– अरविन्द मिश्रा
कुछ साल पहले तक मध्य प्रदेश के रीवा से लगभग 20 किमी दूर स्थित गुढ़ की बदवार पहाड़ियां सिर्फ भारतीय सेना और पुलिस के लिए फायरिंग रेंज के रूप में इस्तेमाल होती थी। बदवार पहाड़ियों से लगे यहां के बदवार, बरसैता, तमरा देश, बरसैता पहाड़, इटार और रामनगर जैसे गांवों में रह रहे लोगों को फायरिंग रेंज की गतिविधियों की वजह से कई बार घरों से बाहर निकलना भी मुश्किल हो जाता था। 80 के दशक में यहां के स्थानीय सांसद और समाजवादी नेता स्वर्गीय यमुना प्रसाद शास्त्री ने संसद में इस क्षेत्र को फायरिंग रेंज से मुक्त करने की मांग की। लगभग 40 साल बाद आज यह बंजर भूमि न सिर्फ फायरिंग की प्रशिक्षण गतिविधियों से मुक्त हो चुकी है बल्कि एशिया की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा परियोजना के लिए आंचल बन चुकी है।
देश के ऊर्जा परिदृश्य में 10 जुलाई 2020 का दिन स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्य प्रदेश के रीवा जिले में स्थापित एशिया के सबसे बड़े अत्याधुनिक सौर ऊर्जा संयंत्र (अल्ट्रा मेगा सोलर प्लांट) का वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से लोकार्पण कर इसे राष्ट्र को समर्पित किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि यह देश के दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश ही नहीं, राष्ट्र के ऊर्जा परितंत्र के लिए एक अभूतपूर्व उपलब्धि है। वर्तमान में 750 मेगावाट के साथ प्रारंभ यह सोलर परियोजना स्वच्छ व नवीनीकृत ऊर्जा उत्पादन के राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक सिद्ध होगी। इस परियोजना को मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम और भारत सरकार के सौर ऊर्जा निगम के संयुक्त उपक्रम रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर लिमिटेड द्वारा स्थापित किया गया है। 4,500 करोड़ रुपये की लागत से तैयार यह परियोजना प्रधानमंत्री के उस आह्वान को भी सफल बना रही है, जिसमें उन्होंने कहा है कि आधारभूत संरचनाओं को इस तरह विकसित किया जाए, जिससे वह 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने में सक्षम हों।
यह अत्याधुनिक सौर ऊर्जा परियोजना लगभग 1,590 एकड़ भूमि में विकसित की गई है। पूरे सोलर प्लांट से सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिए तीन अलग-अलग यूनिट स्थापित की गई हैं। जनवरी 2020 से ही सभी इकाईयां बिजली का उत्पादन प्रारंभ कर चुकी हैं। एक अनुमान के मुताबिक प्रतिदिन 37 हजार यूनिट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। अत्याधुनिक सौर ऊर्जा संयंत्र से तैयार बिजली के पारेषण के लिए पावर ग्रिड ने जो ट्रांसमिशन लाइन विकसित की है, जिसे ग्रीन कॉरिडोर नाम दिया गया है। इसके लिए 220/400 केवी इंटर स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम विकसित कर लिया गया है।
ख़ास बात यह है कि इस सोलर परियोजना से 2 रुपये 97 पैसे प्रति यूनिट की दर से बिजली का उत्पादन हो रहा है। यह किसी भी सौर ऊर्जा संयंत्र से उत्पादित सोलर एनर्जी की सबसे न्यूनतम दर होने के साथ कोयला संयंत्रों से मिलने वाली बिजली की तुलना में काफी सस्ती है। इसे आप इस तथ्य से भी समझ सकते हैं कि कोयले से तैयार बिजली वर्तमान में लगभग 3 रुपये 50 पैसे से 4 रुपये प्रति यूनिट के आसपास होती है। रोजगार सृजन के लिहाज से देखें तो श्रम दिवसों के सृजन के आधार पर योजना के प्रारंभिक चरण से लेकर अबतक लगभग दस लाख से अधिक प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष श्रम दिवसों का सृजन हो चुका है। वहीं हजारों की संख्या में यहां युवाओं को स्थायी रोजगार मिला है।
कभी ऊर्जा के लिए अन्य राज्यों पर निर्भर रहने वाला मध्य प्रदेश इस परियोजना के जरिए बदलाव की गाथा लिख रहा है। देश की सबसे आधुनिक परिवहन व्यवस्था में शुमार दिल्ली मेट्रो को इस परियोजना से तैयार बिजली के 24 प्रतिशत हिस्से की आपूर्ति हो रही है। जबकि शेष 76 प्रतिशत सौर ऊर्जा का उपयोग मध्य प्रदेश के नागरिकों को ऊर्जा सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया जा रहा है। ख़ास बात यह है कि इस परियोजना से भू-गर्भ आधारित उत्पादन करने की भी तैयारी है।
यहां इस बात का जिक्र करना प्रासंगिक है कि सौर ऊर्जा उत्पादन को लेकर विश्व के अलग-अलग देशों के प्रयासों की समीक्षा के दौरान विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एनर्जी एजेंसी (आईईए), इंटरनेशनल सोलर अलायंस की बैठकों में कई बार इस परियोजना की चर्चा और प्रशंसा हो चुकी है। हाल ही में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम और इंटरनेशल एनर्जी फोरम जैसे अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों में यह परियोजना दुनिया की दिग्गज कंपनियों के सीईओ से लेकर ऊर्जा प्रतिनिधियों के बीच आकर्षण का केंद्र रही है। यह परियोजना अन्य राज्यों को भी निवेश अनुकूल वातावरण और उद्योग जगत के आर्थिक हितों की सुरक्षा के उपायों के लिए प्रेरित करती है। विश्व बैंक ने देश में पहली बार सौर ऊर्जा की रीवा स्थित परियोजना में ही निवेश किया है। एक अनुमान के मुताबिक विश्व बैंक से जुड़े इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन (आईएफसी) ने लगभग 2,800 करोड़ रुपये इस परियोजना में निवेश किया है।
देश के लिए ऊर्जा सुरक्षा के साथ वैश्विक पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं के नजरिए से भी मध्य प्रदेश में स्थापित यह अल्ट्रा सोलर प्लांट महत्वपूर्ण है। पांच साल पहले ही भारत ने पेरिस के जलवायु समझौते में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांक्वा ओलांद और संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव बान किन मून के नेतृत्व में इंटरनेशल सोलर अलायंस का ऐलान किया था। आज भारत इस सौर ऊर्जा के अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन का नेतृत्वकर्ता देश है। ऐसे में विश्व के 122 देश सीधे तौर पर भारत की इस परियोजना से प्रेरित होंगे। यही वजह है कि भारत ने सौर ऊर्जा गठबंधन का हिस्सा बनते ही 2022 तक 1 लाख 75 हजार मेगावाट नवीनीकृत ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य तय कर लिया था। इस बात में कोई संदेह नहीं कि भारत सौर ऊर्जा के उत्पादन में अग्रणी बनकर विश्व को पर्यावरण अनुकूल विकास का संदेश देने के साथ आर्थिक महाशक्ति बनने की राह में ऊर्जा कूटनीति को मजबूत करना चाहता है।
मौजूदा दौर में देश जिस प्रकार की आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रहा है, ऐसे में मध्य प्रदेश ने ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के विकास का अनुकरणीय मॉडल प्रस्तुत किया है। यह मॉडल देश के विकास में पर्यावरणीय संरक्षण की सहभागिता को किस रूप में प्रभावी बनाएगा, इसका आकलन इसी बात से कर सकते हैं कि 750 मेगावाट बिजली उत्पादन करने वाली इस परियोजना से 15.4 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम होगा। इससे पहले भी मध्य प्रदेश ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में कई असाधारण उपलब्धियां अर्जित की हैं। बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी ब्लॉक में बाचा गांव, दुनिया का पहला सोलर विलेज के रूप में पहचान बना चुका है। यहां हर घर सौर ऊर्जा से जगमग है। नेशनल सोलर मिशन 2022 के अंतर्गत मध्य प्रदेश ने 2.2 गीगावॉट बिजली उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। अक्षय ऊर्जा के दोहन को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार सोलर पंप स्थापना के लिए किसानों को लगभग 85 प्रतिशत का अनुदान दे रही है।
जाहिर है, मध्य प्रदेश जिस प्रकार देश का अग्रणी सौर ऊर्जा उत्पादक राज्य बनकर उभरा है, वह बिना राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति के साथ सामुदायिक सहभागिता के बिना संभव नहीं था। राज्य में नवीनीकृत ऊर्जा के प्रकल्प जिस प्रकार समय पर जन आकांक्षाओं के साथ पूर्ण हो रहे हैं, वह पर्यावरण अनुकूल विकास को लेकर स्थानीय जनमानस की जागरुकता का भी परिचायक है। देश के अन्य राज्यों में भी अक्षय ऊर्जा की संभावनाओं के दोहन की आवश्यकता है। यदि मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों की तरह अन्य राज्य भी ऊर्जा के ऐसे तमाम प्रकल्पों को प्रोत्साहित करें तो परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के स्थान पर प्रदूषण रहित ऊर्जा संसाधनों का विकास होगा। सौर ऊर्जा के विकास से आत्मनिर्भर भारत में ऊर्जा की सहभागिता तो बढ़ेगी ही, देश के नागरिकों के जीवन स्तर को भी गुणवत्ता प्रदान करने में मदद मिलेगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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