सोलन (solan) । हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में भले ही भारी बारिश का दौर कुछ थम गया है, लेकिन पहाड़ों से भूस्खलन (landslide) का सिलसिला जारी भी है और खतरा अभी बरकरार है। अतिवृष्टि के कारण पहाड़ इस बार पानी से लबालब हो गए हैं। अब पहाड़ों में रिसा पानी धूप से तापमान बढ़ने पर वाष्प बनकर दरारें पैदा कर रहा है। धूप खिलने के बावजूद बीते दो दिन में परवाणू-शिमला फोरलेन, मंडी-कुल्लू हाईवे समेत अन्य सड़कों पर भूस्खलन हुआ है। बीते दिनों कुल्लू के आनी में भी साफ मौसम में आठ बहुमंजिला भवन ढह गए। विशेषज्ञों के मुताबिक धूप (Sunlight) खिलने के कारण पानी का वाष्प बनता है तो जमीन के भीतर दबाव अधिक बढ़ जाता है।
यह दबाव मिट्टी को बाहर धकेलता है और भूस्खलन होता है। यह सिलसिला अभी 15 से 20 दिन जारी रहेगा। जमीन में पानी सूखते ही पहाड़ दरकना बंद हो जाएंगे। सेवानिवृत्त सिविल इंजीनियर देवेंद्र सिंह बताते हैं कि ज्यादातर भूस्खलन उन क्षेत्रों में होता है जहां या तो बड़ी चट्टानें नहीं होती हैं या फिर जहां की मिट्टी रेतीली होती है। मंडी-कुल्लू, परवाणू-शिमला फोरलेन में इसी तरह की मिट्टी है। सड़कों के किनारे पेड़ कम हैं। इससे मिट्टी की पकड़ कमजोर हो जाती है। वह बारिश और सूखा दोनों सहन नहीं कर पाते और गिरते रहते हैं। बारिश के दौरान जहां पर दरारें आ गई हों, उनको मिट्टी से भर दिया जाना चाहिए, ताकि मौसम साफ होने पर दरारें और बड़ी न हो जाएं।
कहां-कहां है भूस्खलन का ज्यादा खतरा
शिमला-कालका एनएच पर धर्मपुर से लेकर परवाणू तक साफ मौसम में भी खतरा है। यहां पिछले दो दिन में करीब एक दर्जन जगह भूस्खलन हुआ है। मंडी-कुल्लू एनएच पर छह मील, सात मील, दवाड़ा, हणोगी, पंडोह के पास, कोटरोपी और कुल्लू जिले में देवधार, मणिकर्ण के भ्रैण, ग्राहण नाला के पास, नांगचा, सोझा से घियागी, भुंतर से मणिकर्ण, कुल्लू से लगघाटी के बीच भूस्खलन का खतरा है। पांवटा साहिब-शिलाई एनएच पर हेवना, गंगटोली, शिल्ला, कमरऊ के अलावा ददाहू-संगड़ाह सड़क पर दनोई, ल्वासा चौकी-ढंगयार सड़क पर नया गांव और खड़का खेच, एनएच 907-ए पर साधनाघाट, धरयार-नारग सड़क पर मढ़ीघाट और कैंची मोड़, हरिपुरधार-राजगढ़ सड़क पर सैल, चाढ़ना व नौहराधार, भटियूड़ी, हरिपुरधार-रोनहाट सड़क पर शालना के पास भी जमीन भरभरा सकती है। कांगड़ा के कोटला, रानीताल मार्ग, नगरोटा बगवां के ठानपुरी और कांगड़ा बाईपास समेत कई अन्य क्षेत्रों में भी सतर्क रहने की जरूरत है।
बारिश के बाद रेतीली और ऐसी मिट्टी, जिसमें बड़ी चट्टानें न हो वह गिरती है। इसका कारण है कि इसकी पकड़ बारिश में कमजोर पड़ जाती है। धूप खिलते ही इसमें से वाष्प से दरारें आना शुरू हो जाती हैं और दबाव के चलते भूस्खलन होता है। यह सिलसिला तब तक जारी रहता है, जब तब जमीन का पानी सूख नहीं जाता।- प्रो. डीडी शर्मा, आचार्य, भूगोल विज्ञान, एचपीयू शिमला।
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