पड़ती है, क्योंकि नदी में करीब 20 फीट पानी भरा रहता है। जिसके कारण इसे तोड़कर पानी से निकालना जोखिम भरा काम है।
माना जाता है फलाहार, सुखाकर बनाया जाता है आटा-
पानी में पैदा होने वाला तिकोने आकार के फल सिंघाड़ा के दो हिस्से में सींग की तरह दो कांटे छिलके के साथ होते हैं। तालाबों तथा रुके हुए पानी में पैदा होने वाले सिंघाड़े के फूल अगस्त में आकर सितम्बर-अक्तूबर में फल का रूप ले लेता है। सिंघाड़ा अपने पोषक तत्वों, कुरकुरेपन और अनूठे स्वाद की वजह से खूब पसंद किया जाता है। व्रत-उपवास में सिंघाड़े को फलाहार में शामिल किया जाता है। इसके बीज को सुखाकर और पीसकर बनाए गए आटे का सेवन किया जाता है। असल में एक फल होने के कारण इसे अनाज नहीं मान कर फलाहार का दर्जा दिया गया है।
पौष्टिकता से भरपूर एवं कई बीमारियों में भी फायदेमंद-
सिंघाड़ा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन-बी एवं सी, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस जैसे मिनरल्स, रायबोफ्लेबिन जैसे तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। आयुर्वेद में कहा गया है कि सिंघाड़ा में भैंस के दूध की तुलना में 22 प्रतिशत अधिक खनिज लवण और क्षार तत्व पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों ने इसे अमृत तुल्य बताते हुए पौष्टिक तत्वों का खजाना बताया है। इस फल में कई औषधीय गुण हैं, जिनसे शुगर, अल्सर, हृदय रोग, गठिया जैसे रोगों से बचाव करता है। इसके अलावा थायरॉयड और घेंघा रोग, गले की खरास, टॉन्सिल, बाल झड़ने की समस्या, फटी एड़ियों, बुखार और घबराहट में फायदेमंद होने के साथ वजन बढ़ाने का भी रामवाण उपाय है।
गर्भवती महिलाओं के लिए वरदान-
गर्भाशय की दुर्बलता व पित्त की अधिकता से गर्भावस्था पूरी होने से पहले ही जिन स्त्रियों का गर्भपात हो जाता है, उन्हें सिंघाड़ा खाने से लाभ होता है। इसके सेवन से भ्रूण को पोषण मिलता है और वह स्थिर रहता है। सात महीने की गर्भवती महिला को दूध के साथ या सिंघाड़े के आटे का हलवा खाने से लाभ मिलता है। सिंघाड़े के नियमित और उपयुक्त मात्र में सेवन से गर्भस्थ शिशु स्वस्थ और सुंदर होता है।
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