– संजय तिवारी
अंग्रेज शासकों ने ‘एक भारत’ के पूरब और पश्चिम में एक-एक रेखा खींच दी। कह दिया कि एक महादेश दो अलग-अलग देशों में बांट रहे हैं। यानी एक हिस्सा पूरब, एक हिस्सा पश्चिम और बीच में हिंदुस्तान। पूरब और पश्चिम वाले को नाम दिया पाकिस्तान और कहा कि यह मुसलमान भाइयों के लिए है। बीच वाला हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाई, यहूदी आदि के लिए छोड़ दिया। यह मोहम्मद अली जिन्ना को भी समझ में नहीं आया कि इतनी जल्दी यह कैसे मिल रहा है। उनकी खुद की सोच थी कि उनके जीते जी पाकिस्तान तो नहीं मिलने वाला। जिन्ना का सपना साकार हो गया और दोनों रेखाओं के भीतर एक-एक राष्ट्रपिता मिल गए। बंटवारे के बाद के पिता। पाकिस्तान के कायदे आजम और हिंदुस्तान के राष्ट्रपिता। यह कोई भी बुद्धिमान बड़ी गहराई से सोच सकता है कि एक महान और महादेश को बांटने के बाद कोई उसका पिता क्यों बन जाता है? कहीं दुनिया में और ऐसा हुआ तो नहीं है।
बहरहाल दोनों अंग्रेजी रेखाओं के बीच से मुसलमान समुदाय के लोगों ने दौड़-दौड़ कर घोषित पाकिस्तानी भूमि पर पहले से रह रहे लोगों को खदेड़ना और उनका कत्लेआम शुरू किया और खुद काबिज होने लगे। एक ही दिन पहले तक एक समग्र रहा भू-भाग खंडित होकर लहू से लाल हो रहा था। पाकिस्तानी घोषित भूमि पर सदियों से रह रहे गैर मुसलमान समुदाय फसल की तरह काटा जाने लगा। बहू-बेटियां माल असबाब बनाकर लूटी जाने लगीं। रेलगाड़ियों में भर-भर कर लाशें बचे हुए भारत भूमि पर उतारी जाने लगीं। दोनों अंग्रेजी रेखाओं के पूरब और पश्चिम वाली भूमि पर कब्जे होने लगे।
उस समय के सभी हालात लिखने लगें तो बहुत कुछ और भी लिखना पड़ेगा लेकिन आज यह कुछ लिखना इसलिए जरूरी है क्योंकि नई पीढ़ी को कुछ भी पता नहीं है। हम जिसे आजादी कह रहे थे वह केवल देश का विभाजन भर था। लड़ तो रहे थे अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति के लिए लेकिन परिणाम मिला कि धरती बांट कर अंग्रेजों ने वह सब कर दिया जिसकी किसी भारतीय ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। चक्रवर्ती सम्राटों का भारत वर्ष तीन टुकड़ों में बांट कर कहा गया कि अब भारत स्वाधीन हो गया।
यह कैसी स्वाधीनता थी और क्यों यहां वे लोग इस विभाजन को जश्ने आजादी बना कर कबूतर उड़ा रहे थे , यह अभी भी समझ से परे है। आप स्वयं सोचिए, पाकिस्तान नाम पा लेने के बाद भी इस भू-भाग पर अंग्रेज ही शासक रहे। कई प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बना कर समय गुजार देने वाले उस भू-भाग के लिए नौ वर्षों तक कोई संविधान ही नहीं बना। बड़ी मशक्कत से बचे हुए भारत से जाकर वहां का संविधान बनाने वाले योगेंद्र मंडल किसी तरह वहां से जान बचा कर फिर भारत भाग कर आ गए और बंगाल में कहीं रह कर किसी दिन गुमनामी में मर गए।
यदि यह वास्तव में कोई विभाजन होता तो उसका कोई प्रारूप भी होता। लोगो के जानमाल की चिंता के साथ स्थानांतरण की कोई व्यवस्था बनी होती। लोगों की सुरक्षा, उनके खेती, कारोबार आदि पर चिंता हुई होती। लेकिन ऐसा तो कुछ हुआ ही नहीं। खास बात यह कि इसका औपचारिक इतिहास लिखने वालों ने कभी किसी सच को भी सामने नहीं आने दिया। दे दी हमें आजादी, बिना खड्ग बिना ढाल, यह गा-गा कर देश और पीढ़ियों को गुमराह किया जाता रहा। यह कभी बताया ही नहीं गया कि अंग्रेजों से आजादी मांगने वाली कथित राजनीतिक आंदोलनकारी अहिंसा वाली टीम ने 1931 के गोलमेज सम्मेलन के बाद कोई आंदोलन किया ही नहीं। 1942 का भारत छोड़ो, केवल नाम का था क्योंकि दुनिया विश्वयुद्ध लड़ रही थी और अंग्रेज शासक को भारतीय सैनिकों की आवश्यकता थी। नेताजी की आजाद हिंद फौज की शक्ति से व्याकुल और विश्वयुद्ध से दरिद्र हो चुकी ब्रिटिश राजशाही के सामने भारत के विशाल भू-भाग पर शासन करने की शक्ति नहीं रह गई थी। उनको नेहरू और जिन्ना में अपने भविष्य की तस्वीर दिख गई थी। दोनो को ही अपनी शर्तों पर राज देकर मुक्त भी हो गए और अधीनता भी बनाए रखा।
14 अगस्त से जब विभाजित भारत के टुकड़ों पर सांप्रदायिक आधार पर कब्जे की अंग्रेजी अनुमति मिल गई तो क्या मंजर सामने आया, उससे अब लगभग सभी परिचित हैं। वर्ष 2021 से भारत की सरकार ने जब विभाजन स्मृति दिवस मनाने का निर्णय लिया तो स्वाभाविक रूप से उन्हें दिक्कत महसूस हुई होगी जो लाशों पर सिंहासन रख कर स्वयं बैठे रहे होंगे। भारत के शिखर नेतृत्व , सनातन के महानायक नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने उस सिंहासन को ही हटाकर नए सनातन मूल्य वाले सिंहासन का निर्माण कर दिया। आज के दिन को याद करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह विभाजन बहुत दर्दनाक था, बहुत पीड़ादाई और उससे भी ज्यादा मानव सभ्यता के इतिहास का एक क्रूर अध्याय भी।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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