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रिपोर्ट में चेतावनी- कोरोना महामारी के चलते नए संकट की ओर बढ़ रही पूरी दुनिया

April 15, 2021

वाशिंगटन। कोरोना महामारी(Corona Pandemic) के बाद दुनिया लंबे समय तक अस्थिरता की शिकार रह सकती है। इसके असर से आने वाले वर्षों में राजनीतिक(Political) और आर्थिक (Economic) व्यवस्थाओं के स्वरूप में बुनियादी बदलाव आ सकता है। ये चेतावनी अमेरिका(America) की खुफिया एजेंसियों (Intelligence Agencies) ने दी है। ‘एनुअल थ्रेट असेसमेंट’ (Annual Threat Assessment) नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है- महामारी के आर्थिक परिणामों के कारण कुछ या शायद बहुत से देशों की स्थिति बिगड़ सकती है। आर्थिक गिरावट, नौकरियां जाने और सप्लाई चेन में बाधा के कारण बढ़े दबावों की वजह से लोग अधिक बेसब्र हो सकते हैं। खुफिया एजेंसियों का कहना है कि गंभीर आर्थिक हालात के कारण देशों में अंदरूनी टकराव बढ़ने, सीमा पार माइग्रेशन (विस्थापन) में इजाफे और राष्ट्रीय सरकारों के गिरने का जोखिम बढ़ गया है।

अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की ‘एनुअल थ्रेट असेसमेंट’ रिपोर्ट हर साल जारी होती है। लेकिन 2020 में पूर्व डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन और कांग्रेस (संसद) के बीच टकराव के कारण ये रिपोर्ट जारी नहीं हो सकी। इसलिए इस बार दो साल के बाद दुनिया के बारे में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का आकलन सामने आया है। इस तरह यह पहला मौका है, जब कोरोना महामारी के अमेरिका के अंदर और दुनिया पर हो रहे असर के बारे में उनका अंदाजा सार्वजनिक हुआ है।

अमेरिका की घरेलू स्थितियों के बारे में इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अमेरिका के लिए देसी उग्रवादियों का खतरा बढ़ गया है। ये वे उग्रवादी हैं, जो अल-कायदा या इस्लामिक स्टेट (आईएस) जैसे विदेशी चरमपंथी गुटों से प्रेरित नहीं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ये देसी उग्रवादी नस्लीय, सरकार विरोधी या सत्ता विरोधी सोच से प्रभावित हैं। ये लोग श्वेत वर्चस्व, नव-नाजी या सांस्कृतिक उग्र राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित हैं।



रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि 2015 के बाद से श्वेत वर्चस्ववादी उग्रवादियों ने 26 घातक हमले किए, जिनमें 141 लोगों की जान गई है। गौरतलब है कि पिछले महीने खुफिया एजेंसियों का एक और आकलन के बारे में टीवी चैनल सीएनएन ने खबर दी थी। उसके मुताबिक पिछले राष्ट्रपति चुनाव में धांधली होने की बनी धारणा के कारण आने वाले समय में श्वेत वर्चस्ववादी उग्रवाद की गतिविधियों में और बढ़ोतरी होने की आशंका है।

बाहरी मोर्चे को लेकर रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि चीन और रूस कोरोना महामारी से पैदा हुए संकट का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों देशों ने दुनिया पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में वैक्सीन डिप्लोमेसी की राह पकड़ी है। चीन ने अन्य मेडिकल सहायता भी दी है। रिपोर्ट में शक जताया है कि मेडिकल सहायता सामग्रियों के जरिए जासूसी के उपकरण चीन ने कई देशों को उपलब्ध करा दिए हैँ।
खुफिया एजेंसियों ने कहा है कि खासकर रूसी गतिविधियां अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खुफिया खतरा हैं। अब रूस अमेरिकी चुनाव को एक ऐसे मौके के रूप में देखता है, जिसके जरिए वह दुनिया में अमेरिका की हैसियत घटा सकता है। इसी सोच के तहत उसने 2020 के चुनाव में परोक्ष रूप से दखल देने की कोशिश की। इसके अलावा रूस-अमेरिकी समाज में टकराव के बीज डालने और अमेरिका की निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश भी लगातार कर रहा है।

चीन के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि वह अमेरिका में राजनीतिक माहौल को इस तरह ढालने की कोशिशों में जुटा हुआ है, जिससे यहां उसके फायदे में नीतियां बनाई जा सकें। खुफिया एजेंसियों की राय है कि चीन ने भी 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के बारे में विचार किया था, लेकिन असल में ऐसा करने से उसने कदम वापस खींच लिए।

ईरान के बारे में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का आकलन है कि फिलहाल ईरान परमाणु हथियार बनाने के लिए जरूरी कदम नहीं उठा रहा है। लेकिन उसने कुछ ऐसी गतिविधियां शुरू की हैं, जिनसे 2015 के परमाणु समझौते का उल्लंघन होता है। खुफिया एजेंसियां इस बात से चिंतित हैं कि कोरोना महामारी अभी भी काबू में नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक वैक्सीन का ईजाद होने से उम्मीद पैदा हुई। इसके बावजूद इस साल महामारी की आई नई लहर का आर्थिक परिणाम पहले से भी ज्यादा गंभीर हो सकता है। उस हाल में विभिन्न देशों की सरकारों के लिए चुनौतियां और गंभीर हो जाएंगी और अस्थिरता पैदा होने का खतरा गहरा जाएगा।

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